*साल 2020 तक मुंबई की सत्र अदालतों में द्वितीय श्रेणी के गंभीर अपराध आई.पी.सी मामलों के 85% अभियुक्तों को बरी कर दिया गया था*/रिपोर्ट स्पर्श देसाई
*साल 2020 तक मुंबई की सत्र अदालतों में द्वितीय श्रेणी के गंभीर अपराध आई.पी.सी मामलों के 85% अभियुक्तों को बरी कर दिया गया था*/रिपोर्ट स्पर्श देसाई
द्वितीय श्रेणी के गंभीर अपराधों के पिछले 5 वर्षों में निर्णयों/आहरण (2,550 मामलों) की औसत संख्या के आधार पर और यह मानते हुए कि आगे कोई मामला अब से परीक्षण के लिए नहीं जाता है । साल 2020 तक लंबित सभी मामलों के निर्णय को पूरा करने में 30 वर्ष लगेंगे। साल 2020 तक मुंबई की सत्र अदालतों में द्वितीय श्रेणी के गंभीर अपराध आई.पी.सी मामलों के 85% अभियुक्तों को बरी कर दिया गया था। साल 2020 में मुंबई में बलात्कार के कुल मामलों में से 58% (445) मामलें बच्चों के खिलाफ किए गए थे। कुल 1,26,921 आई.पी.सी मामलों में से 96,057 (76%) मामले 2020 के अंत में जांच के लिए लंबित थे। साल 2020 तक बच्चों के खिलाफ अपराध (80%), महिलाओं (77%) और एस.एल.एल(विशेष और स्थानीय कानून) अपराधों (77%) के जांच के मामलों में उच्च लंबित देखी गई। फोरेंसिक जांच साल 2019 में 55% से गिरकर 2020 में से 50% हो गई। साल 2020 के अंत में फोरेंसिक जांच के लिए 16,608 मामले लंबित थे। साल 2020 तक कुल आई.पी.सी मामलों (2,55,355) के 98% (2,49,027) मामलें परीक्षण के लिए लंबित थे। जांच अधिकारियों की कुल कमी थी - उदाहरण के लिए, पुलिस उप-निरीक्षक (पी.एस.आई) पद में 18% कमी और सहायक पुलिस उप-निरीक्षक (ए.एस.आई) पदों में 20% की कमी देखी गई थी। फोरेंसिक प्रयोगशालाओं में कर्मियों की कमी (45%) देखी गई । जिसमें वैज्ञानिक अधिकारियों के लिए स्वीकृत 28 पदों में से कोई भी पद नहीं भरा गया। मार्च 2021 को सत्र न्यायालय के लोक अभियोजकों के पद में 30% कर्मियों में कमी (50 में से 35 काम कर रहे) देखी गई थी । सत्र न्यायालय के न्यायाधीशों के पदों को भरने में 30% की कमी देखी गई, जहां मार्च 2021 तक स्वीकृत कुल 98 न्यायाधीशों में से केवल 69 न्यायाधीशों को काम करते हुए देखा गया था। मुंबई में गत दिनों प्रजा फाउंडेशन ने *मुंबई में पुलिस और कानून व्यवस्था की स्थिति 2021* पर अपनी रिपोर्ट जारी की थी । जिसमें मुंबई में पुलिस और कानून व्यवस्था की स्थिति में मानव संसाधन,निगरानी और जवाबदेही, संवेदीकरण और सुधार जैसे विभिन्न पहलुओं में सुधार की आवश्यकता पर प्रकाश डाला था।
कोविड-19 प्रकोप ने हम सब के जीवनों पर एक वैश्विक प्रभाव डाला है और हमारे जीवन के विभिंन प्रणालियों को परीक्षण में डाला है। जिस प्रकार डॉक्टर, नर्स और अन्य स्वास्थ्य कर्मी ज़्यादा काम करने लगे । उसी तरह हमारे पुलिस कर्मियों को भी ज़्यादा काम था। अक्सर अपनी जान जोखिम में डालकर (मुंबई में साल 2020 में 100 पुलिस कर्मियों की मौत कोविड -19 के कारण हुई थी ।) उन्होंने शहरों में कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए ड्यूटी की थी। हम इन चिंता जनक समय में उनकी निस्वार्थ सेवा के लिए मुंबई पुलिस कर्मियों का धन्यवाद करते हैं। *प्रजा फाउंडेशन* की *ट्रस्टी निताई मेहता* ने ऐसा कहा था। हालांकि रिपोर्ट में पाया गया कि साल 2020 में बड़े अपराधों में मामूली कमी आई है लेकिन ऐतिहासिक आंकड़ों को देखते हुए पता चलता है की पुलिस और कानून व्यवस्था की स्थिति में सुधार नहीं आया है। बढ़ती जांच और आई.पी.सी के मामले,पॉक्सो मामलों में विसंगतियां,फोरेंसिक जांच में कमी,लंबित परीक्षण आदि अभी भी शहर में प्रचलित हैं । पॉक्सो अधिनियम के अनुसार पॉक्सो के सभी मामलों के फैसले की सुनवाई पॉक्सो अदालतों में होनी चाहिए और अपराध के संज्ञान के समय से एक साल की अवधि में पूरी होनी चाहिए, हालांकि साल 2020 तक कुल पॉक्सो मामलों में से 28% मामलें विशेष पॉक्सो अदालतों में जाँच-परख नहीं किये गए और कुल मामलों में से 49% (2018), 48% (2019) और 45% (2020) को निर्णय प्राप्त करने में 1 से 3 साल लग गए थे। मुंबई में पुलिस और कानून व्यवस्था विभागों की स्थिति में कमियों के लिए कर्मियों की भारी कमी को काफी हद तक जिम्मेदार ठहराया जा सकता है । 