*राज्यसभा चुनाव में राजस्थान से कांग्रेस पार्टी के तीनों उम्मीदवार रणदीप सुरजेवाला, मुकुल वासनिक और प्रमोद तिवारी राज्यसभा का सफर तय करने में हुए सफल*/रिपोर्ट स्पर्श देसाई

*राज्यसभा चुनाव में राजस्थान से कांग्रेस पार्टी के तीनों उम्मीदवार रणदीप सुरजेवाला, मुकुल वासनिक और प्रमोद तिवारी राज्यसभा का सफर तय करने में हुए सफल*/रिपोर्ट स्पर्श देसाई 

(मुंबई/ रिपोर्ट स्पर्श देसाई)राजस्थान से राज्यसभा की 3 सीटों पर कांग्रेस की जीत और 1 पर भाजपा की जीत के बाद नेता प्रतिपक्ष गुलाबचंद कटारिया और सीएम सलाहकार संयम लोढ़ा के बीच तीखी नोकझोंक हुई थी। ये तकरार संयम लोढ़ा के विक्ट्री निशान दिखाने पर हुई थी । जीत के बाद विक्ट्री दिखाना स्वाभाविक था लेकिन कटारिया इससे भड़क गए । फिर जो कुछ हुआ उसे थामने के लिए वरिष्ठ कांग्रेसी नेता रघु शर्मा को हाथ जोड़ना पड़ा था । घटना शुक्रवार देर रात विधानसभा के पश्चिमी गेट से निकलते वक्त की है । राज्यसभा चुनाव से पहले कांग्रेसी और कुछ निर्दलीय विधायकों की नाराजगी सुर्खियों में रही । उनका मान मनौव्वल खूब किया गया । खुद सीएम को उन्हें राजी करने के लिए आगे आना पड़ा । चुनावों के नतीजे कांग्रेस के पक्ष में गए हैं तो अब नाराज विधायकों के दर्द को कम करने की कोशिश भी शुरू कर दी गई है । 

अब सीएमआर में कैबिनेट बैठक होगी जिसमें 6 विभागों में पड़े दर्जन मामलों पर विचार किया जाएगा ।
राज्यसभा चुनाव में राजस्थान से कांग्रेस पार्टी के तीनों उम्मीदवार रणदीप सुरजेवाला, मुकुल वासनिक और प्रमोद तिवारी राज्यसभा का सफर तय करने में सफल रहे । सब बोल रहे हैं कि कांग्रेस विधायकों की एकजुटता और मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की बेहतरीन रणनीति ने सफर आसान बना दिया । यही वजह है कि जीत का ताज माथे पर सजते ही तीसरे उम्मीदवार प्रमोद तिवारी भावुक हो गए । जिन्होंने जीतने के बाद मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को न केवल धन्यवाद कहते हुए उन्हें राजनीति का जादूगर बताया बल्कि गहलोत के इस तरह से कंधों को चूमते हुए गले लगे कि मानो यह कह रहे हों कि गहलोत ने बहुत बड़े संकट से तिवारी को बाहर निकाल लिया । राज्यसभा चुनाव में भाजपा विधायक शोभारानी कुशवाह के कांग्रेस प्रत्याशी प्रमोद तिवारी के पक्ष में किया गया वोट सुर्खियों में है । क्रॉस वोटिंग के बाद भाजपा ने शोभारानी को पार्टी से निलंबित कर निष्कासन की कार्रवाई शुरू कर दी थी। 

कई सवाल हवाओं में तैर रहे हैं । जैसे कुशवाह ने आखिर क्रॉस वोटिंग क्यों की? अब उसके पीछे की अहम वजह नेता प्रतिपक्ष गुलाबचंद कटारिया ने बताई है । उन्होंने दबाव की राजनीति का हवाला दिया है । उनके इस कथन को मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने अपने अंदाज में 'डील' किया है । राजस्थान में आज हर और इस बात की चर्चा हो रही है की अब तक भाजपा राज्यसभा चुनाव में कांग्रेस के खेमे में क्रॉस वोटिंग की बात कह रही थी लेकिन मतदान के मौके पर भाजपा की बड़ाबंदी में बंद विधायक शोभारानी कुशवाहा ने कांग्रेस के पक्ष में क्रॉस वोटिंग कर दी थी । 1 वोट से जहां कांग्रेस पार्टी के प्रत्याशी प्रमोद तिवारी जीत के जादुई आंकड़े 41 तक पहुंच गए लेकिन कांग्रेस के विधायकों में से भी एक विधायक का वोट रिजेक्ट हो गया था ।

