अमरीका के सारे अनुमान बिगड़ गये हैं, ईरान के मीज़ाइलों ने वाशिंग्टन को सबक़ सिखा दिया हैं / रिपोर्ट स्पर्श देसाई

                    ◆मुंबई / रिपोर्ट स्पर्श देसाई ◆

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आईआरजीसी के वरिष्ठ कमान्डर ने कहा है कि इराक़ में एनुल असद अमरीकी सैन्य छावनी पर ईरान के मीज़ाइल हमले ने दुनिया में वाशिंग्टन के अनुमानों और शक्तियों के संतुलन को बिगाड़ के रख दियाहैं ।
आईआरजीसी के कमान्डर जनरल हुसैन सलामी ने अलमयादीन टीवी को एक इन्टरव्यू देते हुए कहा कि इराक़ में अमरीका की एनुल असद सैन्य छावनी पर ईरान की मीज़ाइली कार्यवाही पूरी तरह और भरपूर रणनैतिक कार्यवाही नहीं थी बल्कि अमरीकी अपराधों के जवाब की शुरुआत है।
जनरल हुसैन सलामी ने कहा कि अमरीकियों को आदत पड़ चुकी है कि जिस देश पर भी चाहें हमला करें और उन्हें कोई जवाब न दिया जाए किन्तु ईरान का जवाब इस बात का कारण बना कि वाशिंग्टन अपने अनुमानों पर पुनर्विचार करने पर मजबूर हो।
जनरल हुसैन सलामी ने कहा कि एनुल असद अमरीकी छावनी पर ईरान के हमले के अंतर्राष्ट्रीय प्रभावों का उल्लेख करते हुए कहा कि इस्लामी गणतंत्र ईरान ने एक निर्धारित भौगोलिक बिन्दु पर जवाबी कार्यवाही की लेकिन इसका प्रभाव अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हुआ।
आईआरजीसी के कमान्डर ने कहा कि ईरान का रणनैतिक जवाब उस समय पूरा होगा जब अमरीकी सैनिक पश्चिमी एशिया के क्षेत्र से बाहर निकल जाए।
जनरल हुसैन सलामी ने ज़ायोनी शासन को सचेत करते हुए कहा कि इस्राईलियों के क़ब्ज़े वाले समस्त क्षेत्र ईरान के निशाने पर हैं और ज़ायोनी शासन, ईरान की सशस्त्र सेना के मुक़ाबले में अमरीका से भी अधिक तुच्छ और कमज़ोर है। 


क्या ईरान और सऊदी अरब दोस्त बन रहे हैं? इस्राईल से संबंध बनाने के लिए उतावले सऊदी अरब को ईरान से भी वार्ता में दिलचस्पी है? कौन खड़ी कर रहा है रुकावट?
सऊदी अरब की सरकार से निकट समाचार पत्र अश्शरक़ुलऔसत में " मशारी अज़्ज़ायदी" ने लिखा है कि ईरान और सऊदी अरब के मध्य वार्ता की खबरें अक्सर सुनायी देती हैं । यहां तक  कहा जाता है कि ईरान व सऊदी अरब के बीच मौजूद संकट बस खत्म ही होने वाला है।
ईरान और सऊदी अरब के बीच संपर्क और बातचीत की कई बार खबरें सामने आयीं लेकिन फिर मामला आगे नहीं बढ़ पाया। वास्तव में सऊदी अरब के तेल कारखाने आरामको पर यमन के हमले के बाद, सऊदी अरब, ईरान से बात करना चाहता था लेकिन अमरीका ने उसे रोक दिया।
लेबनान के अलबेना समाचारपत्र ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि जब सऊदी अरब ने ईरान से वार्ता करना चाहा तो अमरीका ने उससे कहा कि इराक़, लेबनान और ईरान में प्रदर्शन आरंभ हो चुके हैं इस लिए हालात अमरीका व सऊदी अरब के लिए बेहतर होंगे इस लिए अभी ईरान से बात चीत न की जाए।
इस लेबनानी समाचर पत्र ने फ्रांस के एक सूत्र के हवाले से यह जानकारी दी है और लिखा है कि सऊदी अरब का मानना है कि ईरान व सऊदी अरब के मध्य वार्ता और व्यापक समझौता हो सकता है जिसमें यमन और लेबनान जैसे देशों के संकट भी शामिल किये जा सकते हैं।


