*ओजत स्वर्ण भवन का मुंबई में कालबादेवी रोड पर उ‌द्घाटन 1 मई 2024 बुधवार को सुबह 11 से 1 बजे तक होगा*/रिपोर्ट स्पर्श देसाई

*ओजत स्वर्ण भवन का मुंबई में कालबादेवी रोड पर उ‌द्घाटन 1 मई 2024 बुधवार को सुबह 11 से 1 बजे तक होगा*/रिपोर्ट स्पर्श देसाई

【मुंबई/रिपोर्ट स्पर्श देसाई】हिंदुस्तान चैंबर आफ कोमर्स के भूतपूर्व अध्यक्ष और फिक्की क एक्जीक्यूटिव सदस्य शिखरचंद जैन और मेसर्स ऋषि एंटरप्राइजेज द्वारा नव निर्मित भवन *ओजत स्वर्ण* मुंबई कालबादेवी रोड पर उ‌द्घाटन 1 मई, 2024, बुधवार को सुबह 11 से 1 बजे तक होगा। इसका उद्वाटन स्वामी डॉ.शैलेन्द्र सरस्वती (ओशो के अनुज और मां अमृत पिया) के करकमलों से होगा। इस समारोह के मुख्य अतिशि के रूप में महाराष्ट्र के कैबिनेट मंत्री मंगल प्रभात लोढ़ा, महाराष्ट्र विधानसभा के अध्यक्ष राहुल नार्वेकर और भूतपूर्व न्यायमूर्ति केके तातेड़ उपस्थित रहेंगे। सोनीपत में 6 एकड़ में आश्रम रखने वाले डॉक्टर स्वामी सरस्वती और मां अमृत प्रिया भौतिकवाद और अध्यात्मा के महासंगम विषय पर संबोधित करेंगी। कालबादेवी रोड पर सोजत स्वर्ण भवन के उद्‌घाटन समारोह में एक मई को सुबह 0:00 से शाम 5:00 बजे तक रहेगा। ओशो का ध्यान प्रयोग होगा, प्रवचन होगा और प्रश्नों के उत्तर भी दिए जाएंगे । शिखरचंद जैन द्वारा सोजत राजस्थान में 20 करोड़ रुपए की लागत से 28 एकड़ में ओशो ध्यान केंद्र आश्रम स्थापित कर रहे हैं। यहां एक लाख वर्ग फुट का निर्माण किया जाएगा। यह आश्रम डेढ़ वर्ष में तैयार हो जाने का अनुमान है। दौरान ओशो के मेडिटेशन और सेलिब्रेशन से संबंधित जानकारी दी गई थी। सदगुरु ओशो के अनुसार पूर्व और पश्चिम का मिलन अर्थात आध्यात्मिक परंपरा और सांसारिक गतिविधियों का एकीकरण जरूरी है । जिस तरह गौतम बुद्ध आत्मज्ञान,शांति, प्रेम और करुणा के प्रतीक हैं। उसी तरह ग्रीक जोरबा भौतिक धन धान्य और विलासिता के प्रतीक है। सद्‌गुरु ओशो ध्यान और विज्ञान के संतुलन पर जोर देते हैं। पूर्व और पश्चिम दोनों संस्कृतियों का समन्वय चाहते हैं । वे सांसारिक सफलता,सुविधा और स्वास्थ्य के सहयोग से आंतरिक शांति, प्रीति,समाधि को समान रूप से महत्वपूर्ण बताते हैं। संक्षेप में इस संश्लेषण को 'जोरबा दी बुद्ध' कहकर पुकारते हैं । पूरे इतिहास में मानवता, खंडित ढंग से जीत रही है। कुछ भौतिकवादी और कुछ आत्मवादी हो गए हैं । यद्यपि सच्ची पूर्णता इन विपरीत तत्वों के बीच सामंजस्य स्थापित करने में निहित है। ओशो के क्रांतिकारी नजर में भौतिकवादी अंधे और आत्मवादी लंगड़े हैं। पौराणिक कथा में जिस प्रकार एक अंधा और एक लंगड़ा परस्पर सहयोग से सुलगते जंगल में अपनी रक्षा करते है, उसी प्रकार से संपूर्ण मानवता को संभावित तृतीय विश्व युद्ध के लटकते जोखिम का सामना करने के लिए एकजुट होना चाहिए। लंगड़े व्यक्ति द्वारा निर्देशित दिशा में लंगड़ा व्यक्ति चले तो दोनों अग्नि से बच सकते हैं। ध्यान और विज्ञान के संयोजन की अत्यधिक जरूरत है। वैश्विक तबाही से बचने के लिए बाह्य शक्ति के साथ आंतरिक शांति भी होनी चाहिए । अशांत व्यक्तियों का शक्तिशाली होना जितना खतरनाक है, उतना शांत लोगों का अशक्त होना खतरनाक है। इस प्रकार अपने-अपने ढंग से दोनों अधूरे अपंग और अस्वस्थ हैं। दोनों के संतुलन से पूर्ण और स्वास्थ्य इंसानियत का जन्म संभव है। आलसी पूर्व और अतिक्रर्मठ पश्चिम के बीच संश्लेषण की तत्काल आवश्यकता है।【Photos by MC0】

★ब्यूरो रिपोर्ट स्पर्श देसाई√•Metro City Post•News Channel•#भवन#स्वर्ण:#

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