हालांकि राजस्थान में बीजेपी को जो डर था वही हुआ, विधायक शोभारानी ने की थी क्रॉस वोटिंग । अब उसे की सस्पेंड गई है। राजस्थान में राज्यसभा की चार सीटों के लिए हुए चुनाव में दावा किया गया था कि कांग्रेस की ओर से क्रॉस वोटिंग होगी और उसे बड़ा झटका लगेगा लेकिन इसके उलट बीजेपी में ही क्रॉस वोटिंग हो गई थी। 

बीजेपी की धौलपुर विधायक शोभारानी कुशवाहा ने क्रॉस वोटिंग कर दी थी। पार्टी ने उन्हें सस्पेंड कर 7 दिन में जवाब मांगा है । इस चुनाव में बीजेपी समर्थक सुभाष चंद्रा की भी हार हो गई । उन्होंने भी कांग्रेस के विधायकों के समर्थन का दावा किया था । राजस्थान में राज्यसभा की इन चार सीटों के चुनाव में कांग्रेस ने जो दावा किया था वही हुआ था। जानकारी के मुताबिक धौलपुर से बीजेपी विधायक शोभारानी कुशवाह ने बीजेपी के घनश्याम तिवाड़ी को वोट न देकर कांग्रेस के प्रमोद तिवारी को वोट दे दिया था हालांकि बीजेपी ये मान कर चल रही है कि उनके वोट में गड़बड़ी हुई थी। बता दें,शोभारानी के पति बीएल कुशवाह इस वक्त जेल में हैं । दूसरी ओर बीजेपी विधायक सिद्धि कुमारी ने भी गड़बड़ी कर दी थी। उन्होंने पार्टी के घनश्याम तिवाड़ी को वोट दे दिया जबकि उन्हें निर्दलीय सुभाष चंद्रा के पक्ष में वोट डालना था । बीजेपी के पांच विधायकों के वोट मॉक पोलिंग के चलते खारिज हो गए ।

यह तो अशोक गहलोत ने अजय माकन के साथ अन्याय किया, हरियाणा में हार गये अजय माकन। कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव और राजस्थान के प्रभारी अजय माकन हरियाणा से राज्यसभा चुनाव में कांग्रेस  उम्मीदवार के तौर पर हार गए हैं। माकन को भाजपा समर्थित निर्दलीय उम्मीदवार कार्तिकेय शर्मा ने हराया था। माकन को कांग्रेस में ही बगावत का सामना करना पड़ा है। माकन यदि राजस्थान से चुनाव लड़ते तो आज राज्यसभा के सांसद होते। माकन को राजस्थान का प्रभारी तब बनाया गया था,जब जुलाई 2020 में सियासी संकट हुआ था। उस समय माकन ने ही मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की मजबूती के लिए बहुत कुछ किया था। गहलोत के प्रतिद्वंदी नेता सचिन पायलट के साथ भी बेहतर तालमेल बनाए रखा था। गहलोत माने या नहीं लेकिन सचिन पायलट को अभी तक कांग्रेस से जोड़े रखने में माकन की महत्वपूर्ण भूमिका है। गहलोत भले ही पायलट की शक्ल देखना पसंद नहीं करते हो लेकिन माकन ने अपनी समझदारी से पायलट को नियंत्रण में रखा है। कहा जा सकता है कि गहलोत सरकार को बनाए रखने में जो कुछ भी किया जा सकता था वह माकन ने किया था। पायलट के गुस्से को भी बर्दाश्त किया था उन्होंने। 

