*हिंदू समाज में पितृ पक्ष का अत्यधिक महत्व हैं, इन दिनों को अशुभ माना जाता हैं, कोई शुभ कार्य नहीं होते*/रिपोर्ट स्पर्श देसाई

*हिंदू समाज में पितृ पक्ष का अत्यधिक महत्व हैं, इन दिनों को अशुभ माना जाता हैं, कोई शुभ कार्य नहीं होते*/रिपोर्ट स्पर्श देसाई


【मुंबई/रिपोर्ट स्पर्श देसाई】हिंदू धर्म एक प्राचीन और जटिल धर्म है जो कई सदियों से भारत और उसके आसपास के क्षेत्रों में व्याप्त है। इसमें कई अनुष्ठान और परंपराएं हैं। जिनमें से एक पितृ पक्ष है। पितृ पक्ष एक 16-दिवसीय अवधि है जो आश्विन महीने (सितंबर-अक्टूबर) में पड़ती है और इसे मृत पूर्वजों के सम्मान और याद के लिए समर्पित किया जाता है।

-पितृ पक्ष का उद्देश्य:
पितृ पक्ष का मुख्य उद्देश्य मृत पूर्वजों को श्रद्धांजलि देना और उनके लिए प्रार्थना करना है। हिंदुओं का मानना है कि पूर्वजों की आत्माएं पृथ्वी पर भटकती हैं और उन्हें शांति और मोक्ष की आवश्यकता होती है। पितृ पक्ष के दौरान, लोग अपने पूर्वजों को तर्पण, पिंडदान और श्राद्ध जैसे अनुष्ठानों के माध्यम से प्रसन्न करने का प्रयास करते हैं।

-पितृ पक्ष में अनुष्ठान :
पितृ पक्ष के दौरान किए जाने वाले कई अनुष्ठान हैं, जिनमें शामिल हैं:

-तर्पण:
 यह एक अनुष्ठान है जिसमें पूर्वजों को पानी, फूल और कुश घास अर्पित की जाती है। माना जाता है कि तर्पण से पूर्वजों की प्यास बुझती है और उन्हें संतुष्टि मिलती है।
 
-पिंडदान: 
यह एक अनुष्ठान है जिसमें पूर्वजों के लिए पके हुए चावल के गोले बनाए जाते हैं और उन्हें गाय,कौवों और अन्य प्राणियों को अर्पित किया जाता है। माना जाता है कि पिंडदान से पूर्वजों को भोजन मिलता है और उनकी भूख मिटती है।
 
-श्राद्ध:
 यह एक अनुष्ठान है जिसमें पूर्वजों को भोजन, वस्त्र और अन्य उपहार अर्पित किए जाते हैं। श्राद्ध को परिवार के सभी सदस्यों द्वारा किया जाता है और यह पूर्वजों के सम्मान और स्मरण का एक महत्वपूर्ण अवसर है।

-पितृ पक्ष का सामाजिक-सांस्कृतिक महत्व:
पितृ पक्ष का हिंदू समाज में न केवल धार्मिक बल्कि सामाजिक-सांस्कृतिक महत्व भी है। यह एक ऐसा समय है जब परिवार के सदस्य एकत्र होते हैं। अपने पूर्वजों का जश्न मनाते हैं और उनके लिए प्रार्थना करते हैं। यह पारिवारिक बंधनों को मजबूत करने और पूर्वजों के साथ संबंधों को याद रखने का अवसर है।

-पितृ पक्ष का पारिस्थितिक महत्व:
पितृ पक्ष में किए जाने वाले कुछ अनुष्ठानों का पारिस्थितिक महत्व भी है। उदाहरण के लिए तर्पण से जलाशयों की सफाई में मदद मिलती है, जबकि पिंडदान से पक्षियों और अन्य जानवरों को भोजन मिलता है। यह दर्शाता है कि हिंदू धर्म प्रकृति और पर्यावरण का सम्मान करता है।

-पितृ पक्ष और आधुनिकता:
आधुनिकता के युग में, पितृ पक्ष की परंपरा कुछ हद तक बदल गई है। व्यस्त जीवन शैली और शहरीकरण के कारण, कुछ लोगों के लिए सभी अनुष्ठानों को करने के लिए समय निकालना मुश्किल हो जाता है। हालाँकि, पितृ पक्ष का महत्व बरकरार है और कई लोग कम से कम कुछ अनुष्ठानों में भाग लेने का प्रयास करते हैं।

-निष्कर्ष:
पितृ पक्ष हिंदू समाज में एक महत्वपूर्ण अवधि है जो पूर्वजों के सम्मान और स्मरण को समर्पित है। यह अनुष्ठानों,परंपराओं और सामाजिक-सांस्कृतिक मूल्यों का मिश्रण है जो पीढ़ियों से चले आ रहे हैं। पितृ पक्ष पूर्वजों के साथ संबंधों को मजबूत करता है। पारिवारिक बंधनों को मजबूत करता है और प्रकृति के प्रति सम्मान को बढ़ावा देता है। जबकि आधुनिकता ने कुछ हद तक इसकी प्रथाओं को बदल दिया है। पितृ पक्ष का महत्व हिंदू धर्म में अटूट बना हुआ है।

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