*इतिहास के अनदेखें पन्नें,बाबर का हिन्दूस्तान को जितना, घाघरा यूद्ध फतह*/रिपोर्ट स्पर्श देसाई
*इतिहास के अनदेखें पन्नें,बाबर का हिन्दूस्तान को जितना, घाघरा यूद्ध फतह*/रिपोर्ट स्पर्श देसाई
【मुंबई/रिपोर्ट स्पर्श देसाई】16वीं सदी का दौर अप्रैल 1526 से जब से वक्त ने अपनी करवट बदली थी,तब से हिंदुस्तान के तमाम सुल्तानों और राजाओं के सितारे गर्दिश में आ गए थे । ये वो दौर था जब समरकंद का एक भटकता हुआ कम उम्र बादशाह हिंदुस्तान की दहलीज को लांघकर एक के बाद एक फतह हासिल करता जा रहा था । दरअसल हम जिक्र हिन्दुस्तान में मुग़ल सल्तनत की बुनियाद रखने वाले बाबर का कर रहे हैं । जिसने आज के दिन ही (6 मई 1529) घाघरा नदी के किनारों पर तपते रेत के मैदान में महज 50,000 के लश्कर के साथ अपने से दुगने बड़े अफगानों के लश्कर को बदतरीन शिकस्त से दोचार किया था। इस जंग में तोपों, बंदूकों के अलावा नावों का भी भरपूर इस्तेमाल किया गया था। जंग के बाद अफगान फौज की कयादत कर रहे महमूद लोदी ने भागकर बंगाल में पनाह ली लेकिन बाबर और बंगाल सुल्तान नुसरत शाह के बीच संधि हो गयी नुसरत शाह ने अफगान विद्रोहियों और बाबर के किसी भी दुश्मन को पनाह ना देने का वादा किया।
इधर बिहार में *शेर खान (शेर शाह सूरी)* की कोशिशों से बाबर ने *बिहार* के *सुल्तान जलालुद्दीन लोहानी* की रियासत के कुछ हिस्सों को लेकर और उससे मुगलों के जेरे साया हुक्मरानी करने का अहद कबूल करवाकर उसे बिहार का हाकिम बना रहने दिया। उस वक्त बाबर शेर शाह सूरी से बहुत मुतास्सिर हुआ था । तब उसे अंदाजा भी नहीं रहा होगा की यही शेर शाह सूरी आने वाले समय में उसके बेटे हुमायूँ को हिंदुस्तान से खदेड़ देगा। घाघरा की जंग के बाद बाबर की सल्तनत काबुल और कंधार से लेकर बिहार तक फैली हुयी थी लेकिन ये जंग बाबर के जिंदगी की आखिरी जंग साबित हुयी। इस जंग के डेढ़ साल बाद ही बाबर की मौत हो गयी थी। (कर्टसी: हिस्ट्री अव्हर्स चैट)
★ब्यूरो रिपोर्ट स्पर्श देसाई√•Metro City Post•News Channel•#हिस्ट्री अव्हर्स
Comments