*इज़राइल और फ़िलिस्तीनियों के बीच ओस्लो समझौते क्या थे?*/रिपोर्ट स्पर्श देसाई
*इज़राइल और फ़िलिस्तीनियों के बीच ओस्लो समझौते क्या थे?*/रिपोर्ट स्पर्श देसाई
【मुंबई/रिपोर्ट स्पर्श देसाई】ओस्लो समझौते पर हस्ताक्षर किए जाने के तीन दशक बाद भी जिस शांति प्रक्रिया का वादा किया गया था वह नहीं हुई है । व्हाइट हाउस के लॉन में इजरायली प्रधान मंत्री यित्ज़ाख राबिन (बाएं) और फिलिस्तीनी मुक्ति संगठन के प्रमुख यासर अराफात (दाएं) और अमेरिकी राष्ट्रपति के बीच हाथ मिलाना प्रसिद्ध है। केंद्र में बिल क्लिंटन [एपी सौजन्य :फोटो] तीस साल पहले इजरायली और फिलिस्तीनी नेताओं ने वाशिंगटन में व्हाइट हाउस के लॉन में एक समझौते पर हस्ताक्षर करने के लिए मुलाकात की थी । कई लोगों का मानना था कि यह क्षेत्र में शांति का अग्रदूत हो सकता है। पहला ओस्लो समझौता यित्ज़ाक राबिन और यासर अराफात को एक साथ लाया था। पूर्व इजरायली प्रधान मंत्री थे और बाद वाले फिलिस्तीनी लिबरेशन ऑर्गनाइजेशन (पीएलओ) के नेता थे। उनके बीच हाथ मिलाना था । एक महत्वपूर्ण इशारा और समझौता होगा ।अगले वर्ष तत्कालीन इजरायली विदेश मंत्री शिमोन पेरेज़ के साथ उन दोनों को नोबेल शांति पुरस्कार प्राप्त हुआ था। तीनों व्यक्ति अब गुजर चुके हैं । राबिन सीधे तौर पर समझौते से संबंधित परिस्थितियों में थे। जिस शांति प्रक्रिया की शुरुआत समझौते से होनी थी । वह अभी भी कायम है । इज़राइल ने फ़िलिस्तीनी क्षेत्र पर अपना अवैध कब्ज़ा जारी रखा हैऔर फ़िलिस्तीनी लोग एक स्वतंत्र राज्य के करीब नहीं हैं और कुछ लोग दूर होने का तर्क देंगे। यहां वह सब कुछ है जो आपको ऐतिहासिक समझौते के बारे में जानने की आवश्यकता है और यह प्रतीत होता है कि यह विफल क्यों हुआ है ?
ओस्लो समझौते क्या थे?
पहले ओस्लो समझौता के बारे में जाने। जिसे ओस्लो समझौते के नाम से जाना जाता है पर 13 सितंबर 1993 को हस्ताक्षर किए गए थे। इजरायली और फिलिस्तीनी नेतृत्व के बीच समझौते में पहली बार प्रत्येक पक्ष ने दूसरे को मान्यता दी थी। दोनों पक्षों ने अपने दशकों पुराने संघर्ष को समाप्त करने का भी वादा किया था।एक दूसरा समझौता, जिसे ओस्लो दूसरा समझौता के नाम से जाना जाता है ।जिसे सितंबर 1995 में हस्ताक्षरित किया गया था और इसमें उन निकायों की संरचना पर अधिक विस्तार से चर्चा की गई थी जिन्हें शांति प्रक्रिया के तहत बनाया जाना था।
ओस्लो समझौते का उद्देश्य इजरायल के साथ एक फिलिस्तीनी देश के रूप में फिलिस्तीनी आत्मनिर्णय लाना था। इसका मतलब यह होगा कि इज़राइल जिसका गठन साल 1948 में ऐतिहासिक फ़िलिस्तीन की भूमि पर हुआ था । जिसे फ़िलिस्तीनी नकबा के नाम से जानते हैं । राष्ट्रीय संप्रभुता के फ़िलिस्तीनी दावों को स्वीकार करेगा हालाँकि दावे केवल ऐतिहासिक फ़िलिस्तीन के एक हिस्से तक ही सीमित होंगे । बाकी को इज़राइल की संप्रभुता के लिए छोड़ दिया जाएगा। उस लक्ष्य को पूरा करने के लिए कई कदम उठाने की आवश्यकता होगी, जिसमें साल 1967 से अवैध रूप से कब्जा किए गए फिलिस्तीनी क्षेत्रों से इजरायली सेना की चरणबद्ध वापसी और अंतिम स्थिति के मुद्दों को छोड़कर फिलिस्तीनी प्रशासन को प्राधिकरण का हस्तांतरण शामिल है। जेरूसलम (जिसका पूर्वी आधा हिस्सा फ़िलिस्तीनी भूमि पर कब्ज़ा है ।) और इज़रायल की अवैध बस्तियों पर जिस पर बाद की तारीख में बातचीत की जाएगी इसलिए समझौते से कथित तौर पर अस्थायी फ़िलिस्तीनी प्राधिकरण (पीए) का निर्माण हुआ था और वेस्ट बैंक में क्षेत्र को ए, बी और सी में विभाजित किया गया था। यह दर्शाता है कि पीए का प्रत्येक क्षेत्र में कितना नियंत्रण है। जो आज तक दोनों क्षेत्रों पर सीमित शासन चलाता है। पाँच वर्षों में अंतिम संधि पर पहुँचना था लेकिन ऐसा नहीं हुआ। पिछले वर्ष पहले ओस्लो समझौते पर हस्ताक्षर किए जाने के बाद अराफात (बाएं), पेरेज़ (केंद्र) और राबिन (बाएं) ने संयुक्त रूप से 1994 में नोबेल शांति पुरस्कार जीता था । [फाइल फोटो सौजन्य: रॉयटर्स]