रिपोर्ट में बताया गया है कि सऊदी अरब ने कहा था कि लेबनान पर हिज़्बुल्लाह के क़ब्ज़े का वह  विरोध नहीं करेगा अगर यमन में हालात बेहतर हो जाएं अर्थात ईरान अगर यमन में अंसारुल्लाह को वार्ता और सत्ता में भागीदारी को स्वीकार करने पर तैयार कर ले तो उसे लेबनान में हिज़्बुल्लाह की भूमिका पर आपत्ति नहीं होगी। इसकी वजह भी यह थी कि सऊदी अरब यह नहीं चाहता कि आरामको जैसी कोई घटना फिर हो क्यों उससे सऊदी अर्थ व्यवस्था को काफी नुक़सान पहुंचा था।
ईरान और सऊदी अरब के संबंधों के बारे में इराक की अलबुरासा न्यूज़ एजेन्सी ने अपने एक विश्लेषण में लिखा है कि कुवैत, ओमान, क़तर, इराक़ और पाकिस्तान जैसे कई देशों ने ईरान और सऊदी अरब के बीच वार्ता का प्रयास किया लेकिन सफलता नहीं मिली और रियाज़, तेहरान से दूर भाग रहा है। इसके लिए वह भांति भांति के बहाने पेश कर रहा है और हर बार यही घिसा पिटा वाक्य दोहरा देता है कि ईरान को क्षेत्र में अपनी शैली और नीति को बदलना होगा लेकिन इस से आशय क्या है? इसके बारे में सऊदी अरब के घटकों तक को भी सही बात का पता नहीं है। 
ईरान को शत्रु दिखाकर पश्चिमी एशिया में अमरीका, अपनी सैन्य उपस्थिति बढ़ा रहा है
आरामको पर हमला सऊदी अर्थ व्यवस्था पर बड़ा आघात था ।
 
असल कहानी यह है कि ईरान और सऊदी अरब की निकटता से अमरीका, इस्राईल और यूएई को काफी परेशानी हो सकती है। बहुत से टीकाकारों का कहना है कि ईरान और सऊदी अरब के मध्य निकटता की राह में यूएई बहुत बड़ी रुकावट है जो अमरीका और इस्राईल के इशारे पर यह काम कर रहा है।
टीकाकारों का कहना है कि अबूधाबी के क्राउन प्रिंस बिन ज़ायद, नेतेन्याहू और जान बोल्टन ने ईरान से निकट न होने की शर्त पर, मुहम्मद बिन सलमान को, सऊदी अरब में सत्ता तक पहुंचाया। इस लिए बिन सलमान, बिन ज़ाएद के आदेशों का पालन करने पर मजबूर हैं। 

एक अमरीकी वेबसाइट ने लिखा है कि अमरीका, ईरान के साथ शत्रुता की आड़ में मध्यपूर्व में अपनी सैन्य उपस्थिति बढ़ा रहा है।
अमरीकी वेबसाइट Papiolar Resistance website ने सोमवार को अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि पूरी दुनिया में अमरीका की 800 सैन्य छावनियां हैं।  इस अमरीकी वेबसाइट ने लिखा है कि अमरीका ने मार्च 2019 से अबतक अपने 20000 सैनिकों को मध्यपूर्व पहुंचाया है।  इसे अनुसार अमरीका ने मध्यपूर्व में अपनी सैन्य उपस्थिति को बढ़ाने के लिए ईरान की शत्रुता को बहाना बना रखा है।
ज्ञात रहे कि जहां अमरीका एक ओर मध्यपूर्व में अपनी सैन्य उपस्थिति बढ़ाता जा रहा है वहीं पर वह दूसरी ओर यह दावा करता है कि वाइट हाउस, मध्यपूर्व से अपनी सैन्य उपस्थिति को कम करना चाहता है।  उल्लेखनीय है कि मध्यपूर्व में अमरीकी सैनिकों की उपस्थिति के कारण क्षेत्रीय राष्ट्र इससे बहुत अप्रसन्न हैं।
 

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