*नदी के अधिकार: कौन जिम्मेदार?नदियाँ जीवित इकाई हैं : मेधा पाटकर*/रिपोर्ट स्पर्श देसाई

*नदी के अधिकार: कौन जिम्मेदार?नदियाँ जीवित इकाई हैं: मेधा पाटकर*/रिपोर्ट स्पर्श देसाई


【मुंबई/रिपोर्ट स्पर्श देसाई】मुंबई मराठी पत्रकार संघ के सभागार में आयोजित एक पत्रकार परिषद में शोशल एक्टिविस्ट मेधा पाटकर ने कहा कि नदियां जीवित इकाई हैं। बाढ़ से नागरिकों की सुरक्षा, उपलब्ध पानी के बचाव और यहां तक की हमारे ख़ुद के जीवन चक्र को स्थिर बनाये रखने के लिए हमें नदियों की रक्षा करनी होगी और उन्हें "निर्मल, अविरल बहने देना होगा। इन नदियों को क्या हो रहा है: मुला,मुठा,पवना,इंद्रायणी, रामनदी, भीमा और भामा ? नदियों को मारा जा रहा है। इनमें कचरा,गंदगी,मल जल,चिकित्सिय और औद्योगिक अपशिष्ट, सीवेज से दूषित किया जा रहा हैं। सीपीसीबी और र एमपीसीबी के अनुसार (मुठा-मुला प्राथमिकता और मुला-मुठा पवना, इद्रायणी और भीमा प्राथमिकता । महाराष्ट्र में सबसे प्रदषित नदियाँ हैं। मेट्रो परियोजना,नए पुल,रिंग रोड,अभी चल रहे तथा प्रस्तावित रिवर फ्रंट डेवलपमेंट और तटबंधों जैसे बुनियादी ढांचों के निर्माण ने पुणे डिवीजन में अब तक नदियों को अपूरणीय क्षति पहुंचाई है और भविष्य में भी पहुंचाएंगे।

नदियों की वर्तमान चुनौतियाँ: अत्यधिक प्रदूषित नदियाँ केंद्र सरकार से धन की उपलब्धता के बावजूद पिछले 8 वर्षों से JICA (द जापान इंटरनेशनल कोऑपरेशन एजेंसी) परियोजना के अन्तर्गत पानी की गुणवत्ता में कोई भी सुधार नहीं हुआ है।  भारी बाढ़ का खतरा: अत्यधिक अतिक्रमण मेटो नए पल और रिवर फ्रंट डेवलपमेंट जैसी अविचारी परियोजनाओं ने नदी के प्रवाह को रोक दिया है,नदियों को संकचित कर दिया है जिसके कारणवश उनकी वहन क्षमता कम हो गई है। रिवर फ्रंट डेवलपमेंट परियोजना दद्वारा प्राकृतिक हरित क्षेत्र को नष्ट किया जा रहा है जिससे तापमान में वृद्धि हो रही है। विकास, सौंद करण और मनोरंजक सविधाओं के नाम पर प्राकृतिक स्थानों का विनाश मौजूदा प्राकृतिक हरित क्षेत्रों को ख़त्म किया जा रहा है। भूजल, झरने और उथले जलभूत कंक्रीटीकरण के कारण अवरुद्ध हो रहे हैं। 


प्रवाह में बाधाएँ:
 रिवर फ्रंट डेवलपमेंट, बैराज और के टी वियर जैसी बुनियादी ढांचा परियोजनाएँ नदियों के प्राकृतिक प्रवाह में बाधा डाल रही हैं। जलवायु परिवर्तन शामिल नहीं है: बुनियादी ढांचा परियोजनाओं की योजना बनाते समय जलवायु परिवर्तन और इसके पारिस्थितिक प्रभावों को ध्यान में नहीं रखा जाता है। मछली पकड़ने वाले समुदायों, डाउनस्ट्रीम गांवों आदि पर दीर्घकालिक प्रभावों के बारे में कोई विचार नहीं। मीठे पानी के पारिस्थितिकी तंत्र की सुरक्षा,संरक्षण और बहाली के लिए कोई नीति नहीं। चिंतित एवं समझदार नागरिकों की मांगे: किसी भी बुनियादी ढांचा परियोजना के लिए अवैज्ञानिक रूप से कोई पेड़ नहीं काटा जाएगा। (अनुच्छेद 21 के तहत "स्वस्थ पर्यावरण" का अधिकार) प्राकृतिक तटवर्ती क्षेत्र की सुरक्षा,संरक्षण और जीर्णोद्धार किया जाएगा। नर्दियों में प्रदूषण रोकना होगा 100% उपचार क्षमता और अपशिष्ट जल के पुनर्चक्रण को सर्वोच्च प्राथमिकता के रूप में क्रियान्वित किया जाना चाहिए। एमपीसीबी एक्शन प्लान के अनसार स्थानीय अधिकारियों को 60% उपचारित पानी का पुनर्चक्रण और पुनः उपयोग करना चाहिए। सभी एसटीपी में तृतीयक उपचार होना चाहिए। (सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसार अनुच्छेद 32 के तहत प्रदूषण मुक्त जल और.वायु का आनंद लेने का अधिकार) भूजल का संरक्षण- झरने उनके जल विभाजक और उथले जलभूत । नदियों को अपने स्थान पर प्राकृतिक रूप से बहने देना। नदियों का संकुचन नहीं होना चाहिए। किसी भी बनियादी ढांचा परियोजना के लिए नदी पारिस्थितिकी तंत्र पर विशेष जोर देने के साथ वैज्ञानिक पर्यावरणीय प्रभाव का आकलन भी किया जाना चाहिए। जल की उपलब्धता और वितरण में समानता और सामाजिक न्याय स्रोत क्षेत्रों से लेकर नीचे की ओर उजनी जलाशय तक प्रत्येक जीवित प्राणी के लिए पानी हो! सांस्कृतिक, प्राकृतिक एवं ऐतिहासिक धरोहरों का संरक्षण एवं पुनर्जीवन किया जाये। आखिर में उन्होंने ऐसा कहा था।【Photos by MCP】

★ब्यूरो रिपोर्ट स्पर्श देसाई√•Metro City Post•News Channel•#नदी#पाणी#बुनियादी ढांचा

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