कोरोना कहर: लॉक डाउन -4 को लेकर तरह तरह कि चर्चाओं का दौर जारी / रिपोर्ट स्पर्श देसाई





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         【मुंबई / रिपोर्ट स्पर्श देसाई】


कोरोना कहर का मामला थमने का नाम नहीं ले रहा है और कोरोना कहर का प्रकोप बढ़ता ही जा रहा है। जिसको रोक पाना बहुत मुश्किल बढ़ गई है।आए दिन कोरोना संक्रमण की संख्या भी तेजी से बढ़ रही है।गैर प्रवासी मजदूरों आगंतुकों की संख्या में इजाफा हो रहा है।जिससे तरह तरह के सवाल भी पैदा हो रहे हैं।रविवार 17 मई को लॉक डाउन -4 को लेकर पूरे दिन चर्चाओं का दौर जारी रहा था । देश में तकरीबन 56 दिनों से घोषित लॉक डाउन के चलते जनजीवन अस्त व्यस्त हो गया। प्रवासी मजदूर अपने अपने घरों को पलायन के लिए मजबूर हो चुके हैं।जिले में संक्रमित मरीजों की संख्या बढ़ गई थी । जिले में संक्रमित मरीज बाहर से आए प्रवासी मजदूरों मै पाया गया था । तो 17 मई को लॉक डाउन -3 खत्म होने के बाद लॉक डाउन -4 पर चर्चा हो रही थी  । कोरोना वायरस के कारण पूरे देश में सरकार द्वारा लागू किए गए लॉक डाउन की वजह से अपने परिवार के भरण-पोषण के लिए अपना घर छोड़कर सैकड़ों हजारों किलोमीटर दूर दिल्ली मुंबई जैसे शहरों में मजदूरी करने वाले बहुत से मजदूर अपने गांव वापस आ रहे हैं। नियति का चक्र तो देखिए जिस परिवार का भरण पोषण करने के लिए वह अपना गांव छोड़कर बड़े शहरों में रोटी-रोजगार के लिए गए थे। आज अपने परिवार को बचाने के लिए उन्हें गांव वापस आना पड़ रहा है। सरकार चाहे लाख बार कहे कि कोई भी व्यक्ति भूखा नहीं सो रहा है, सरकार हर गरीब के साथ कंधे से कंधा मिला है खड़ी है परंतु सच तो यह है कि सरकार के द्वारा ऐसा कोई कदम उठाया ही नहीं जा रहा है । जिससे गरीब जनता में सरकार के प्रति संतुष्टि का भाव नजर आता हो।सरकार ने मनरेगा के अंतर्गत काम करने वाले मजदूरों को फ्री राशन बांटने का ऐलान किया और मनरेगा मजदूरों को।परंतु  देश के मजदूरों का  10 से 15 प्रतिशत भाग ही मनरेगा में काम करता है । शेष बचे मजदूरों को सरकार की तरफ से ना ही मुफ्त राशन मिल रहा है और ना ही किसी प्रकार का कोई भी भत्ता।दूसरी तरफ सरकार ने श्रमिक कानून में संशोधन करते हुए श्रमिकों के 1 दिन में काम करने के समय 8 घंटे को बढ़ाकर 12 घंटे कर दिया था। हांलाकि चौतरफा विरोध देखते हुए सरकार को अपना फैसला वापस लेना पड़ा। सरकार जहां कह रही है कि बाहर फंसे हुए हर व्यक्ति को हम घर पहुचाने की जिम्मेदारी सरकार की है परंतु सरकार इस अभियान को भी बिना किसी योजना के ही चला रही है।लाखों मजदूर डर की वजह से अपने घर पैदल ही चल पड़े हैं।सरकार का अर्थ केवल जनता से टैक्स वसूलना ही नहीं होता।बल्कि सरकार का सबसे पहला दायित्व बनता है कि वह अपनी जनता के जीवन यापन की व्यवस्था करे। सरकार चाहे किसी की भी रही हो ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार का विकास कैसे हो इस पर आज तलक कोई भी काम नहीं किया गया हैं ।जितनी भी फैक्ट्रियां लगी,वह केवल बड़े शहरी क्षेत्रों में ही लगी हैं । जो मजदूर घर वापस आए हैं उनका जीवन यापन कैसे होगा यह बहुत ही चिंता का विषय है क्योंकि अगर मजदूरों के पास इतना पैसा होता कि वह घर में रहकर खा सकें तो वह सैकड़ों हजारों किलोमीटर दूर काम करने के लिए क्यों जाते और अंत में सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या आज भी हम ग्रामीण स्तर पर साल 1947 के भारत में खड़े हैं.....?



रिपोर्ट स्पर्श देसाई √●Metro City Post●News Channel●के लिए...



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