*मध्य प्रदेश में मतदाताओं का फैसला, रिजल्ट के बाद एमपी में 'किंगमेकर' हो सकते निर्दलीय छोटे दलों के उम्मीदवार*/रिपोर्ट स्पर्श देसाई

*मध्य प्रदेश में मतदाताओं का फैसला, रिजल्ट के बाद एमपी में 'किंगमेकर' हो सकते निर्दलीय छोटे दलों के उम्मीदवार*/रिपोर्ट स्पर्श देसाई


【मुंंबई/रिपोर्ट स्पर्श देसाई】मध्य प्रदेश में वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव के जब नतीजे आए थे तो भाजपा को 109 और कांग्रेस को 114 सीटें मिली थी। एमपी में किसी भी दल को सरकार बनाने के लिए 116 सीटों की जरूरत होती है। ऐसे में किंगमेकर की भूमिका में निर्दलीय,सपा और बसपा के विधायक थे। रिजल्ट से पहले एक बार फिर 2018 वाली स्थिति को लेकर पूर्वानुमान लग रहे हैं। भाजपा और कांग्रेस समेत प्रदेश के लोगों की नजर उन निर्दलीय और छोटे दलों के उम्मीदवारों पर टिक गई है । जिनकी जीत तय मानी जा रही है। वहीं कुछ सीटों पर उनके जीतने की संभावना है। पूरे प्रदेश में ऐसे चेहरों की संख्या सात से आठ हो सकती है। दरअसल 3 दिसंबर को एमपी विधानसभा चुनाव के नतीजे आएंगे। भाजपा और कांग्रेस 150-150 सीटें लाने का दावा कर रही है। वहीं वोटिंग से पहले आए ओपिनियन पोल में दोनों में से कोई दल बहुमत के आंकड़े के करीब नहीं पहुंच रहा था। एमपी में सट्टा बाजार भी इसी ओर इशारा कर रहा है। ऐसे में भाजपा और कांग्रेस इन्हें साधने की जुगत में जुट गई है। इनमें से अधिकांश चेहरे इन्हीं दलों से बागी होकर मैदान में हैं।

*नारायण त्रिपाठी जीत सकते हैं चुनाव*
बीजेपी ने इस बार मैहर से नारायण त्रिपाठी को टिकट नहीं दिया था। पार्टी विरोधी गतिविधियों की वजह से उनका टिकट कटा था। इसके बाद नारायण त्रिपाठी ने "विंध्य विकास पार्टी" बना ली थी। अपनी ही पार्टी से नारायण त्रिपाठी मैहर से चुनाव लड़ रहे हैं। वोटिंग के बाद कयास लगाए जा रहे हैं कि नारायण त्रिपाठी चुनाव जीत सकते हैं। इनकी नजदीकियां भाजपा और कांग्रेस दोनों से है।

*बीजेपी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष के बेटे भी निर्दलीय*
वहीं बुरहानपुर विधानसभा सीट पर भी भाजपा और कांग्रेस की नजर है। इस सीट से अभी निर्दलीय सुरेंद्र सिंह शेरा विधायक हैं। हालांकि वह शुरू से कांग्रेस के साथ रहे हैं। सुरेंद्र सिंह शेरा इस बार कांग्रेस में शामिल हो गए हैं और उन्हें पार्टी ने टिकट दिया है। वहीं बीजेपी ने अर्चना चिटनिस को यहां से उम्मीदवार बनाया है। अर्चना चिटनिस को टिकट मिलने के बाद बीजेपी के पूर्व अध्यक्ष नंद कुमार सिंह चौहान के बेटे हर्ष सिंह चौहान नाराज हो गए हैं। हर्ष सिंह चौहान बीजेपी से इस्तीफा देकर निर्दलीय चुनाव मैदान में उतर गए हैं। स्थानीय जानकारों के अनुसार हर्ष सिंह चौहान दोनों को कड़ी टक्कर दे रहे हैं अगर चुनाव जीतते हैं तो बीजेपी इन्हें मनाने की कोशिश करेगी।

