मुंबई में प्रति 40,598 लोग दिठ एक सरकारी दवाखाना और पश्चिम एवं पूर्वी उपनगरों में क्रमशः 86,360 और 72,263 लोगों दिठ एक सार्वजनिक औषधालय हैँ / रिपोर्ट : रिपोर्ट: स्पर्श देसाई
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महानगर मुंबई में दिनांक 17 सितंबर को प्रजा फाउंडेशन की आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस में प्रजा फाउंडेशन के अध्यक्ष निताई मेहता ने" द स्टेट आफ हेल्थ इन मुंबई" विषय पर अपनी एक रिपोर्ट जारी करते हुए कहा कि इस रिपोर्ट में सरकारी दवाखानों और महानगर में बारिकाई से नजर रखते हुए प्राथमिक स्वास्थ्य की देखभाल लिए पूनःनिर्धारण और नवीनीकरण को महत्व देकर उसे उजागर किया गया हैं । बीएमसी के कानून के मुताबिक प्राथमिक स्वास्थ्य के लिए सेवा प्रदान करना बीएमसी का प्रमुख कर्तव्य हैं ।प्रजा के निदेशक मिलिंद महस्के ने इस मामले में कहा कि महानगर में मजबूत प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली होनी आवश्यक हैं , क्योंकि यह बात स्थानीय क्षेत्र पर आधारित हैं ।
मुंबई से साल 2018 पाये गये में सरकारी अस्पतालों के ओपीडी के आंकड़े बताते हैं कि कुल ओपीडी मरीजों में से 76 प्रतिशत सरकारी अस्पतालों में गये थे । जब की सिर्फ 24 प्रतिशत लोग दवाखानों में गये थे । जो लोग अस्पतालों में गये तो वह लोग क्यों गए ?
दवाखानों में जाने वालों को आंकड़ो के हिसाब से देखें तो मुंबई में प्रतिप्रति 64, 468 लोगों ने सरकारी दवाखानों की मुलाकात ली थी । जब की राष्ट्रीय शहरी स्वास्थ्य मिशन प्रति 15,000 की जन संख्या एक सरकारी दवाखाना पर निर्भर हैं ।
इसी तरह बीएमसी के अर्थ संकल्प और मानव संसाधन आवंटन पर नजर डाले तो हमें यह जानकारी मिलती हैं कि मुंबई में दवाखानों को प्राथमिकता नहीं दी जाती । साल 2017 -18 के दौरान बीएमसी के स्वास्थ्य अर्थ संकल्प के राजस्व का 74 प्रश हिस्सा अस्पतालों पर खर्च किया गया था, जबकि सिर्फ़ 26 प्रश राजस्व दवाखानों याने डिस्पेंसरी पर किया गया था । मानव संसाधन के संदर्भ में यह जानकारी मिली थी कि प्रति दवाखाना सिर्फ एक ही चिकित्सा कर्मचारी मौजूद था ।
निताई मेहता ने बताया था कि मुंबई में सरकारी स्वास्थ्य सुविधाओं में साल 2018 में एक लाख की आबादी पर कुल 74 चिकित्सक, पैरामेडिकल और नर्सिंग कर्मी उपलब्ध थे ।
निताई मेहता ने आगे बताया था कि सरकार आपूर्ति की दिशा में स्वास्थ्य सुविधाओं पर सबसिडी देना, से हटकर , मांग की दिशा में- बिमा के जरिए स्वास्थ्य के खर्च पर सबसिडी देना , की ओर आगे बढ़ती रही हैं । इसके बावजूद 20,187 परिवारों से किए गए सर्वेक्षण में 73 प्रश लोगों के पास बिमा नहीं था । जिनके पास बिमा था वो 25 प्रश लोगों के पास सिर्फ सरकारी बिमा था ।
मिलिंद महस्के ने बताया कि आयुष्मान भारत और राष्ट्रीय बिमा योजना जैसी सरकारी स्वास्थ्य बिमा योजनाओं को लेकर एक निजी सर्वेक्षण में यह जानकारी मिली कि सिर्फ 27 प्रश लोगों को ही ऐसी सरकारी योजनाओं की जानकारी थी । मुंबई वाले अपने स्वास्थ्य के मद्देनजर अपनी कमाई का अधिक हिस्सा खर्च कर रहे हैं । साल 2017 के 7.8 प्रश से बढ़कर साल 2019 में 9.7 प्रश हो गया था । स्वास्थ्य पर खर्च किये गये कुल खर्च में भारी वृद्धि देखी गई हैं । साल 2017 में 19,209 करोड़ थे , जो साल 2019 में 2,7,795 करोड़ रुपए हो गए हैं ।
मौजूदा हालात में महानगर में गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य की देखभाल सेवाएं की किफायत, अभिगम् और उपलब्धता
इन तीनों स्तंभों में सुधार की आवश्यकता हैं । कह कर उन्होंने अपनी बात समाप्त की थी ।
रिपोर्ट : स्पर्श देसाई √●Metro City Post # MCP●News Channel● के लिए...
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