*भारत का वित्तीय क्षेत्र वैश्विक चुनौतियों और प्रणालीगत कमजोरियों का सामना कर रहा है*/रिपोर्ट स्पर्श देसाई
*भारत का वित्तीय क्षेत्र वैश्विक चुनौतियों और प्रणालीगत कमजोरियों का सामना कर रहा है*/रिपोर्ट स्पर्श देसाई
भारत का वित्तीय क्षेत्र वैश्विक झटकों, उच्च ऋण और तीव्र नवाचारों से जूझ रहा है। भारतीय रिज़र्व बैंक विनियामक ढाँचे को बढ़ा रहा है लेकिन निरीक्षण संबंधी खामियाँ बनी हुई हैं। खासकर गैर-बैंकिंग वित्तीय मध्यस्थों में। संकट प्रबंधन,साइबर सुरक्षा को मजबूत करना और ऋण के गलत आवंटन को संबोधित करना महत्वपूर्ण है। भारत का वित्तीय क्षेत्र वैश्विक वित्तीय प्रणाली के साथ गहराई से एकीकृत नहीं है हालाँकि देश अभी भी वैश्विक वित्तीय संकट से प्रभावित था। भारत के वित्तीय क्षेत्र पर वैश्विक झटकों के प्रभाव विविध और गहन हैं।
• कुछ प्रमुख प्रभावों में शामिल हैं:
- आर्थिक विकास में मंदी: वैश्विक वित्तीय संकट के परिणामस्वरूप भारत की आर्थिक वृद्धि में उल्लेखनीय गिरावट आई है। वित्तीय वर्ष 2008-2009 में औसत विकास दर में 2 प्रतिशत से अधिक की गिरावट आई।
- रुपये पर दबाव: वैश्विक झटकों के कारण निर्यात में कमी आई है और आयात लागत में वृद्धि हुई है । जिससे भारतीय रुपये पर दबाव पड़ा है।
- निर्यात में कमी: वैश्विक आर्थिक मंदी ने निर्यात मांग को गंभीर रूप से खराब कर दिया है। जिससे भारत के व्यापार प्रवाह पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है।
- ऋण संकट: पूंजी प्रवाह के उलट होने से घरेलू ऋण संकट पैदा हो गया है । जिससे उत्पादक क्षेत्रों में धन का प्रवाह प्रभावित हुआ है।
•अपने वित्तीय क्षेत्र पर वैश्विक झटकों के प्रभाव को कम करने के लिए भारत ने कई रणनीतियों को लागू किया है। जिनमें शामिल हैं:
- राजकोषीय प्रोत्साहन पैकेज: सरकार ने मांग को बढ़ावा देने, रोजगार सृजन और सार्वजनिक परिसंपत्तियों के विकास के लिए कर राहत प्रदान की और सार्वजनिक परियोजनाओं पर व्यय बढ़ाया।
-मौद्रिक नीति में ढील: भारतीय रिजर्व बैंक ने उत्पादक क्षेत्रों की जरूरतों को पूरा करने के लिए वित्तीय प्रणाली से धन के प्रवाह को सुविधाजनक बनाने के लिए उपाय अपनाए।
- संरचनात्मक सुधारों पर ध्यान केंद्रित: कृषि, सामाजिक क्षेत्रों और ग्रामीण विकास कार्यक्रमों जैसे प्रमुख क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करते हुए आर्थिक सुधारों को पुनर्जीवित करने के सुझाव दिए गए हैं।
- घरेलू बचत को बढ़ाना: सरकारी बचत और अंतर्निहित सब्सिडी को कम करने के प्रयास किए जा रहे हैं, जो उद्यम क्षेत्र की आवश्यकताओं को पूरा करने में मदद कर सकते हैं।
- बुनियादी ढांचे का विकास: बुनियादी ढांचे में निवेश बढ़ाना और इसके प्रदर्शन में सुधार करना आर्थिक विकास को प्रोत्साहित करने और अधिक निवेश आकर्षित करने में मदद कर सकता है।
