*दुनिया को विनाश से बचाने के लिए वैज्ञानिक सूर्य को ठंडा करने की तैयारी में*/रिपोर्ट स्पर्श देसाई

 *दुनिया को विनाश से बचाने के लिए वैज्ञानिक सूर्य को ठंडा करने की तैयारी में*/रिपोर्ट स्पर्श देसाई 



(मुंबई/रिपोर्ट स्पर्श देसाई) इसे सौर विकिरण संशोधन (एसआरएम) भी कहा जाता है। सोलर जियोइंजीनियरिंग जितना सरल और प्रभावी लगता है, इसे जोखिमों से जुड़ा भी कहा जाता है। सौरमंडल का एकमात्र ग्रह जिस पर जीवन है । वह अब गर्म भट्टी बनने की राह पर है। हमारी धरती बहुत तेजी से गर्म हो रही है। इसका एक उदाहरण मौसमी चक्र है जो हर साल बदलता है। उत्तर भारत में सर्दी का मौसम अभी खत्म नहीं हुआ है लेकिन तापमान ने अपना रंग दिखाना शुरू कर दिया है। मीठी ठंडक महसूस कराने वाली फरवरी इन दिनों 27 डिग्री तापमान के साथ अपनी रौनक खो चुकी है। ऐसा सिर्फ भारत में ही नहीं, दुनिया के हर हिस्से में हो रहा है। मौसम ने अपना मिजाज बदला है और अब लोगों को बाढ़,चक्रवात,तूफान, बर्फबारी और भीषण गर्मी देखने को मिल रही है।

तपती धरती को आग की भट्टी बनने से रोकने के लिए वैज्ञानिक अब एक अलग रास्ते पर चल पड़े हैं। बढ़ते प्रदूषण पर अंकुश लगाने और कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा को कम करने की कोशिश शायद इतनी जल्दी दुनिया को विनाश से नहीं बचा पाए, लेकिन अगर सूरज से आने वाली गर्मी कम हो जाए तो क्या होगा? सुनने में यह काफी आसान लगता है। इसे सोलर जियो इंजीनियरिंग कहा जाता है। इस पर शोध भी शुरू हो गया है। सोलर जियोइंजीनियरिंग क्या है ? हम आपको विस्तार से बताते हैं।

दुनिया भर के वैज्ञानिक ऐसी तकनीक पर काम कर रहे हैं जो सूरज की गर्मी का दोहन करेगी। यह एक ज्वालामुखी की राख के गुब्बारे की तरह है जो सूर्य की आने वाली किरणों को पृथ्वी पर आने से रोकता है। इससे सूर्य की किरणों की गर्मी कम मात्रा में पृथ्वी तक पहुंचने की कोशिश होगी। शोध इस सिद्धांत पर आधारित है कि विमानों और बड़े गुब्बारों की मदद से पृथ्वी के वायुमंडल की परत जिसे समताप मंडल कहा जाता है, में सल्फर का छिड़काव किया जाएगा ताकि यह सूर्य की किरणों को परावर्तित करे और सूर्य पृथ्वी पर चमके। अंदर कम गर्मी पहुंचेगी। इससे धरती के बढ़ते तापमान को कम रखने में मदद मिलेगी। ऐसा कहा जाता है कि इस प्रक्रिया से बहुत जल्दी परिणाम मिलेंगे। पूरी दुनिया को कार्बन मुक्त जीवाश्म ईंधन पारिस्थितिकी तंत्र में स्थानांतरित करने के बजाय।

रॉयटर्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक डिग्री इनिशिएटिव नाम के एक एनजीओ ने इस दिशा में काफी प्रगति की है और कहा है कि वह रिसर्च के लिए करीब 90 लाख डॉलर का फंड देगा। इसमें नाइजीरिया, चिली और भारत सहित 15 देशों के शोधकर्ता शामिल होंगे। इसे सौर विकिरण संशोधन (एसआरएम) भी कहा जाता है। इस फंडिंग के जरिए कंप्यूटर मॉडलिंग से लेकर इस प्रक्रिया के अध्ययन तक सब कुछ खर्च किया जाएगा। सोलर जियोइंजीनियरिंग जितना सरल और प्रभावी लगता है । इसे जोखिमों से जुड़ा भी कहा जाता है।

