*भारत की लोकसभा में अध्यक्ष की महत्वपूर्ण भूमिका को समजे और उनकी कार्यशैली को जाने*/रिपोर्ट स्पर्श देसाई

*भारत की लोकसभा में अध्यक्ष की महत्वपूर्ण भूमिका को समजे और उनकी कार्यशैली को जाने*/रिपोर्ट स्पर्श देसाई

【मुंबई/रिपोर्ट स्पर्श देसाई!】भारत की लोकसभा में अध्यक्ष की महत्वपूर्ण भूमिका का महत्व और व्यवस्था बनाए रखने, लोकतांत्रिक मूल्यों को बनाए रखने और सदन के सुचारू संचालन को सुनिश्चित करने में उनकी भूमिका क्यों अपरिहार्य है?वह जाने।

परिचय:
लोकसभा के अध्यक्ष भारतीय संसद के निचले सदन के कामकाज में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। अध्यक्ष का पद केवल औपचारिक नहीं होता बल्कि व्यवस्था बनाए रखने,कार्यवाही का सुचारू संचालन सुनिश्चित करने और सदन के लोकतांत्रिक मूल्यों को बनाए रखने में महत्वपूर्ण महत्व रखता है। इस ब्लॉग पोस्ट में हम लोकसभा में अध्यक्ष की महत्वपूर्ण भूमिका और भारतीय संसदीय प्रणाली में उनकी भूमिका क्यों अपरिहार्य है ? इस पर विस्तार से चर्चा करेंगे।

लोकसभा अध्यक्ष की क्या भूमिका है?
लोकसभा अध्यक्ष यह निर्णय करता है कि प्रस्तुत विधेयक वित्तीय है अथवा नहीं । बराबर मत पड़ने की स्थिति में निर्णायक मत देता है। संयुक्त अधिवेशन की स्थिति में उसकी अध्यक्षता लोकसभा अध्यक्ष करता है। उसे लोकसभा की बैठक स्थगित अथवा गणपूर्ति न होने पर सदन की बैठक निलंबित करने का अधिकार प्राप्त है।

स्पीकर और चेयरमैन में क्या अंतर है?:
स्पीकर लोकसभा और अट्ठाईस राज्यों तथा तीन केंद्र शासित प्रदेशों की विधान सभाओं का पीठासीन अधिकारी होता है। इसी तरह एक अध्यक्ष राज्यसभा और उन छह राज्यों की विधान परिषदों का अध्यक्ष होता है, जहां राज्य विधानमंडल का ऊपरी सदन मौजूद है।(विपी)

अध्यक्ष का महत्व:
लोकसभा का अध्यक्ष सदन का पीठासीन अधिकारी होता है और बहस और चर्चा के दौरान शिष्टाचार,निष्पक्षता और निष्पक्षता बनाए रखने के लिए जिम्मेदार होता है। अध्यक्ष सदन के सदस्यों के अधिकारों और विशेषाधिकारों का संरक्षक होता है और कार्यवाही के दौरान उत्पन्न होने वाले विवादों और संघर्षों को सुलझाने में एक तटस्थ मध्यस्थ के रूप में कार्य करता है। अध्यक्ष के पास सदन के नियमों का उल्लंघन करने वाले सदस्यों को अनुशासित करने का अधिकार भी होता है और वह लोकसभा के सुचारू संचालन को सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक कार्रवाई कर सकता है। स्पीकर निर्णय करता है कि कोई विधेयक,धन विधेयक है या नहीं। वह सदन का अनुशासन और मर्यादा बनाए रखता है और इसमें बाधा पहुँचाने वाले सांसदों को दंडित भी कर सकता है। वह विभिन्न प्रकार के प्रस्ताव और संकल्पों, जैसे अविश्वास प्रस्ताव,स्थगन प्रस्ताव, सेंसर मोशन को लाने की अनुमति देता है और अटेंशन नोटिस देता है।

