*महाराष्ट्र में शरद पवार की पार्टी में फूट का फायदा कांग्रेस को मिलेगा,लोकसभा चुनाव में भाजपा को एकनाथ शिंदे और अजीत पवार का भी बोझ ढोना पड़ेगा*/रिपोर्ट स्पर्श देसाई
*महाराष्ट्र में शरद पवार की पार्टी में फूट का फायदा कांग्रेस को मिलेगा,लोकसभा चुनाव में भाजपा को एकनाथ शिंदे और अजीत पवार का भी बोझ ढोना पड़ेगा*/रिपोर्ट स्पर्श देसाई
【मुंबई/रिपोर्ट स्पर्श देसाई】राजनीति के दिग्गज माने जाने वाले शरद पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी में 2 जुलाई को ही टूट गई थी। हालांकि उसका फायदा अगले वर्ष होने वाले लोकसभा और विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को मिलेगा। सब जानते हैं कि शरद पवार ने कांग्रेस से अलग होकर ही अपने प्रभाव वाले महाराष्ट्र में एनसीपी का गठन किया था। अपनी पार्टी के नाम के साथ कांग्रेस शब्द जोड़ने के पीछे शरद पवार का यही मकसद था कि मुसलमानों के वोट मिल सके। पवार इस मकसद में कामयाब भी रहे। वर्ष 2019 में जब भाजपा और शिवसेना ने मिलकर चुनाव लड़ा तब भी एनसीपी को 53 सीटें मिली जबकि कांग्रेस को मात्र 45 सीट मिली। लोकसभा चुनाव में एनसीपी के चार सांसद बने तो कांग्रेस का एक। कांग्रेस माने या नहीं लेकिन शरद पवार ने कांग्रेस को हड़प कर लिया लेकिन अब जब पवार की पार्टी टूट गई है,इसका सीधा फायदा कांग्रेस को होगा। अपने भतीजे अजीत पवार से मार खाने के बाद शरद पवार ने कहा कि एनसीपी को दोबारा से खड़ा करेंगे लेकिन सवाल उठता है कि क्या महाराष्ट्र के मुस्लिम मतदाता शरद पवार पर भरोसा करेंगे? कर्नाटक का उदाहरण सामने है। कर्नाटक के मुसलमानों ने पहले जेडीएस को वोट दिए लेकिन जब जेडीएस के विधायक बिक गए तब हाल ही के चुनाव में मुसलमानों ने कांग्रेस के पक्ष में एक तरफा वोटिंग की। आज कर्नाटक की जीत से ही कांग्रेस उत्साहित है। यही वजह है एनसीपी की टूट में कांग्रेस अपनी जीत देख रही है। 2024 में लोकसभा के चुनाव के बाद ही सितंबर अक्टूबर में महाराष्ट्र विधानसभा के चुनाव होने हैं।
*अजीत और शिंदे का भाजपा पर बोझ*
अजीत पवार के समर्थन से महाराष्ट्र में एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली भाजपा शिवसेना की सरकार के पास 206 विधायकों का जुगाड़ हो गया है। यह सही है कि इससे विपक्षी एकता को भी झटका लगा है लेकिन अगले वर्ष होने वाले लोकसभा और विधानसभा चुनाव में महाराष्ट्र में भाजपा को एकनाथ शिंदे और अजीत पवार की राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं का बोझ भी ढोना पड़ेगा। महाराष्ट्र में लोकसभा की 48 सीटें हैं। एनसीपी के पास चार सीटें है। अजीत पवार चाहेंगे कि उन्हें कम से कम 10 सीटों पर भाजपा का समर्थन मिले। इसी प्रकार उद्धव ठाकरे वाली शिवसेना को तोडऩे वाले शिंदे भी चाहेंगे कि कम से कम 20 सीटों पर भाजपा उन के उम्मीदवारों का समर्थन करे। गत चुनावों में शिवसेना को 18 सीटें मिली थी लेकिन शिंदे की बगावत के बाद अधिकांश सांसद शिंदे के साथ आ गए और अब भाजपा को समर्थन दे रहे हैं। भाजपा को अपने कोटे से ही अजीत पवार और एकनाथ शिंदे को सीटें देनी पड़ेगी। इसी प्रकार विधानसभा चुनाव में भी जब गठबंधन होगा तो शिंदे और पवार अधिक से अधिक सीटों की मांग करेंगे। शिंदे और पवार भले ही अपनी अपनी पार्टियों को गर्त में पहुंचा दें लेकिन ये दोनों कभी भी भाजपा में मर्ज नहीं होंगे। ऐसी स्थिति में दोनों नेताओं की महत्वकांक्षाएं हमेशा भाजपा के सिरदर्द बनी रहेंगी। इसे भाजपा की राजनीतिक मजबूरी ही कहा जाएगा कि अजीत पवार और एकनाथ शिंदे जैसे नेताओं से गठबंधन करना पड़ रहा है।
*ऐसा ही हश्र होता है*
परिवारवादी पार्टियों का ऐसा ही हश्र होता है। शरद पवार की पार्टी का नाम भले ही राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी हो लेकिन उन्होंने अपने परिवार के सदस्यों को तरजीह दी। पहले अपने भतीजे अजीत पवार को आगे बढ़ाया तो अब अपनी पुत्री सुप्रिया सुले को पार्टी का अध्यक्ष बना दिया। पुत्री को आगे बढ़ाने से ही भतीजा नाराज हो गया। भतीजे की नाराजगी की वजह से ही परिवारवादी पार्टी टूट गई। यही हश्र शिवसेना का हुआ है। उद्धव ठाकरे ने भी अपने पुत्र आदित्य ठाकरे को आगे बढ़ाया तो एकनाथ शिंदे नाराज हो गए। उद्धव ठाकरे और शरद पवार के सामने अपने ही लोग सीना तान कर खड़े हैं। परिवारवादी पार्टियों में संगठन और कार्यकर्ताओं का कोई महत्व नहीं होता है। सा।【Photo Courtesy Google】
★ब्यूरो रिपोर्ट स्पर्श देसाई √•Metro City Post•News Channel•#शरद पवार#महाराष्ट्र#सरकार#अजीत पवार
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