*संयुक्त राष्ट्र की 80वीं वर्षगांठ: चुनौतियों के बीच चिंतन का समय*/रिपोर्ट स्पर्श देसाई
*संयुक्त राष्ट्र की 80वीं वर्षगांठ: चुनौतियों के बीच चिंतन का समय*/रिपोर्ट स्पर्श देसाई
【मुंबई/ रिपोर्ट स्पर्श देसाई】संयुक्त राष्ट्र अपनी 80वीं वर्षगांठ मना रहा है। ऐसे में उसे भू-राजनीतिक गतिरोध और वित्त पोषण में कटौती सहित कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। शक्तिशाली सदस्य देशों के बीच मतभेदों के कारण संगठन की शांति को बढ़ावा देने की क्षमता बाधित हो रही है। अपने संघर्षों के बावजूद कई लोग तर्क देते हैं कि संयुक्त राष्ट्र वैश्विक सहयोग और मानवीय प्रयासों के लिए आवश्यक बना हुआ है हालांकि इसका भविष्य अनिश्चित है। संयुक्त राष्ट्र के बारे में कुछ जानकारी देखें तो जो बढ़ते संघर्षों और कूटनीतिक दरारों के बीच आज की दुनिया में प्रासंगिक बने रहने के लिए संघर्ष कर रहा है। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद स्थापित संयुक्त राष्ट्र ने 75 वर्षों तक संघर्षों को रोकने और वैश्विक कूटनीति को बढ़ावा देने का प्रयास किया है हालाँकि जैसे-जैसे दुनिया आपस में जुड़ती गई है। संयुक्त राष्ट्र को बढ़ती संख्या में अंतर्राष्ट्रीय संकटों के साथ तालमेल बनाए रखने और उन पर प्रभाव डालने के लिए संघर्ष करना पड़ा है। हाल के इतिहास में संघर्षों को रोकने या यहाँ तक कि उन्हें कम करने में संयुक्त राष्ट्र की अप्रभावीता देखी गई है। संयुक्त राष्ट्र में अमेरिकी राजदूत लिंडा थॉमस- ग्रीनफील्ड ने सूडान में अकाल के सामने अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की निष्क्रियता पर शर्म और शर्मिंदगी व्यक्त की। जहाँ नागरिक मिट्टी खाने को मजबूर हैं। न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र की वार्षिक महासभा को कई विश्व नेताओं ने संबोधित किया । सभी ने गाजा,यूक्रेन और सूडान में बढ़ते संकटों के बीच दुनिया की स्थिति की निंदा की। इजराइल के प्रधानमंत्री नेतन्याहू ने विशेष रूप से विद्रोही भाषण दिया। जिसके बाद हॉल से प्रतिनिधियों की एक धारा निकल गई। उन्होंने हिजबुल्लाह को अपमानित करना जारी रखने और अगर वे इजराइल पर हमला करते हैं तो ईरान पर हमला करने की कसम खाई। उन्होंने संयुक्त राष्ट्र को "यहूदी विरोधी पित्त का दलदल" करार दिया। संयुक्त राष्ट्र से शक्तिहीनता और हताशा की एक सामान्य भावना निकल रही है क्योंकि यह तेजी से बदलते और अस्थिर वैश्विक में प्रासंगिकता बनाए रखने के लिए संघर्ष कर रहा है । संयुक्त राष्ट्र (UN) की 80वीं वर्षगाँठ इस साल 2025 में मनाई जाएगी । एक ऐतिहासिक पड़ाव है। जो द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद स्थापित इस वैश्विक संस्था के सामने मौजूद चुनौतियों और भविष्य की दिशा पर चिंतन का अवसर देता है। साल 1945 में स्थापित संयुक्त राष्ट्र ने अंतरराष्ट्रीय शांति,सुरक्षा, मानवाधिकार और विकास जैसे क्षेत्रों में उल्लेखनीय भूमिका निभाई है लेकिन आज बदलती वैश्विक व्यवस्था में इसकी प्रासंगिकता और प्रभावशीलता पर सवाल उठ रहे हैं।
•प्रमुख चुनौतियाँ:
•बहुपक्षवाद का संकट:
-वर्तमान समय में राष्ट्रवाद और एकतरफ़ा नीतियों का उदय हो रहा है। जिससे बहुपक्षीय संस्थाओं की भूमिका कमज़ोर हुई है। अमेरिका,चीन और रूस जैसी महाशक्तियों के बीच तनाव ने UN की निर्णयन क्षमता को प्रभावित किया है।
•सुरक्षा परिषद में सुधार की माँग:
-UNSC की स्थायी सदस्यता और वीटो पावर पर पुरानी शक्तियों (अमेरिका, रूस, चीन, ब्रिटेन, फ्रांस) का एकाधिकार है। भारत,जापान,जर्मनी और अफ्रीकी देशों जैसे उभरते हुए देशों को प्रतिनिधित्व देने की माँग लंबे समय से लंबित है।
•जलवायु परिवर्तन और टिकाऊ विकास:
-आगामी साल 2030 एजेंडा के SDGs (सतत विकास लक्ष्य) को प्राप्त करने की दिशा में प्रगति धीमी है। जलवायु परिवर्तन,कोविड-19 के प्रभाव और आर्थिक असमानता ने वैश्विक सहयोग की आवश्यकता को बढ़ा दिया है।
•मानवाधिकार और संघर्ष प्रबंधन:
-यूक्रेन संकट,फिलिस्तीन-इज़राइल विवाद और अफ्रीका-मध्य पूर्व के संघर्षों में UN की भूमिका सीमित रही है। मानवाधिकार उल्लंघनों पर कार्रवाई में राजनीतिक हस्तक्षेप एक बड़ी बाधा है।
•वित्तीय संकट:
-कई सदस्य देशों द्वारा योगदान न देने से 80 वर्षों के सफ़र का बजट प्रभावित होता है। अमेरिका जैसे प्रमुख दाता देशों की अनिश्चित नीतियों से भी संसाधनों की कमी हो रही है।
•भविष्य की राह:
-सुधारों की आवश्यकता: UNSC का विस्तार,वीटो पावर में संशोधन और पारदर्शिता बढ़ाने की माँग तेज़ होनी चाहिए।
-प्रौद्योगिकी और नवाचार: डिजिटल डिवाइड को कम करने,साइबर सुरक्षा और कृत्रिम बुद्धिमत्ता जैसे क्षेत्रों में UN को अग्रणी भूमिका निभानी होगी।
-युवाओं और नागरिक समाज की भागीदारी: वैश्विक नीति-निर्माण में युवाओं और गैर-सरकारी संगठनों को शामिल करना आवश्यक है। 80 वर्षों के सफ़र के बाद संयुक्त राष्ट्र को नए सिरे से अपनी भूमिका को परिभाषित करना होगा। आज की बहुध्रुवीय दुनिया में यह संस्था तभी प्रासंगिक रह सकती है। जब वह समावेशी,न्यायसंगत और कारगर हो। यह वर्षगाँठ सिर्फ़ उपलब्धियों का जश्न मनाने का नहीं बल्कि भविष्य की चुनौतियों का सामना करने का संकल्प लेने का भी समय है।【Photo Courtesy Google】
★ब्यूरो रिपोर्ट स्पर्श देसाई√•Metro City Post•News Channel•#80 वर्षों के सफ़र#80 वर्षों के सफ़र#UN
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