•भारत की आर्थिक वृद्धि में गिरावट के कई कारण हो सकते हैं। जिनमें वैश्विक आर्थिक परिस्थितियाँ,आंतरिक नीतिगत चुनौतियाँ और विभिन्न उद्योगों में मंदी शामिल हैं।
-वैश्विक आर्थिक स्थिति: यदि वैश्विक अर्थव्यवस्था में मंदी आती है तो इसका प्रभाव भारत की निर्यात क्षमता और विदेशी निवेश पर पड़ सकता है। अंतरराष्ट्रीय व्यापार में मंदी,वैश्विक वित्तीय संकट या किसी अन्य देश की आर्थिक समस्याएँ भारत की निर्यात वृद्धि पर असर डाल सकती हैं।
-राजकोषीय स्थिति: सरकार का वित्तीय घाटा और ऋण स्तर आर्थिक वृद्धि को प्रभावित कर सकता है क्योंकि उच्च व्यय की आवश्यकता होती है।
-महंगाई: उच्च महंगाई दर उपभोक्ताओं की खरीद क्षमता को प्रभावित कर सकती है। जिससे घरेलू मांग में कमी आ सकती है।
महंगाई दर का बढ़ना उपभोक्ता खर्च को प्रभावित करता है। जिससे आर्थिक विकास कमजोर होता है।
-निवेश में कमी: यदि कंपनियाँ नए निवेश करने से हिचकिचाती हैं तो इससे विकास दर में गिरावट आ सकती है। विदेशी निवेश में कमी या अनिश्चितता से भी विकास में प्रभावित हो सकता है।
-नीतिगत चुनौतियाँ: सरकारी नीतियों में अस्थिरता या प्रभावी कार्यान्वयन की कमी भी आर्थिक वृद्धि को प्रभावित कर सकती है। RBI द्वारा ब्याज दरों में वृद्धि,महंगाई के कारण उपभोक्ता खर्च में कमी कर सकती है। जो आर्थिक विकास को प्रभावित कर सकती है।
-कोविड-19 का प्रभाव: महामारी के बाद की स्थिति में कई क्षेत्रों में सुधार धीमा हो सकता है । जिससे आर्थिक वृद्धि पर असर पड़ता है। महामारी के बाद की रिकवरी में धीमिकता,किसी भी नए वेरिएंट का उदय और स्वास्थ्य सेवाओं पर दबाव भी आर्थिक गतिविधियों को प्रभावित कर सकता है।
-विकासात्मक परियोजनाओं में रुकावट: अवसंरचना परियोजनाओं में देरी या प्रशासनिक बाधाएँ भी विकास को प्रभावित कर सकती हैं।
-कृषि क्षेत्र: कृषि उत्पादन में कमी, मौसमी परिवर्तन और किसानों के सामने आने वाली चुनौतियाँ भी समग्र आर्थिक वृद्धि को प्रभावित कर सकती हैं।
भारत की आर्थिक वृद्धि में गिरावट कई कारकों के कारण हो सकती है ।जिनमें वैश्विक आर्थिक परिस्थितियाँ,घरेलू नीतियों, और विशेष सेक्टर्स में चुनौतियाँ शामिल हैं। इन सभी कारकों के चलते भारत की आर्थिक वृद्धि में गिरावट आई हो ऐसा हो सकता है। सरकार और नीति निर्माताओं को इन चुनौतियों का सामना करने के लिए प्रभावी उपाय करने की आवश्यकता है। दूसरे कारणों के आलोक में भारत की सरकार और नीति निर्माता आर्थिक स्थिरता और वृद्धि को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न उपाय कर रहे हैं । जैसे कि सुधार उपायों को लागू करना,निवेश को आकर्षित करना और रोजगार के अवसर बढ़ाना। आर्थिक वृद्धि में स्थिरता लाने के लिए आवश्यक है कि ये सभी तत्व संतुलित और समन्वित तरीके से कार्य करें। 【Photos By Google】
★ब्यूरो रिपोर्ट स्पर्श देसाई√•Metro City Post•News Channel•#आर्थिकवृद्धि #गिरावट #कईकारक #कारण
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