माकन को उम्मीद थी कि राज्यसभा चुनाव के अवसर पर गहलोत उनका साथ देंगे चूंकि राजस्थान में चार सीटों के लिए चुनाव हो रहा था  इसलिए माकन को अपनी उम्मीदवारी तय लग रही थी लेकिन जानकार सूत्रों के अनुसार माकन की उम्मीदवारी को लेकर जितनी पैरवी करनी चाहिए थी । उनती अशोक गहलोत ने नहीं की। अजय माकन के लिए अधिक दु:खदायी बात तो यह है कि हरियाणा के होते हुए भी रणदीप सुरजेवाला को हरियाणा के बजाए राजस्थान से चुनाव लड़वाया गया। अशोक गहलोत चाहते तो सुरजेवाला को हरियाणा और अजय माकन को राजस्थान से उम्मीदवार बनवा सकते थे लेकिन गहलोत ने राजस्थान के प्रभारी माकन को हरियाणा और हरियाणा में राजनीति करने वाले सुरजेवाला को राजस्थान से उम्मीदवार बनवा दिया है। सवाल यह भी हे कि सुरजेवाला ने अपने गृह प्रदेश हरियाणा से चुनाव क्यों नहीं लड़ा? असल में हरियाणा की जनता और कांग्रेस के कार्यकर्ताओं में सुरजेवाला की कोई पकड़ नहीं है। सुरजेवाला दो बार विधानसभा का चुनाव हार चुके हैं तथा पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा, सुरजेवाला को पार्षद के लायक भी नहीं समझते हैं। सुरजेवाला के प्रति हरियाणा में कांग्रेसियों की नाराजगी को देखते हुए ही अशोक गहलोत ने सुरजेवाला को अपने राजस्थान से उम्मीदवार बनवाया था। गहलोत के सुरजेवाला के प्रति प्रेम का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि तीनों उम्मीदवारों में से प्रथम वरीयता सुरजेवाला को दी गई थी। यही वजह रही कि सुरजेवाला को 43 वोट मिले, जबकि प्रमोद तिवारी को 42 व मुकुल वासनिक को 41 वोट मिले थे। यह माना कि सुरजेवाला गांधी परिवार की भी पसंद रहे लेकिन यदि अशोक गहलोत जोर लगाते तो अजय माकन को राजस्थान से उम्मीदवार बनवाया जा सकता था। गहलोत ने जब महाराष्ट्र के मुकुल वासनिक, उत्तर प्रदेश के प्रमोद तिवारी तथा हरियाणा के सुरजेवाला को उम्मीदवार बनवाया था तब राजस्थान के प्रभारी माकन को क्यों नहीं? क्या अब अजय माकन, अशोक गहलोत की पसंद नहीं रहे हैं? गहलोत का अजय मकान के मुकाबले सुरजेवाला को प्राथमिकता देना कांग्रेस की राजनीति में भी चर्चा का विषय बना हुआ है।
  
10 जून को राज्यसभा चुनाव के मतदान में धौलपुर की भाजपा विधायक शोभारानी कुशवाह ने भाजपा प्रत्याशी के बजाए कांग्रेस के प्रत्याशी प्रमोद तिवारी को वोट दिया। वोट देने के बाद शोभारानी ने कहा कि भाजपा संगठन को मेरे विरुद्ध जो भी कार्यवाही करनी है, वह कर ले। मैंने अपने मन के मुताबिक काम किया है। शोभारानी के इस बयान से जाहिर है कि उन्होंने अब भाजपा का साथ छोड़कर सत्तारूढ़ कांग्रेस पार्टी का दामन थाम लिया है। असल में शोभारानी के पति और पूर्व विधायक बीएल कुशवाह इन दिनों धोखाधड़ी के आरोप में जेल में बंद हैं। ऐसे में परिवार की मदद के लिए शोभारानी को सरकार का संरक्षण चाहिए। माना जा रहा है कि आगामी विधानसभा चुनाव में शोभारानी कांग्रेस की उम्मीदवार होंगी। जहां तक विधायक पद पर खतरे का सवाल है तो शोभारानी का विधायक पद बना रहेगा। नियमों के मुताबिक भाजपा ज्यादा से ज्यादा शोभारानी को पार्टी से बर्खास्त कर सकती है लेकिन विधायकी बनी रहेगी। भाजपा की राजनीति में शोभारानी को पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे का समर्थक माना जाता है। राजे जब मुख्यमंत्री थी तब उन्होंने ने ही शोभारानी को चुनाव में भाजपा का उम्मीदवार बना कर विधायक बनाया था लेकिन मौजूदा हालातों में शोभारानी को कांग्रेस का साथ जरूरी है। अपने परिवार और राजनीतिक फायदे के लिए शोभारानी ने कांग्रेस के पक्ष में मतदान किया है।
  
