*देश में भारी बारिश के दौरान उपलब्ध भारी मात्रा में पानी को संग्रहित करने की पर्याप्त व्यवस्था नहीं है*/रिपोर्ट स्पर्श देसाई
*देश में भारी बारिश के दौरान उपलब्ध भारी मात्रा में पानी को संग्रहित करने की पर्याप्त व्यवस्था नहीं है*/रिपोर्ट स्पर्श देसाई
【मुंबई?/रिपोर्ट स्पर्श देसाई】मनुष्य सचमुच कृतघ्न है। गलतियाँ स्वयं करता है और दोष प्रकृति को देता है। यदि सूखा पड़े तो भी प्रकृति को दोष दें और यदि अत्यधिक वर्षा हो तो भी प्रकृति को दोष दें। लेकिन प्रकृति वास्तव में ईमानदार है, इसलिए हर साल सही समय पर बारिश होती है। यदि प्रकृति मनुष्य की तरह बेईमान होती, तो इस पृथ्वी पर कोई भी जीवित प्राणी जीवित नहीं बच पाता। कहने का तात्पर्य यह है कि कुछ लोग पिछले कुछ दिनों से देश में हो रही भारी बारिश और कई जगहों पर बाढ़ की स्थिति पैदा होने के लिए प्रकृति को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं लेकिन प्रकृति क्या करेगी? इस देश में हर साल होने वाली लाखों क्यूसेक बारिश वस्तुतः बर्बाद हो जाती है। और जब कम बारिश होती है और सूखे जैसे हालात पैदा होते हैं तो इस बर्बाद पानी की जरूरत पड़ती है लेकिन देश में भारी बारिश के दौरान उपलब्ध भारी मात्रा में पानी को संग्रहित करने की पर्याप्त व्यवस्था नहीं है। और ऐसी व्यवस्था बनाने के प्रयास ही किये गये थे लेकिन वास्तव में कुछ नहीं हुआ। नदी जोड़ो परियोजना को लेकर सड़क से लेकर दिल्ली तक नेता बोले. लेकिन ये प्रोजेक्ट पूरा नहीं हो सका। किसी राज्य में नदी जोड़ो परियोजना कम से कम पायलट आधार पर पूरी होनी चाहिए थी। जिस दिन यह नदी जोड़ो परियोजना पूरी हो जायेगी उस दिन किसी भी राज्य में सूखा नहीं पड़ेगा और चाहे कृषि हो, औद्योगिक हो, पीने का हो, बूंद-बूंद पानी कम नहीं पड़ेगा। इस समय भारत के 10 राज्यों में भारी बारिश हो रही है। इस बारिश के पानी से कई जगहों पर नदियों में बाढ़ आ गई। इस बाढ़ में फंसे लोगों को बचाना एक कठिन जिम्मेदारी है। तूफानी जल की बर्बादी की योजना कब बनाएं? इससे नदियों का तल सिकुड़ गया है। फलस्वरूप एनडीआरएफ और सेना को प्रदर्शन करना होगा। तो कुछ लोग बारिश को कोस रहे हैं लेकिन बारिश में क्या खराबी है? किसी भी स्थूल क्षेत्र में पानी जमा क्यों हो जाता है? इसके अलावा बांध या झीलें क्यों ओवरफ्लो हो जाती हैं? सरकार इसके सारे कारण जानती है लेकिन इसके खिलाफ उपाय नहीं किये जाने के कारण बाढ़ की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। वहीं बरसात के मौसम में लोगों को परेशानी होती है।
