हिज़्बुल्लाह और अंसारुल्लाह दो संगठन मगर विचारधारा एक / रिपोर्ट स्पर्श देसाई

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【मुंबई  / रिपोर्ट स्पर्श देसाई】


लेबनान के हिज़्बुल्लाह आंदोलन और यमन के अंसारुल्लाह आंदोलन के बीच समानताएं और समन्वय हैं यह बात तो सभी जानते हैं लेकिन यमन पर सऊदी गठबंधन की सैनिक चढ़ाई से पहले यह समन्वय इतना ज़्यादा ज़ाहिर नहीं था।
यमन पर सऊदी अरब के हमले शुरू होते ही हिज़्बुल्लाह लेबनान के प्रमुख सैयद हसन नसरुल्लाह ने जो भाषण दिया उससे दोनों संगठनों के बीच गहरे समन्वय और समानताओं की हक़ीक़त और भी खुलकर सामने आई। सैयद हसन नसरुल्लाह के भाषण का यमन के अंसारुल्लाह आंदोलन के प्रमुख सैयद अब्दुल मलिक अलहूसी ने खुलकर स्वागत किया।

यही नहीं अंसारुल्लाह के संस्थापक और प्रेरणा स्रोत शहीद हुसैन अलहूसी के अगर भाषणों को देखा जाए तो उसमें जगह जगह हिज़्बुल्लाह का हवाला नज़र आता है। यही नहीं वह हिज़्बुल्लाह के अधिकारियों से हमेशा संपर्क में रहते थे और लेबनान व फ़िलिस्तीन के हालात पर नज़र रखते थे।
शहीद हुसैन अलहूसी अपने भाषणों और क्लासों में इमाम ख़ुमैनी का बार बार उल्लेख करते थे जो इस्लामी जगत में नई जागरूकता के स्रोत हैं। उनका कहना था कि इमाम ख़ुमैनी ने संकट की गहराई को भलीभांति समझा और साथ ही बेहतरीन समाधान भी पेश किया।
अगर हिज़्बुल्लाह और अंसारुल्लाह के बीच समानताओं की बात की जाए तो वह बहुत हैं जिनमें से कुछ का यहां उल्लेख करना संभव हैं। एक समानता आस्था और विचारधारा की समानता है। दोनों संगठनों का मानना है कि इस्लाम और इस्लामी शिक्षाओं को आधार बनाकर राजनैतिक संघर्ष और जेहाद करना चाहिए। दोनों संगठनों के विचारों पर पैग़म्बरे इस्लाम और उनके परिजनों की कार्यशैली, इमाम हुसैन के महान आंदोलन, हज़रत ज़ैद के संघर्ष और उसके बाद उठने वाले आंदोलनों का गहरा असर है।
 

दोनों ही संगठनों की एक समानता यह भी है कि दोनों संघर्ष और जेहाद को दुनिया के हर भाग में साम्राज्यवादियों और अत्याचारियों पर अंकुश लगाने का सबसे प्रभावी तरीक़ा मानते हैं। इस बारे में फ़िलिस्तीन के संबंध में दोनों संगठनों के स्टैंड को उदाहरण के रूप में पेश किया जा सकता है। इसी तरह हिज़्बुल्लाह ने यमन पर सऊदी अरब और अमरीका के हमलों के बारे में जो स्टैंड अपनाया वह भी बहुत अच्छी मिसाल है। बहुत से देशों, सरकारों और संगठनों ने अमरीका और इस्राईल के संबंध में समझौते की नीति अपनाई मगर इन दोनों संगठनों ने बिना डरे और किसी भी चीज़ की कोई भी चिंता किए बग़ैर अपना स्टैंड तय किया।
दोनों संगठनों की एक समानता यह भी है कि दोनों को बहुत व्यापक लोकप्रियता हासिल है। दोनों संगठनों के नेतृत्व की यह सोच है कि वह आम जनता का सेवक है और जनता के साथ उसके बड़े निष्ठापूर्ण संबंध हैं। इसका नतीजा यह है कि दोनों को बहुत बड़ी सफलताएं मिली हैं।

एक समानता यह भी है कि दोनों ही संगठन एक संयुक्त दुशमन यानी अमरीकी, इस्राईली, सऊदी एजेंडे को कमज़ोर करने पर काम कर रहे हैं। बल्कि यह कहना चाहिए कि यही चीज़ हिज़्बुल्लाह और अंसारुल्लाह के गठन की बुनियादी वजह बनी।
हिज़्बुल्लाह और अंसारुल्लाह के बीच समन्वय और सहयोग का दुशमन पर बहुत गहरा आघात लगा है। इस सहयोग से दुशमन बुरी तरह डर गया और उसने इस सहयोग को ख़त्म करने की बड़ी कोशिशें कीं। अंसारुल्लाह का समर्थन करने के कारण सऊदी अरब ने हिज़्बुल्लाह के ख़िलाफ़ राजनैतिक, आर्थिक और प्रचारिक मंचों पर लगातार हमले किए अब यह अलग बात है कि उसे कुछ भी हासिल नहीं हो सका।
हिज़्बुल्लाह और अंसारुल्लाह ने देश के भीतर अन्य ताक़तों और धड़ों के साथ सहयोग का भी अच्छा नमूना पेश किया है यानी दोनों ने साबित किया है कि देश के भीतर मौजूद सभी धड़ों के साथ सहयोग उनकी नीति है। यही नहीं दुशमन ताक़तों के साथ भी इन संगठनों का बर्ताव नैतिक सिद्धांतों पर आधारित रहा।
यही ख़ूबियां कारण बनी है कि हिज़्बुल्लाह और अंसारुल्लाह आज आम जनता के दिलों में बसते हैं और इसी शैली पर अन्य देशों में दूसरे संगठन भी बन रहे हैं।【समाचार स्रोतः अलमसीरह डाट नेट】

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