31 जुलाई 2021 तक स्वीकृत पुलिस कर्मियों के पदों की संख्या 51,255 थी । जिनमें से 41,396 कर्मी काम कर रहे थे । जो 19% की कमी दर्शाता है। इसके अलावा साल 2020 तक फोरेंसिक विभाग को भेजे गए 50% मामले लंबित थे । *प्रजा फाउंडेशन के प्रमुख रिसर्च एंड डाटा, योगेश मिश्रा* ने खुलासा किया था। न्यायपालिका के लिए अधिवेशन न्यायालय के न्यायाधीशों के पद भी उचित रूप से नहीं भरी गई। यह अधिवेशन न्यायालय के लोक अभियोजकों की हालत भी ऐसी है। मुंबई की बढ़ती आबादी के साथ शेष स्वीकृत पदों को भरना ही महत्वपूर्ण नहीं है बल्कि परीक्षणों की बढ़ती संख्या से निपटने के लिए प्रत्येक वर्ष स्वीकृत पदों की संख्या पर फिर से विचार करना भी महत्वपूर्ण नहीं है । ऐसा निताई मेहता ने कहा था। मिश्रा ने आगे बात को जोड़ते हुए कहा था कि हालांकि नए कर्मियों को नियुक्त करना महत्वपूर्ण है । उनके लिए मकानों/क्वार्टरों आवंटन जैसी अन्य सुविधाओं को सुनिश्चित करना भी उतना ही महत्वपूर्ण है । साल 2020 में बड़े पैमाने पर 31,839 (62%) आवास इकाइयों की कमी थी । जबकि केवल 18,402 (36%) आवास इकाइयों का आवंटन किया गया था। महाराष्ट्र में साल 2014 में पुलिस शिकायत प्राधिकरण (पी.सी.ए) की स्थापना की गई थी लेकिन सितंबर 2021 तक पी.सी.ए कोंकण प्रभाग के लिए चालू नहीं था । जिसमें मुंबई क्षेत्र भी शामिल है। पुलिस और कानून व्यवस्था कार्यों को अलग करना यह सुनिश्चित करता है कि मामलों की जांच में शामिल पुलिस कर्मियों को कानून व्यवस्था के कार्य करने के लिए बांटा न जाए। इस संशोधन से अलग जांच इकाई के कर्मचारियों का उपयोग किया जा सकेगा । जो मामलों की समय पर जांच कर सकेंगे। यूनिट स्टाफ के पृथक्करण के लिए 2020 के आंकड़े उपलब्ध नहीं है। इसके अलावा राज्य सुरक्षा आयोग (एस.एस.सी) जो व्यापक नीतिगत दिशा-निर्देश निर्धारित करता है और पुलिस कर्मियों के प्रदर्शन का मूल्यांकन करता है वह भी स्थापित नहीं किया गया है । मुंबई विधानसभा के सदस्यों (विधायकों) को यह सुनिश्चित करने की जरूरत है कि विचार-विमर्श के माध्यम से सुधार सहसंबंध किए जाएं । हालांकि *पुलिस और स्थापना* पर अधिकतम प्रश्न (97 प्रश्न) पूछे गए थे। जबकि इस क्षेत्र में सुधार को प्रभावी ढंग से लागू नहीं किया गया है । मिश्रा ने अपनी बात में इस बात को जोड़ा था।
मेहता ने निष्कर्ष निकालते हुए कहा कि इसके अलावा पर्याप्त पुलिस बल,फोरेंसिक कर्मियों,न्यायिक कर्मियों के लिए और प्रभावी जांच और मामलों की सुनवाई के लिए स्वीकृत पदों को भरने की सख्त जरूरत है। पुलिस द्वारा मामलों को निपटाना और अत्याचारों के खिलाफ निर्णय लेने के लिए स्वतंत्र प्राधिकार देना,पॉक्सो अधिनियम जैसे विशेष कानूनों के कार्यान्वयन की प्रभावी निगरानी भी बेहतर पुलिस व्यवस्था की दिशा में महत्वपूर्ण कदम हैं, हालांकि शहर के नागरिक भी अपराध को कम करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं इसलिए पुलिस-नागरिक संबंधों को बेहतर बनाने के लिए सामुदायिक पुलिसिंग को लागू करने के साथ-साथ बच्चों के यौन शोषण को रोकने के लिए जागरूकता पैदा करने और लोगों में एक बहु-हितधारक दृष्टिकोण अपनाने की जरूरत है।
*प्रजा के बारे मे*
प्रजा फाउंडेशन हमारी सरकार को जवाबदेह बनाने के लिए पिछले दो दशकों से काम कर रही है। नागरिक मुद्दों पर आँकड़ों का अध्ययन करके और नागरिकों, मीडिया और सरकार और प्रशासनिक निकायों को इसकी जानकारी प्रसारित करके, प्रजा जनप्रतिनिधियों के साथ भी काम करती हैं। यह जन-प्रतिनिधियों को उनके कार्य में त्रुटियों को सुधारने में सहायता करने,सूचना की पूर्णता को बढ़ाने और स्थिति में सुधार के लिए उचित उपाय करने के लिए प्रेरित करने के रूप में है ।प्रजा का उद्देश्य लोगों के जीवन को सरल बनाना,नागरिकों को अधिकार देना और सरकार को सही स्थिति बताना और साथ ही भारत के नागरिकों के जीवन स्तर में सुधार करना है। प्रजा लोगों की भागीदारी के माध्यम से एक जवाबदेह और कुशल समाज के निर्माण के लिए प्रतिबद्ध हैं। 【 Photo Courtesy Google】
★ब्यूरो रिपोर्ट स्पर्श देसाई √•Metro City Post•News Channel•#प्रजा फाउंडेशन
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