देश में अब तक हुए17 लोकसभा स्पीकर:
17 वीं लोकसभा में चुने गए ओम बिरला सहित अब तक देश में 17 स्पीकर अपने पद पर सुशोभित हो चुके हैं। स्वतंत्र भारत के पहले लोकसभा अध्यक्ष जीवी मावलंकर थे। वे 1946 से 1956 तक भारत के लोकसभा के अध्यक्ष रहे। लोकसभा स्पीकर का चुनाव संसद के सदस्यों में से ही पांच साल के लिए चुना जाता है।
 दिलचस्प बात यह है कि लोकसभा के स्पीकर को शपथ नहीं दिलाई जाती है।

उनके कामकाज के संचालन में भूमिका: 
अध्यक्ष की प्राथमिक जिम्मेदारियों में से एक सदन के कामकाज को व्यवस्थित तरीके से संचालित करना है। अध्यक्ष सदन का एजेंडा तय करता है, बहस का कार्यक्रम तय करता है और यह सुनिश्चित करता है कि सभी सदस्यों को अपनी राय और चिंताएं व्यक्त करने का अवसर मिले। सदस्यों द्वारा व्यवधान या अनियंत्रित व्यवहार के मामले में अध्यक्ष के पास सदन को स्थगित करने का भी अधिकार है। लोकसभा में अनुशासन और व्यवस्था बनाए रखकर अध्यक्ष यह सुनिश्चित करता है कि विधायी प्रक्रिया कुशलतापूर्वक और प्रभावी ढंग से संचालित हो। 

निष्पक्षता और तटस्थता: 
लोकसभा के अध्यक्ष से उनके आचरण और निर्णयों में निष्पक्ष और तटस्थ रहने की अपेक्षा की जाती है। उन्हें अपनी राजनीतिक संबद्धता को अलग रखकर सदन और उसके सदस्यों के सर्वोत्तम हित में कार्य करने की आवश्यकता होती है। अध्यक्ष सदन की गरिमा और अधिकार का प्रतिनिधित्व करता है और उसे लोकतंत्र,निष्पक्षता और न्याय के सिद्धांतों को बनाए रखना चाहिए। निष्पक्ष और तटस्थ रहकर अध्यक्ष यह सुनिश्चित करता है कि सभी सदस्यों को कार्यवाही में भाग लेने का समान अवसर मिले और हर सदस्य की आवाज़ सुनी जाए और उसका सम्मान किया जाए।  

लोकतांत्रिक मूल्यों को कायम रखने में भूमिका:
लोकसभा अध्यक्ष भारतीय संसदीय प्रणाली के लोकतांत्रिक मूल्यों और सिद्धांतों को कायम रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। अध्यक्ष सुनिश्चित करते हैं कि बहस सम्मानजनक और गरिमापूर्ण तरीके से हो । सभी सदस्यों को बिना किसी डर या पक्षपात के अपने विचार व्यक्त करने की स्वतंत्रता हो और आम सहमति और संवाद के माध्यम से निर्णय लिए जाएं। लोकतांत्रिक मूल्यों को कायम रखकर अध्यक्ष भारतीय लोकतंत्र की नींव को मजबूत करते हैं और सुनिश्चित करते हैं कि लोकसभा बहस और चर्चा के लिए एक जीवंत और समावेशी मंच बनी रहे।

निष्कर्ष:
निष्कर्ष के तौर पर भारत की लोकसभा में अध्यक्ष की भूमिका सदन के सुचारू संचालन को सुनिश्चित करने, व्यवस्था और अनुशासन बनाए रखने, लोकतांत्रिक मूल्यों को कायम रखने और सदस्यों के बीच सहयोग और संवाद की भावना को बढ़ावा देने में अत्यंत महत्वपूर्ण है। भारतीय संसदीय प्रणाली की अखंडता और विश्वसनीयता को बनाए रखने के लिए अध्यक्ष की निष्पक्षता, तटस्थता और लोकतंत्र के सिद्धांतों के प्रति प्रतिबद्धता आवश्यक है। अध्यक्ष केवल एक नाममात्र का व्यक्ति नहीं होता बल्कि वह लोकसभा के सदस्यों के अधिकारों और विशेषाधिकारों का संरक्षक होता है और सदन के प्रभावी संचालन में उनकी भूमिका अपरिहार्य होती है।【Phto : Google】

★ब्यूरो रिपोर्ट स्पर्श देसाई√•Metro City Post•News Channel•#लोकसभा#स्पीकर# महत्व

 

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