*महज एक दिन में कैसे हुई मुख्य चुनाव आयुक्त अरुण गोयल की नियुक्ति? सुप्रीम कोर्ट के सवाल पर केंद्र ने पेश किया फाइल*/रिपोर्ट स्पर्श देसाई

*महज एक दिन में कैसे हुई मुख्य चुनाव आयुक्त अरुण गोयल की नियुक्ति? सुप्रीम कोर्ट के सवाल पर केंद्र ने पेश किया फाइल*/रिपोर्ट स्पर्श देसाई
 

【मुंंबई/रिपोर्ट स्पर्श देसाई】एक हप्ते पहले मुख्य चुनाव आयुक्त की पोस्ट पर अरुण गोयल की नियुक्ति की गई थी। अब यह नियुक्ति प्रकिृया सुर्खियों में आ गई हैं। दरशल 19 नवंबर को मुख्य चुनाव आयुक्त के तौर पर नियुक्त हुए अरुण गोयल की नियुक्ति फाइल पर बिजली की रफ्तार के काम किया गया हैं। जिसके कारण आज गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग से अरुण गोयल की नियुक्ति प्रकिृया को लेकर सवाल किया हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने 19 नवंबर को नियुक्त किए गए मुख्य चुनाव आयुक्त की फाइल को सुप्रीम कोर्ट के समक्ष एक हप्ते के भीतर जमा करने के लिए केंद्र सरकार को आदेश दिया था। नियुक्ति फाइल को सुप्रीम कोर्ट के समक्ष जमा करने की आखिरी तारीख 24 नवंबर यानी आज हैं। आज सुबह ही अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी ने फाइल बेंच के समक्ष प्रस्तुत की हैं।

SC on Arun Goel Appointment फाइल देखने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मुख्य चुनाव आयुक्त कि नियुक्ति पर बिजली की रफ्तार से फाइल को क्लियर किया हैं। आगे कोर्ट ने कहा कि मेरा सवाल मुख्य आयुक्त की योग्यता पर नहीं हैं। मेरा सवाल मुख्य आयुक्त नियुक्ति प्रकिया के लिए हैं।

IAS अरुण गोयल ने 18 नवंबर को VRS लिया और 19 नवंबर को उन्हें चुनाव आयुक्त बना दिया गया। इस नियुक्ति पर सवाल उठातेे हुए सीनियर एडवोकेट प्रशांत भूषण ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी।बुधवार को हुई सुनवाई के दौरान गोयल की नियुक्ति से संबंधित फाइल को देखने की कोर्ट की इच्छा पर अटार्नी जनरल आर वेंकटरमणि ने आपत्ति जताई थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने आपत्ति खारिज कर दी। वेंकटरमणि ने कहा कि कोर्ट चुनाव आयुक्तों और मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) की नियुक्ति के बड़े मुद्दे को सुन रहा है। ऐसे में वह प्रशांत भूषण द्वारा उठाए गए एक व्यक्तिगत मामले को नहीं देख सकता है। चुनाव आयुक्त की नियुक्ति के लिए बनेगा स्वतंत्र पैनल? सुप्रीम कोर्ट ने फैसला रखा सुरक्षित हैं ।

 SC में राजनीतिक दलों के नाम में धार्मिक शब्द और चिन्ह के इस्तेमाल के खिलाफ याचिका, चुनाव आयोग ने दिया ये जवाब । चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल जवाब में कहा कि मौजूदा कानून के मुताबिक ऐसा कोई प्रावधान नहीं है, जिनके जरिए अपने नाम में धार्मिक शब्द/धार्मिक चिन्ह का इस्तेमाल करने वाली राजनीतिक पार्टियों की मान्यता रद्द की जा सके ।

चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि 2005 में चुनाव आयोग ने नीतिगत फैसला लिया कि नाम में धार्मिक शब्दों का इस्तेमाल करने वाली राजनीतिक दलों को मान्यता नहीं दी जाएगी । उसके बाद से इलेक्शन कमीशन ने ऐसी किसी पार्टी का रजिस्ट्रेशन नहीं किया है, पर यहां याचिकाकर्ता की ओर कई ऐसी पार्टियों का हवाला दिया गया है, जिनका रजिस्ट्रेशन 2005 से पहले हुआ था. कोर्ट में दायर अर्जी में याचिकाकर्ता ने AIMIM, इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग, हिंदू एकता दल जैसी पार्टी का उदाहरण दिया है ।

इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने 14 नवंबर को चुनाव आयोग को निर्देश दिया था कि वह राजनीतिक दलों पर धार्मिक नामों और प्रतीकों के दुरुपयोग का आरोप लगाने वाली याचिका पर जवाब दाखिल करे. निर्वाचन आयोग की ओर से पेश वकील ने न्यायमूर्ति एम आर शाह और न्यायमूर्ति हिमा कोहली की पीठ से याचिका पर जवाब दाखिल करने के लिए समय मांगा था । कोर्ट ने न्यायालय ने वकील के अनुरोध को ध्यान में रखते हुए मामले को 25 नवंबर को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध कर दिया था । सुप्रीम कोर्ट सैयद वसीम रिज़वी की याचिका पर सुनवाई कर रही है, जिसमें कहा गया है कि धार्मिक प्रतीकों का इस्तेमाल जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 के प्रावधानों का उल्लंघन करता है । न्यायालय ने सितंबर में निर्वाचन आयोग को नोटिस जारी किया था ।

 एक ही दिन में VRS लिया, मंत्रालय से फाइल पास, PM से लेकर राष्ट्रपति की 24 घंटे में मंजूरी... चुनाव आयुक्त की नियुक्ति पर SC ने क्या कहा ?

सुप्रीम कोर्ट ने निर्वाचन आयुक्त के तौर पर अरुण गोयल की नियुक्ति में ‘‘जल्दबाजी'' पर बृहस्पतिवार को सवाल उठाए। वहीं, केंद्र ने न्यायालय की टिप्पणियों का विरोध किया और अटॉर्नी जनरल ने कहा कि गोयल की नियुक्ति से जुड़े पूरे मामले पर विस्तारपूर्वक गौर किया जाना चाहिए। मामले की सुनवाई शुरू होने पर न्यायमूर्ति के एम जोसेफ की अगुवाई वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने निर्वाचन आयुक्त के तौर पर गोयल की नियुक्ति से जुड़ी मूल फाइल पर गौर किया और कहा कि यह किस तरह का मूल्यांकन है? हम अरुण गोयल की योग्यता पर नहीं बल्कि प्रक्रिया पर सवाल उठा रहे हैं।

पीठ ने सवाल किया कि गोयल की चुनाव आयुक्त के तौर पर नियुक्ति में ‘‘बहुत तेजी'' दिखायी गई और उनकी फाइल 24 घंटे भी विभागों के पास नहीं रही। केंद्र ने अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमानी के जरिए इसका प्रतिवाद करते हुए पीठ से नियुक्ति प्रक्रिया से जुड़े पूरे मुद्दे पर विचार किए बगैर टिप्पणी न करने का पुरजोर अनुरोध किया। सुनवाई के दौरान जब अटॉर्नी जनरल दलीलें दे रहे थे तो वकील प्रशांत भूषण ने पीठ के समक्ष दलीलें रखने की कोशिश की। इस पर शीर्ष विधि अधिकारी ने भूषण से कहा,‘‘ कृपया थोड़ी देर के लिए चुप रहिए।''

 शीर्ष अदालत ने निर्वाचन आयुक्त और मुख्य निर्वाचन आयुक्त की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम जैसी व्यवस्था बनाने का अनुरोध करने वाली याचिकाओं पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया और संबधित पक्षों से पांच दिन में लिखित जवाब देने को कहा। पीठ में शामिल न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी ने वेंकटरमानी से कहा, ‘‘आपको अदालत को सावधानीपूर्वक सुनना होगा और सवालों का जवाब देना होगा। हम किसी उम्मीदवार पर नहीं बल्कि प्रक्रिया पर सवाल कर रहे हैं।'' इस पर अटॉर्नी जनरल ने कहा कि अदालत के सवालों का जवाब देना उनका दायित्व है।