*अलोट से पूर्व सांसद प्रेमचंद गुड्डू लड़ रहे चुनाव*
कांग्रेस के पूर्व सांसद प्रेमचंद गुड्डू भी अलोट विधानसभा चुनाव से टिकट चाहते थे। पार्टी ने उन्हें उम्मीदवार नहीं बनाया तो वह निर्दलीय अलोट विधानसभा सीट से चुनाव लड़ रहे हैं। पार्टी से इस्तीफा देने के बाद कमलनाथ और दिग्विजय सिंह पर कई आरोप लगाए थे। इन पर भाजपा और कांग्रेस दोनों की नजर है। प्रेमचंद्र गुड्डू भाजपा में भी रह चुके हैं।

*महू में अंतर सिंह दरबार की भी चर्चा*
महू विधानसभा सीट पर अभी भाजपा का कब्जा है। वहीं सबसे ज्यादा चर्चा अंतर सिंह दरबार की हो रही है। अंतर सिंह दरबार कांग्रेस में रह चुके हैं। कांग्रेस ने उन्हें टिकट नहीं दिया तो वह निर्दलीय चुनाव मैदान में उतर गए हैं। कहा जा रहा है कि महू में अंतर सिंह दरबार का पलड़ा भारी दिख रहा है। कांग्रेस ने फिर से उन पर डोरे डालने शुरू कर दिए हैं।

*सीधी में केदारनाथ शुक्ला भी*
वहीं, पेशाबकांड की वजह से भाजपा ने इस बार अपने सीटिंग विधायक केदारनाथ शुक्ला का टिकट काट दिया था। उनकी जगह सांसद रीति पाठक को टिकट दिया है। सीधी में केदारनाथ शुक्ला ने रीति पाठक की मुश्किलें बढ़ा दी है हालांकि चर्चा यह भी है कि केदारनाथ शुक्ला अगर टक्कर दिए होंगे तो कांग्रेस को फायदा हो सकता है। गौरतलब है कि मध्य प्रदेश में करीब एक दर्जन विधानसभा की ऐसी सीटें हैं । जहां छोटे दल और निर्दलीय बड़े दलों का खेल खराब कर सकते हैं। इनमें गोटेगांव से कांग्रेस के बागी शेखर चौधरी निर्दलीय लड़ रहे हैं। सिरमौर में बीएसपी ने बीजेपी उम्मीदवार की चुनौती बढ़ा दी है। धार में बीजेपी के बागी राजू यादव निर्दलीय चुनाव लड़ रहे हैं। सिवनी मालवा में ओम रघुवंशी निर्दलीय मैदान में हैं। इससे कांग्रेस की मुश्किलें बढ़ गई हैं।

अब बात बुंदेलखंड की, बुंदेलखंड में दागी और बागी बने मुसीवत, कांग्रेस की रफ्तार कमल से कमल पर बार: सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव,भाजपा प्रदेशाध्यक्ष वीडी शर्मा और पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती के प्रभाव को तय करेगा विधानसभा का चुनाव ।