 रिपोर्ट में कहा गया है कि सौर विकिरण संशोधन हमारे जलवायु तंत्र को भी प्रभावित कर सकता है। जो मानसून,चक्रवात,गर्मी की लहरों और जैव विविधता से लेकर हर चीज को प्रभावित कर सकता है। यह दक्षिण अफ्रीका जैसे देशों में सूखे को और गंभीर बना सकता है अन्यथा फिलीपींस में चावल और मक्का का उत्पादन भी बुरी तरह प्रभावित हो सकता है। हार्वर्ड और ऑक्सफोर्ड जैसे विश्वविद्यालय भी इस शोध में जुटे हुए हैं। दुनिया के कई हिस्सों में इसका विरोध भी किया गया है क्योंकि एक ओर जहां इस शोध से ग्लोबल वार्मिंग में कमी आएगी । वहीं दूसरी ओर जलवायु तंत्र पर भी इसका बहुत गहरा प्रभाव पड़ने की संभावना है।

धरती पर आने वाली है आपदा - सूर्य का टूटे हिस्से से वैज्ञानिक भी हैरान और परेशान ।  Solar Flare And NASA सूर्य के चारों ओर अक्सर सौर ज्वालाएं देखी जाती हैं लेकिन हाल ही में वैज्ञानिकों ने जो घटना देखी है, उससे वैज्ञानिक चिंतित हैं । आपको बता दें कि ये सौर ज्वालाएं पृथ्वी पर संचार को काफी हद तक प्रभावित करती हैं। ऐसी ही एक आग ने शोधकर्ताओं को हैरान कर दिया है।

सूर्य टूटा है: खगोलविद हमेशा से सूर्य को समझने में रुचि रखते रहे हैं। शोधकर्ताओं ने अब तक सूर्य के बारे में काफी जानकारी जुटाई है और कई रहस्यों से पर्दा उठना अभी बाकी है। इन दिनों सूर्य में एक हलचल ने वैज्ञानिकों को हैरान कर दिया है। शोधकर्ताओं के अनुसार, सूर्य का एक बड़ा हिस्सा अपनी सतह से टूटकर उत्तरी ध्रुव के चारों ओर बवंडर जैसा भंवर बन गया है हालांकि वैज्ञानिक यह पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं कि यह कैसे हुआ लेकिन इस घटना के वीडियो ने अंतरिक्ष विज्ञान के लोगों को चकित कर दिया है। विशेष रूप से इस घटना को नासा के जेम्स वेब टेलीस्कोप द्वारा कैप्चर किया गया था और पिछले सप्ताह अंतरिक्ष मौसम भविष्यवक्ता डॉ.तमिता स्कोव द्वारा ट्विटर पर साझा किया गया था।

सौर ज्वालाएँ अक्सर सूर्य के चारों ओर देखी जाती हैं लेकिन हाल ही में वैज्ञानिकों ने जो घटना देखी है, उससे लोग चिंतित हैं। आपको बता दें कि ये सौर ज्वालाएं पृथ्वी पर संचार को काफी हद तक प्रभावित करती हैं। हालांकि वैज्ञानिक इस बात को लेकर काफी चिंतित हैं कि इसके फटने के बाद इसका धरती पर क्या असर होगा।

 सूर्य का जो हिस्सा टूटकर अलग हो गया है । वह एक विशाल भंवर जैसा दिखने लगा है। आपको बता दें कि सूरज की सतह पर अक्सर ज्वालाएं उठती हैं । जिन्हें सोलर फ्लेयर्स कहा जाता है। ये लपटें दूर तक जाती हैं। डॉ स्कोव ने बाद के एक ट्वीट में कहा कि सौर ध्रुवीय भंवर पर शोध से पता चला है कि लगभग 60 डिग्री अक्षांश पर ध्रुव के चारों ओर चक्कर लगाने में लगभग 8 घंटे लगते हैं यानी इस घटना में हवा की अधिकतम क्षैतिज गति 96 किमी/घंटा हो सकती है। यूएस नेशनल सेंटर फॉर एटमॉस्फेरिक रिसर्च के एक सौर भौतिक विज्ञानी स्कॉट मैकिन्टोश, जो दशकों से सूर्य का अवलोकन कर रहे हैं । उन्होंने स्पेस डॉट कॉम को बताया कि उन्होंने ऐसा 'भंवर' कभी नहीं देखा था।

अंतरिक्ष वैज्ञानिक अब इसके बारे में और जानकारी जुटा रहे हैं और इसका विश्लेषण कर एक स्पष्ट तस्वीर पेश कर रहे हैं। यद्यपि हमारे सूर्य पर चौबीसों घंटे नजर रखी जाती है लेकिन इस महीने यह शक्तिशाली ज्वालाओं की एक श्रृंखला के साथ आश्चर्यचकित करता है । जिसने पृथ्वी पर संचार को बाधित कर दिया है। साभार। (Photos Courtesy Google)

ब्यूरो रिपोर्ट स्पर्श देसाई √•Metro City Post•News Channel•#सूर्य

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