पीठ ने कहा कि 1985 बैच के भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी गोयल ने एक ही दिन में सेवा से स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले ली, एक ही दिन में कानून मंत्रालय ने उनकी फाइल को मंजूरी दे दी, चार नामों की सूची प्रधानमंत्री के समक्ष पेश की गई तथा गोयल के नाम को 24 घंटे के भीतर राष्ट्रपति से मंजूरी भी मिल गई। पीठ में न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस, न्यायमूर्ति ऋषिकेश रॉय और न्यायमूर्ति सीटी रविकुमार भी शामिल रहे।

पीठ ने कहा कि कानून मंत्री ने सूची में शामिल चार नामों में से किसी को भी ‘‘सावधानीपूर्वक नहीं चुना'' जिससे कि वे छह साल का कार्यकाल पूरा कर पाते। वेंकटरमानी ने कहा कि चयन की एक प्रक्रिया तथा मापदंड है और ऐसा नहीं हो सकता कि सरकार हर अधिकारी का पिछला रिकॉर्ड देखे और यह सुनिश्चित करें कि वह छह साल का कार्यकाल पूरा करें। निर्वाचन आयोग (चुनाव आयुक्त की सेवा और कारोबार का संव्यवहार शर्तों) अधिनियम, 1991 के तहत चुनाव आयुक्त का छह साल या 65 वर्ष की आयु तक का कार्यकाल हो सकता है। गोयल की नियुक्ति का हवाला देते हुए अटॉर्नी जनरल ने कहा कि उनका प्रोफाइल महत्वपूर्ण है न कि स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति, जिसे मुद्दा बनाया जा रहा है।

पीठ ने कहा कि 1991 का कानून कहता है कि चुनाव आयुक्त का कार्यकाल छह साल का है और सरकार को यह सुनिश्चित करना होता है कि इस पद पर आसीन व्यक्ति निर्धारित कार्यकाल पूरा करें। शीर्ष न्यायालय ने कहा कि वह उन वजहों का पता ‘‘नहीं लगा पा रहा है'' कि कानून मंत्री ने कैसे उन चार नामों का चयन किया जो निर्धारित छह साल का कार्यकाल पूरा नहीं करने वाले थे। मामले में सुनवाई चल रही है और पीठ ने कहा कि गोयल की नियुक्ति से जुड़ी मूल फाइल लौटायी जाए।

केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट के बुधवार को दिए निर्देश के अनुसार पीठ के समक्ष निर्वाचन आयुक्त के तौर पर गोयल की नियुक्ति की मूल फाइल पेश की जिस पर अदालत ने गौर किया। पीठ निर्वाचन आयुक्त और मुख्य निर्वाचन आयुक्त की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम जैसी व्यवस्था बनाने का अनुरोध करने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है। निवार्चन आयुक्त के रूप में अरुण गोयल की नियुक्ति बुधवार को सुप्रीम कोर्ट की पड़ताल के दायरे में आ गई, जिसने इस सिलसिले में केंद्र से मूल रिकार्ड तलब करते हुए कहा था कि वह (शीर्ष न्यायालय) जानना चाहता है कि कहीं कुछ अनुचित तो नहीं किया गया है।

पंजाब कैडर के आईएएस अधिकारी गोयल को 19 नवंबर को निर्वाचन आयुक्त नियुक्त किया गया। वह 60 वर्ष के होने पर 31 दिसंबर को सेवानिवृत्त होने वाले थे। अपनी नई भूमिका संभालने के बाद, गोयल मौजूदा सीईसी राजीव कुमार के फरवरी 2025 में सेवानिवृत्त होने के बाद अगले मुख्य निर्वाचन आयुक्त होंगे। मई में, पूर्ववर्ती सीईसी सुशील चंद्रा के सेवानिवृत्त होने के बाद निर्वाचन आयोग में एक पद रिक्त हुआ था।【Photo Courtesy Google】

★ब्यूरो रिपोर्ट स्पर्श देसाई√•Metro City Post•News Channel•#सुप्रीम कोर्ट#चुनाव आयोग

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