सिर्फ महाराष्ट्र की बात करें तो महाराष्ट्र में पिछले चार दिनों से भारी बारिश हो रही है। मराठवाड़ा,विदर्भ और पश्चिम महाराष्ट्र के साथ रत्नागिरी, सिंधुदुर्ग,ठाणे,रायगढ़,पालघर जिलों में सुद्धा तूफानी बारिश हो रही है। इस पानी के कारण नदियां और नाले उफान पर हैं । बांध ओवरफ्लो होने के कारण पानी छोड़ा जा रहा है । यह छोड़ा गया पानी जलग्रहण क्षेत्र के गांवों में प्रवेश कर रहा है और लोगों के बीच तबाही मचा रहा है लेकिन अगर ये सब जल नियोजन ठीक से किया गया होता तो आज ये स्थिति पैदा नहीं होती,आज शहर के पास के गांवों में सीमेंट के जंगल खड़े हैं ताकि बारिश का पानी जमीन के अंदर न जाए। बारिश का पानी जमीन के अंदर कैसे जाएगा? हर जगह डामरीकरण और सीमेंटीकरण हो रहा है इसलिए होने वाली बारिश का पानी सभी सतहों पर जमा हो जाता है। इसके अलावा नालों पर अनाधिकृत निर्माण कर नालों के मुहाने बंद कर दिए गए हैं अत: स्थूल क्षेत्र में जल को साधनों द्वारा समुद्र तक जाने का कोई मार्ग नहीं है इसीलिए शहरों में पानी भर जाता है। ग्रामीण क्षेत्रों में नदी के बर्तनों को भरकर गाड़ दिया जाता है इसलिए अभी भी पर्याप्त बांध नहीं बनाये गये हैं। जिन लोगों के लिए योजना बनाई जाती है उनके लिए दिया गया पैसा राजनीतिक नेता और सरकारी अधिकारी खा जाते हैं इसलिए ये परियोजनाएं अभी भी पूरी नहीं हुई हैं और नहीं होगा क्योंकि अगर प्रोजेक्ट का काम एक साल के लिए भी रुक जाए तो अगले साल काम की लागत दोगुनी बढ़ जाती है। दिलचस्प बात यह है कि बढ़े हुए खर्च का प्रावधान करने के बाद भी काम पूरा नहीं हुआ है। दरअसल इन सभी बातों की जांच उच्चतम स्तर पर होनी चाहिए क्योंकि इसमें शामिल लोग सरकार में बैठे हैं और समाज में सिर उठाकर चल रहे हैं । क्या उसे सज़ा नहीं मिलनी चाहिए? मेरा मतलब है कि वे अपराध करें और दोष प्रकृति को दें, यह कैसा न्याय है? मानसून के दौरान महाराष्ट्र में भारी जल भंडारण आया इससे 10 नदियों का रास्ता बदल गया है। नदियों के दोनों किनारों पर अतिक्रमण.उपलब्ध है लेकिन इसे संग्रहीत करने के लिए चूंकि सरकार के पास प्लानिंग नहीं है इसलिए एक साल में कम ये भी स्वीकार्य है लेकिन प्रदेश में थोड़ी सी वर्षा होने पर भी नदियाँ उफान पर होती हैं और नदियों का पानी गांव के खेतों में घुस जाता है। अत्यधिक हानि। इसके लिए सरकार जिम्मेदार है क्योंकि सरकार अनावश्यक चीजों पर खर्च करती है लेकिन भारी बारिश के दौरान जमा हुए पानी का उपयोग नहीं किया जाता है ।
महाराष्ट्र में जायकवाड़ी गोसीखुर्द जैसी बड़ी जल परियोजनाएं हैं। कुछ छोटे बांध भी हैं लेकिन ये बांध और जलाशय उपलब्ध जल भंडारण की दृष्टि से कमतर हैं। राज्य सरकार ने बांधों के लिए करोड़ों रुपये आवंटित किये लेकिन यह कागज पर ही रह गया क्योंकि आज बांधों के काम में भारी भ्रष्टाचार है और सरकार में बैठे भ्रष्ट लोगों के कारण महाराष्ट्र में अगर आधी बारिश भी हो जाए तो सूखे जैसी स्थिति बन जाती है। मानसून के मौसम में कोंकण में सबसे अधिक वर्षा होती है। दुर्भाग्य से कोंकण में जल भंडारण की कोई व्यवस्था उपलब्ध नहीं है। यहां इतने सारे बांध हैं कि आप उंगलियों पर गिन सकते हैं लेकिन इनका निर्माण निम्न गुणवत्ता का है इसलिए जब ये बांध ओवरफ्लो होते हैं तो जलग्रहण