छतरपुर की छह सीटों पर उतरे कई चेहरों का भविष्य तय करेगा इस बार का चुनावी फैसला । छतरपुर जिले में इस बार विधानसभा चुनाव पर प्रत्याशियों से ज्यादा भाजपा, कांग्रेस और सपा के दिग्गज चेहरों पर नजर है क्योंकि बुंदेलखंड में कुछ सीट ऐसी हैं,जहां से हार जीत के साथ ही सपा प्रमुख अखिलेश यादव भाजपा,पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती और भाजपा प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा सहित कांग्रेस के दिग्विजय सिंह की प्रतिष्ठा दांव पर है। सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने छतरपुर की महाराजपुर और निवाड़ी विधानसभा में पूरा जोर लगा दिया है। क्योंकि पिछली बार छतरपुर से बिजावर सीट सपा को मिली थी। इसलिए वह प्रदेश में कहीं न कहीं अपना वजूद बनाए रखने के लिए ताबड़तोड़ सभाएं करते रहे। जिले की महाराजपुर सीट पर कांग्रेस से बागी हुए अजय दौलत तिवारी के समर्थन में अखिलेश यादव ने चुनावी सभाएं कीं और नौगांव में पार्टी के लिए लोगों को संगठित करने का काम किया। बुंदेलखंड में चुनाव के नजदीक कुछ दिन अखिलेश यादव खजुराहो में डेरा डाले रहे।
चुनावी परिणाम आने में अभी करीब सात दिन बाकी हैं। चुनावी कयास भले ही किसी भी पार्टी के हार जीत के लगाए जाते रहे हो लेकिन असल फैसला 3 दिसंबर को ही सामने आएगा। अपने नाम का झंडा गाड़ने झौंकी पूरी ताकत बुंदेलखंड में छतरपुर टीकमगढ़ और निवाड़ी में पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती,भाजपा प्रदेशाध्यक्ष वीडी शर्मा और सपा मुखिया अखिलेश यादव ने शुरू ये ही अपना प्रभाव जमा रखा था। कहीं न कहीं इन दिग्गजों के चाहने वाले ही चुनावी मैदान में उतरे हैं इसलिए इन तीनों दिग्गजों की प्रतिष्ठा का भी सवाल है। हालांकि इस बार उमा भारती चुनावी मैदान में कम नजर आईं। खास बात यह है कि बुंदेलखंड की सीटों पर भोपाल और यूपी से नजरें गढ़ी हुई हैं।
सपा मुखिया अखिलेश यादव ने एड़ी चोड़ी का जोर लगाया है। भाजपा कांग्रेस के प्रभाव के बीच अखिलेश यादव भी नौगांव, निवाड़ी और चंदला आदि सीटों पर अपना झंडा गाड़ने तुले हुए हैं। क्योंकि इन जगहों पर अखिलेश यादव ने एड़ी चोड़ी का जोर लगाया है। 

*कुछ चेहरों का भविष्य तय करेगा चुनाव*
इस बार का चुनाव जो पिछला चुनाव हारे और इस बार पहली बार चुनाव में खड़े हुए प्रत्याशियों के लिए बेहद अहम है। क्योंकि इस बार की हार जीत आने वाले दिनों की राजनीति तय करेंगे।
छतरपुर से ललिता यादव के लिए यह चुनाव बहुत अहम है। भाजपाइयों के कड़े अंदरूनी विरोध के चलते वह टिकट पाने में कामयाब रही थीं और उन्होंने पूरी दमदारी से चुनाव भी लड़ा है लेकिन छतरपुर से कांग्रेस प्रत्याशी रहे आलोक चतुर्वेदी अपनी पहले से ही चुनावी चौसर बिछाए बैठे थे। इस कड़े चुनावी मुकाबल में कौन अधिक भारी है, यह कह पाना मुश्किल है। क्योंकि यहां कांग्रेस से बागी हुए बब्बू राजा के चुनावी मैदान में आने से त्रिकोणीय मुकाबला हो गया है। इधर ललिता यादव तो शिवराज को जीत की बधाई तक देने पहुंच गई। त्रिकोणीय मुकाबले में फंसी महाराजपुर कांग्रेस से दौलत तिवारी के बागी होने के बाद से ही महाराजपुर में त्रिकोणीय मुकाबला कहा जा रहा था। यहां त्रिकोणीय मुकाबले में सीट फंसी हुई है। महाराजपुर से कौन जीतेगा यह कह पाना मुश्किल है। महाराजपुर से पहली बार भाजपा से चुनावी मैदान में उतरे कामाख्या प्रताप सिंह को मिला युवाओं का साथ चुनावी समीकरण बदलने का काम कर सकता है। इधर कांग्रेस के नीरज दीक्षित की घर-घर तक पकड़ रही है। बसपा भी सबसे आगे रहने के दावे कर रहे हैं। अब दोनों ही युवाओं में कौन भारी रहा है यह फैसला 3 दिसंबर को सामने आएगा। पंपा।【Photo Courtesy Google】

★ब्यूरो रिपोर्ट स्पर्श देसाई√•Metro City Post•News Channel•#मध्यप्रदेश#चुनाव# कांग्रेस#भाजपा

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