दक्षिणपंथी इजरायलियों को फ़िलिस्तीनियों को कोई रियायत देने की कोई इच्छा नहीं थी और वे पीएलओ के साथ कोई समझौता नहीं चाहते थे। जिसे वे "आतंकवादी संगठन" मानते थे। इजरायली निवासियों को यह भी डर था कि इससे कब्जे वाले क्षेत्रों में अवैध बस्तियों से उन्हें बेदखल कर दिया जाएगा।
धूर दक्षिणपंथी तत्व ओस्लो समझौते के इतने विरोधी थे कि उन पर हस्ताक्षर करने के कारण1995 में राबिन की ही हत्या कर दी गई थी। जिन लोगों ने राबिन को उनकी मौत से पहले धमकी दी थी । उनमें इतामार बेन-गविर भी शामिल थे । जो अब इज़राइल के राष्ट्रीय सुरक्षा मंत्री हैं। इस बीच हमास और इस्लामिक जिहाद सहित फिलिस्तीनी समूहों ने चेतावनी दी कि दो-राज्य समाधान फिलिस्तीनी शरणार्थियों के उन ऐतिहासिक भूमि पर लौटने का अधिकार खो देगा । जो साल1948 में इज़राइल के निर्माण के समय उनसे जब्त कर ली गई थी। दिवंगत प्रमुख फ़िलिस्तीनी साहित्यिक आलोचक और कार्यकर्ता एडवर्ड सईद इसके सबसे मुखर आलोचकों में से थे । उन्होंने इसे "फ़िलिस्तीनी आत्मसमर्पण का एक साधन फ़िलिस्तीनी वर्साय" कहा था।
इजरायलियों ने साल 2015 में राबिन की हत्या की 20वीं बरसी की याद में एक रैली में हिस्सा लिया था।
समझौते कैसे टूटे?
ओस्लो समझौते में धीमी गति से गिरावट देखी गई । इज़राइल ने फ़िलिस्तीनी भूमि पर अपना कब्ज़ा जारी रखा और वेस्ट बैंक के अधिकांश हिस्से से सैन्य रूप से हटने से इनकार कर दिया था। जबकि पीए के पूर्ण प्रशासन के तहत मानी जाने वाली भूमि पर छापेमारी जारी रखी थी। राबिन की मृत्यु के बाद समझौते का विरोध करने वाले कई इजरायली नेता सत्ता में आए थे। उनमें वर्तमान इजरायली प्रधान मंत्री बेंजामिन नेतन्याहू और एरियल शेरोन भी शामिल थे। साल 2000 से 2005 तक दूसरे इंतिफादा के कारण विशेष रूप से फिलिस्तीनी पक्ष को भारी नुकसान हुआ और दोनों पक्ष समझौते को आगे बढ़ाने के लिए सहमत होने के लिए कम इच्छुक हो गए थे। वार्ता को फिर से शुरू करने का कोई भी प्रयास उसके बाद के दशक में विफल रहा और समझौते के अंतरिम खंड यथास्थिति बन गए हैं।
समझौते को अब किस प्रकार देखा जाता है?
कई फिलिस्तीनियों का मानना है कि इज़राइल ने वेस्ट बैंक में अवैध बस्तियों के विस्तार को उचित ठहराने के लिए ओस्लो समझौते का इस्तेमाल किया है। वास्तव में जैसे-जैसे ओस्लो समझौता धीरे-धीरे टूटता गया,इज़राइल ने अपने निपटान भवन को तीन गुना कर दिया था। इज़रायली शांति प्रचारक ड्रोर एटकेस के अनुसार साल 1993 और 2000 के बीच वेस्ट बैंक में इज़रायली आबादी विकास की अपनी सबसे तेज गति तक पहुंच गई थी। आज इज़रायली सरकार पर धुर दक्षिणपंथी धार्मिक और अतिराष्ट्रवादी राजनेताओं का वर्चस्व है । जिनका समझौता आंदोलन से घनिष्ठ संबंध है। हाल के महीनों में उन्होंने कब्जे वाले वेस्ट बैंक की बस्तियों में हजारों नए घरों को मंजूरी दी है। वास्तव में वामपंथी इजरायली आंदोलन पीस नाउ के अनुसार इस साल इजरायल ने अपने निपटान अनुमोदन के लिए एक रिकॉर्ड बनाया है । जनवरी से कम से कम 12,855 निपटान आवास इकाइयों को मंजूरी दी गई है। तीस साल बाद फ़िलिस्तीनी राज्य का दर्जा अल्प और यहाँ तक कि मध्यम अवधि में भी संभव नहीं है क्योंकि फ़िलिस्तीनी और इज़रायली नेताओं के बीच अंतिम-स्थिति वार्ता लगातार विफल रही है। वेस्ट बैंक खंडित हुआ है । नाकाबंदी वाली गाजा पट्टी अलग-थलग हो गई है । जिसे कई लोग "खुली हवा वाली जेल" कहते हैं और इज़राइल के पास पूर्वी यरुशलम पर कब्जा करने की कोई योजना नहीं है। इज़राइल और फ़िलिस्तीन दोनों में बहुत से लोग मानते हैं कि दो देशो के बीच समाधान ख़त्म हो चुका है।【 Photos Courtesy Reuters】
★ब्यूरो रिपोर्ट स्पर्श देसाई√•Metro City Post•News Channel•#इज़राइल#फ़िलिस्तीनी#समझौता
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