क्षेत्र के लोगों को सचमुच अपनी जान बचाने के लिए रुकना पड़ता है क्योंकि अगर ये बांध टूट गए तो भारी तबाही मच जाएगी इसलिए नदी जोड़ो परियोजना इतनी महत्वपूर्ण थी। राज्य सरकार सौंदर्यीकरण, नेताओं की मूर्तियों और स्मारकों पर पैसा खर्च करती है लेकिन जल ही मनुष्य का जीवन है। इसके थेम्बा थेम्बा को ध्यान में रखते हुए अगर एक बार इस पर कुछ बड़ा खर्च किया जाता और नदी जोड़ परियोजना जैसी बहुत जरूरी परियोजनाएं पूरी की जातीं तो महाराष्ट्र में कभी पानी का अकाल नहीं पड़ता।
लाड़की बहन और लाड़का भाऊ जैसी योजनाओं की घोषणा करके करोड़ों रुपये खर्च करने के बजाय अगर सरकार इन्हीं लाड़की बहन और लाड़की भाऊ की जरूरत के पानी पर पैसा खर्च करती तो पूरा महाराष्ट्र सचमुच धन्य हो जाता। चुनाव में वोट पाने के लिए लोगों को मुफ्त पैसे बांटने की योजनाएं ठीक हैं लेकिन जब लोगों को सरकार से मुफ्त चीजें लेने की आदत हो जाएगी तो लोग सरकार पर सवाल नहीं उठाएंगे फिर लोगों को कड़ी मेहनत करने की आदत डालें लेकिन मुफ्त में कुछ भी देने की आदत न डालें। लाड़की बहिन योजना देखना ठीक है। उससे प्रदेश की बहनों को लाभ होगा। इतने कमजोर नहीं कि सरकारी पैसे पर निर्भर रहे। हमारी मां-बहनें काम करती हैं । वे कड़ी मेहनत करते हैं और राज्य के विकास में बहुत योगदान देते हैं तो जब वे व्यापार कर रहे थे तो क्या उन्हें सरकारी खजाने से भुगतान करना आवश्यक था? महाराष्ट्र की किसी प्यारी बहन ने सरकार से ऐसी मदद की गुहार लगाई थी। सरकार ने सिर्फ विधानसभा चुनाव पर नजर रखकर महिलाओं का वोट पाने के लिए यह फिजूल चाल चली है । यदि आप महिलाओं की मदद करना चाहते हैं तो 10,000 रुपये प्रति माह पर काम करने वाली हमारी आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं का वेतन बढ़ाएँ। महिलाओं के लिए रोजगार के अवसर उपलब्ध करायें। इस पर पैसा खर्च करें लेकिन आज सरकार की स्थिति बहुत खराब है, सरकार के पास पैसा नहीं है फिर भी लाडकी बहन योजना जैसी महँगी योजनाएँ क्यों लागू की जाती हैं? यदि इन महंगी योजनाओं के लिए आवश्यक धन का उपयोग नदी जोड़ परियोजना में किया गया होता तो महाराष्ट्र के एक भी गांव में पानी की कमी नहीं होती। सूखे में भी महाराष्ट्र की कृषि फलती-फूलती। किसान समृद्ध होता। प्यारी बहनें अपनी दुनिया में ख़ुशी से रहतीं लेकिन ये बात सरकार को कौन बताएगा? उनकी नजर सिर्फ वोटों पर है और महिलाओं के वोट पाने के लिए ही लाड़की बहिन योजना जैसी महंगी योजनाएं लाई जा रही हैं इसलिए सरकार की इस फिजूलखर्ची की जितनी निंदा की जाए कम है। सिर्फ पानी बचाओ, पानी बचाओ जैसे नारे दिए जाते हैं लेकिन जरूरी कदम क्यों नहीं उठाए जाते? ये जनता का सरकार से सवाल है।【Photos : Google】
★ब्यूरो रिपोर्ट स्पर्श देसाई√•Metro City Post•News Channel•#बारिश#पानी बचाने की योजना#भारत#महाराष्ट्र
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