11 जून को पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट ने कहा था कि सोनिया गांधी और राहुल गांधी ने जिन उम्मीदवारों को राजस्थान भेजा था उन उम्मीदवारों को हमने जीतवा दिया है। पायलट ने कहा कि भाजपा ने निर्दलीय उम्मीदवार खड़ा कर एक सीट छीनने का प्रयास किया था लेकिन हमने इस प्रयास को विफल कर दिया था। कांग्रेस के सभी विधायकों के साथ साथ निर्दलीय और अन्य छोटे दलों के विधायकों ने भी कांग्रेस की नीतियों में विश्वास जताते हुए राज्यसभा चुनाव में अपना वोट दिया। राजस्थान में कांग्रेस पार्टी एकजुट है।

अब राज्यसभा चुनाव के नतीजे के बाद राज्यसभा में पार्टियों की स्थिति क्या है? वह देखें तो देश के 4 राज्यों में 16 सीटों पर हुए राज्यसभा चुनाव के नतीजों में बीजेपी ने कुल 8 सीटों पर जीत हासिल की है । कर्नाटक और महाराष्ट्र में जहां बीजेपी ने 3-3 सीटें हासिल कीं तो वहीं राजस्थान में 1 और हरियाणा में 2 (एक सीट पर निर्दलीय उम्मीदवार को समर्थन) हासिल की है । वहीं राजस्थान में कांग्रेस 3 सीटें अपनी झोली में ले गई और महाराष्ट्र में कांग्रेस के गठबंधन महाविकास अघाड़ी (MVA) के 3 उम्मीदवार जीते हैं । इन चुनाव परिणाम के बाद राज्यसभा में पार्टियों की स्थिति क्या है? किस पार्टी के सबसे ज्यादा विधायक हैं और किसके सबसे कम? एक नजर देखें । राज्यसभा की वेबसाइट के मुताबिक राज्यसभा में 95 सांसदों के साथ बीजेपी के सबसे ज्यादा सांसद हैं । इसके बाद 29 सासंदों के साथ कांग्रेस है फिर 13 सांसदों के साथ तृणमूल कांग्रेस और 10 सांसदों के साथ डीएमके है।

इन सीटों को विस्तार से देखें तो -
 बीजेपी - 95,कांग्रेस - 29,तृणमूल कांग्रेस - 13,
DMK - 10,बीजू जनता दल - 9,आम आदमी पार्टी - 8,AIADMK - 5,असम गण परिषद (AGP) - 1,
बीएसपी - 3,CPI - 2,CPI (M) - 5,निर्दलीय - 2,
इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (IUML) - 1, जनता दल सेक्युलर (JD(S)) - 1, जनता दल यूनाइटेड (JD(U)) - 5, झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) - 1, केरल कांग्रेस एम (KC(M)) - 1, MDMK - 1, मिजो नेशनल फ्रंट (MNF) - 1, नेशनल पीपल्स पार्टी (NPP) - 1, NCP - 4, नॉमिनेटेड - 1,PMK - 1,राष्ट्रीय जनता दल (RJD) - 5, RPI (ATWL)) - 1,समाजवादी पार्टी (SP) - 5,शिरोमणि अकाली दल - 1,शिवसेना - 3,
सिक्किम डेमोक्रैटिकल फ्रंट - 1,TMC (M)) - 1,तेलंगाना राष्ट्रीय समिति (TRS) - 7, तेलुगु देशम पार्टी (TDP) - 1,यूनाइटेड पीपल्स पार्टी (लिब्रल) - 1 और 
YSRCP - 6 । कुल 245 सीटों में से 13 सीटें खाली हैं।
(Photo Courtesy Google)

~ब्यूरो रिपोर्ट स्पर्श देसाई √•MetroCity Post•News Channel•#राज्यसभा के चुनाव 

Comments

Popular posts from this blog

*मुंबई में अगले तीन दिन भारी बारिश, कल जल प्रलय हो सकता है मुंबई में भारी बारिश का अनुमान, बाढ़ जैसे हालात बन सकते हैं*/रिपोर्ट स्पर्श देसाई

*तेलंगाना में 300 करोड़ रुपये का 200 किलो सोना और 105.58 करोड़ की नकदी जब्त*/रिपोर्ट स्पर्श देसाई

*संचार के द्वारपाल: समाचारों को प्राथमिकता देने में पत्रकार की महत्वपूर्ण भूमिका*/रिपोर्ट स्पर्श देसाई