*कहाँ से आया सेंगोल?इस सवाल के दो मायने हैं । एक तो ये कि सेंगोल आख़िर है क्या ?और इसका इतिहास क्या है? दूसरा ये कि अचानक चर्चाओं में कहाँ से आया सेंगोल?*/रिपोर्ट स्पर्श देसाई
*कहाँ से आया सेंगोल?इस सवाल के दो मायने हैं । एक तो ये कि सेंगोल आख़िर है क्या ?और इसका इतिहास क्या है? दूसरा ये कि अचानक चर्चाओं में कहाँ से आया सेंगोल?*/रिपोर्ट स्पर्श देसाई
【मुंबई/रिपोर्ट स्पर्श देसाई】पहले मूल वाले सवाल पर...तो बात है देश की आज़ादी से ठीक पहले की. तय हो चुका था कि सत्ता को हस्तांतरित कर अंग्रेज़ जल्द ही अपने मुल्क लौट जाएंगे. ऐसे में अंतिम वायसराय माउंटबेटन ने जवाहरलाल नेहरू से पूछा, 'क्या सत्ता हस्तांतरण की कोई प्रतीकात्मक प्रक्रिया, चिह्न या समारोह होता है?'नेहरू बोले, 'राजाजी से बेहतर कौन बता सकता है ।' तब 'राजाजी' यानी चक्रवर्ती राजगोपालाचारी ने सुझाया कि चोल वंश की एक परंपरा है । जिसमें 'सेंगोल' को सत्ता हस्तांतरण का प्रतीक माना जाता है । जाता हुआ राजा,आते हुए राजा को पंडे-पुजारियों की मौजूदगी में सेंगोल सौंपता है और आदेश देता है कि वह प्रजा पर 'उचित और न्यायसंगत' तरीक़े से राज करे । सेंगोल तमिल भाषा के 'सेम्मई' शब्द से बना है जिसका अर्थ धर्म / सच्चाई या न्याय परायण है । सेंगोल का सुझाव अप्रूव हो गया तो राजाजी ने इसे बनवाने के लिए तमिलनाडु के कई मठों से संपर्क साधा. अंततः थिरुवदुथुराई अधीनम (मठ) को इसका ज़िम्मा सौंपा गया । मठ के मुखिया ने फिर मद्रास के 'वुमुदी बंगारू चेट्टी ज्वैलर्स' को सेंगोल बनाने को कहा. तब सुधाकर और एथिराजुलू नाम के दो युवा इस काम पर लगे । दोनों अभी जीवित हैं । 5 फ़ुट लम्बा सेंगोल जब बन कर तैयार हो गया तो उसे दिल्ली लाया गया । 14 अगस्त 1947 की रात भव्य आयोजन हुआ । गाजे-बाजों के साथ चांदी के थाल पर सजा, पीताम्बर में लिपटा हुआ सेंगोल नेहरू के घर '17 यॉर्क रोड' पहुंचा । पुजारी ने नेहरू पर जल छिड़का, उनके माथे पर भस्म रगड़ी, कंधों पर पीताम्बर लपेटा और करीब दस बजकर पैंतालीस मिनट पर सेंगोल उन्हें थमा दिया । आगे चलकर इस सेंगोल को म्यूज़ीयम में रखवा दिया गया । ये तो थी सेंगोल की मूल कहानी ।
अब सवाल ये कि आज़ादी के 75 साल बाद अचानक सेंगोल फिर से कैसे निकल आया?तो हुआ यूं कि पिछले साल 'आज़ादी का अमृत महोत्सव' मनाते हुए तमिलनाडु में सेंगोल का जिक्र छिड़ा । वैसे छिड़ता तो कई बार रहा है लेकिन इस बार अपने मोदी जी ने सुन लिया । बस फिर क्या था,तय हो गया कि सेंगोल वाली सेरेमनी फिर से की जाए । जब नेहरू जी ने की तो मोदी जी क्यों न करें?तो अब स्वतंत्रता दिवस के दिन मोदी जी पंडे-पुजारियों से सेंगोल की भेंट लेंगे और फिर उसे वापस म्यूज़ीयम न भेजकर नए संसद भवन में लोकसभा अध्यक्ष की कुर्सी के पास रख देंगे । बाक़ी अगले साल चुनाव हैं. तब सत्ता-हस्तांतरण के इस 5 फ़ुट लंबे प्रतीक को मोदी जी ख़ुद लेंगे या किसी और को देंगे, इसका फैसला देश की जनता को करना है ।साभार - राहुल कोटियाल।【Photos Courtesy Facebook】
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