बेनूर आंखों को नूर देने वाले कानपुर के मशहूर डॉ. महमूद रहमानी का हुआ इंतकाल / रिपोर्ट स्पर्श देसाई




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             【मुंबई / रिपोर्ट स्पर्श देसाई】









बेनूर आंखों को नूर देने वाले कानपुर के मशहूर डॉ. महमूद रहमानी का इंतकाल हो गया । 
                                                            
कानपुर के वरिष्ठ नेत्र चिकित्सक और कार्निया ट्रांसप्लांट के माहिर डॉ. महमूद रहमानी का रविवार 5अप्रैल को देर रात रीजेंसी अस्पताल में इंतकाल हो गया।

 उन्हें 22 मार्च को मस्तिष्क आघात के कारण यहां भर्ती कराया गया था। उन्होंने उन्होंने हजारों लोगों को निःशुल्क कार्निया प्रत्यारोपित कर लोगों को रोशनी दी।

 डॉ. रहमानी 22 मार्च को सिविल लाइंस स्थित अंपायर भवन की मस्जिद में जोहर (दो बजे की नमाज) की नमाज अदा करने गए थे। यहां उन्होंने मेराजुन्नबी पर तकरीर सुनी। वह इतने भावुक हो गए कि जार-ओ-कतार रोने लगे। कुछ देर बाद नमाज अदा करने लगे तो इसी दौरान वह गिर गए। वहां उनको ब्रैन अटैक आ गया था । इसके बाद उन्हें रिजेंसी अस्पताल ले जाया गया। तब से वह कॉमा में थे। मामूली सर्जरी की गई लेकिन डॉक्टरों को कामयाबी नहीं मिल सकी। डॉ. रहमानी की तीन बेटियां हैं जिसमें एक इन दिनों ऑस्ट्रेलिया में है। 

वह शहर के उन चुनिंदा नेत्र चिकित्सकों मेंकिए जाते थे जो नेत्र सर्जरी के माहिर थे। कश्मीर और कानपुर से पढ़ाई के बाद अपना कर्म क्षेत्र उन्होंने कानपुर को चुना। मुस्लिम जुबली इंटर कॉलेज के करीब एक छोटे से कमरे में उन्होंने शुरुआत की और देखते ही देखते वह ख्याति प्राप्त नेत्र चिकित्सकों में गिने जाने लगे।

उन्होंने नेत्र दान करने वाले सदस्यों के परिवार के सदस्यों को अमर ज्योति सम्मान की परंपरा उन्होंने शुरू कराई।

उन्हें स्थित कब्रिस्तान में सुपुर्द-ए-खाक किया गया। डॉ. रहमानी सिविल लाइंस स्थित अंपायर अपार्टमेंट में रहते थे। चमनगंज में शिफा आई रिसर्च सेंटर नाम से क्लीनिक चलाते थे।
 
यहां कार्निया प्रत्यारोपित कर उन्होंने 2500 से अधिक लोगों की जिंदगी को उजाले से भरा। शुरुआती तालीम मदरसे से लेने वाले डॉ. रहमानी ने जम्मू-कश्मीर मेडिकल कॉलेज से डॉक्टरी की पढ़ाई की थी। बेकनगंज की मशहूर रहमानी मार्केट इनके परिवार के नाम पर है।

शहर में कार्निया प्रत्यारोपण की शुरुआत की शहर में कार्निया प्रत्यारोपण की शुरुआत करने का श्रेय डॉ. रहमानी को जाता है। लोगों की जिंदगी रोशन करने की अपनी मुहिम के प्रति इस कदर समर्पित थे कि आधी रात भी सूचना मिले तो कार्निया लेने के लिए निकल पड़ते।

उनके जानने वाले बताते हैं कि एक बार वे धार्मिक यात्रा पर मक्का जा रहे थे। दिल्ली पहुंचने पर कानपुर से फोन पर सूचना मिली कि किसी का निधन हो गया है। उनसे कार्निया लेने का आग्रह किया। उन्होंने कहा कि इससे बड़ी सेवा और कुछ नहीं। वह कानपुर लौटे और कार्निया लेने के बाद फिर से अपनी यात्रा पर गए।

रिपोर्ट स्पर्श देसाई √●Metro City Post # MCP●News Channel ◆के लिए...

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