अज़ान मुद्दे पर उच्च न्यायालय इलाहाबाद का फैसला / रिपोर्ट स्पर्श देसाई

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         【मुंबई / रिपोर्ट स्पर्श देसाई】

कभी कभी प्रशासनिक अधिकारियों की कमजोर कानूनी समझ या उनका किसी खास वजह से मनमाना निर्णय  कानूनी विवाद खड़े कर देता है। कुछ  ज़िला अधिकारियों ने आदेश जारी करके मस्जिद में अज़ान पर पाबंदी लगा दी थी। इसका आदेश का आधार कोविद संक्रमण से निबटने के लिए केंद्र सरकार की एडवाइजरी को बनाया गया जिसमें कहा गया था कि सभी धार्मिक स्थल लॉक डाउन की अवधि में बंद रहेंगे ताकि सामाजिक दूरी को बनाए रखा जा सके। 

शुरू में जागरूकता न होने के सबब इस आदेश को समझने में लोगों को दिक्कत हुई मगर जब  सऊदी अरब और  दुबई आदि की खबरें मिलीं तो लोगों ने इसकी गंभीरता को समझा और मस्जिदों में सामूहिक नमाज़ अदा होना बंद हो गई। लेकिन  सामूहिक नमाज़ अदा करना और  अकेले मुअज्जिन का अज़ान देना अलग अलग स्थिति होती है । यहां विवाद इसी बात पर था कि  जो आदेश ज़िला प्रशासन ने जारी किए उसमें अज़ान देने पर ही पाबंदी लगा दी गई और इसी आदेश को मनमाना और मूलाधिकारों पर औचित्यहीन प्रतिबंध मानते हुए इस को रद्द करने की प्रार्थना हाई कोर्ट से की गई।

हाई कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि अज़ान से कोविद संक्रमण को फैलने से रोकने वाली एडवाइजरी का उल्लंघन नहीं होता क्यूं कि ये सामूहिक गतिविधि नहीं है और ये केवल एक ही व्यक्ति का कार्य होता है । लेकिन इसके लिए loudspeaker का प्रयोग तभी किया जा सकता है जब प्रशासन ने अनुमति दी हो , जैसा कि सुप्रीम कोर्ट ने 2005 के अपने आदेश में निर्देश दिए हैं।

सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला*
【(AIR 2005 SC at page 3136 : 2005  vol 5 SCC page 733)Forum, Prevention of Envn . & Sound Pollution  versus  Union of India.)

See Also AIR 2006 SC Page 348】

हाई कोर्ट ने अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट  और कलकत्ता हाईकोर्ट के   कुछ फैसलों को भी आधार बनाया है।
" नमाज़ नींद से बेहतर है " के  सिद्धांत  को न  मानने वाले बहुसंख्यक हैं । सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फैसले में कहा कि किसी की नींद में खलल डालने का किसी को अधिकार नहीं है और नींद को मौलिक अधिकार माना। जब सुप्रीम कोर्ट ने ये आदेश दिया तो ये केवल मस्जिद की अज़ान को लक्षित करके पारित नहीं किया गया । ये सभी प्रकार के ध्वनि प्रदूषण को रोकने के लिए पारित किया गया जिसमें आतिश बाज़ी भी शामिल थी।आधुनिक युग में मस्जिद की अज़ान और मंदिर के भजन खलल  बन गए हैं। 

सुप्रीम कोर्ट में  ये ध्वनि प्रदूषण  कानूनी बहस का मुद्दा बना और 2005 में इस पर कोर्ट का फैसला आया।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि शोर यानि ध्वनि प्रदूषण से आज़ादी पाना संविधान के आर्टिकल 21 के तहत मौलिक अधिकार है। इसलिए रात 10 बजे से लेकर सुबह 6 बजे तक का समय ऐसा है जिस में लोग शांति से सोना चाहते है, लिहाज़ा इस में ख़लल नहीं होना चाहिए।
कोर्ट ने Rule 5 का हवाला देते हुए कहा  लाउडस्पीकर और ऐसा यंत्र  का बिना सक्षम अधिकारी की अनुमति के प्रयोग नहीं किया जा सकता  और रात 10 बजे से सुबह 6 बजे तक की अवधि में किसी खुले स्थान पर उपयोग नहीं किया जायेगा  और राज्य सरकार एक साल में केवल 15 दिन की अवधि के लिए ही इस मे ढील या छूट दे सकती है। कोर्ट ने कहा कि किसी सार्वजानिक स्थल पर लाउडस्पीकर का ध्वनि स्तर उस स्थान के लिए निर्धारित ध्वनि स्तर से 10 dB(A) से अधिक नहीं होना चाहिए या 75 dB (A) से अधिक नहीं होना चाहिए, जो भी कम हो ।

क्यों है मुसलमान परेशान ?
सुप्रीम कोर्ट के आदेश से सिर्फ फ़ज़र की अज़ान प्रभावित होती है जिस की अवधि 3-4 मिनट की होती है जबकि अन्य धर्मों के स्थलों से सुबह के समय माइक/ लाउड स्पीकर  का प्रयोग घंटों होता है।
 ऐसा नहीं है कि इस आदेश से मस्जिदों से  अज़ान देने  पर स्थाई पाबन्दी लगने जा रही थी। लेकिन ज़िला प्रशासन ने जिस तरह का रवैया अपनाया वह  स्थाई पाबंदी लगाने वाला माना गया। इसी कारण हाईकोर्ट ने ऐसे आदेशों को संविधान विरोधी कह कर रद्द कर दिया। अगर सुप्रीम कोर्ट का उक्त 2005 का फैसला अस्तित्व में  नहीं होता तो लाउड स्पीकर के प्रयोग के लिए ज़िला प्रशासन से अनुमति लेना भी जरूरी नहीं होता।

ज़िला प्रशासन से लाउड स्पीकर की अनुमति का मिलना ऐसा नहीं है कि वह ज़िला प्रशासन की इच्छा पर खुला छोड़ दिया गया है कि वह चाहे अनुमति दे  अथवा न दे। सुप्रीम कोर्ट ने ज़िला प्रशासन की भी पाबंद किया है कि वह प्रत्येक क्षेत्र के लिए मानक तय करे कि उस क्षेत्र में कितनी तेज आवाज में लाउड स्पीकर का प्रयोग हो सकता है।

कुछ समाचार पत्र हाई कोर्ट के आदेश की मनमानी व्याख्या कर रहे हैं , इस पर ध्यान नहीं दें । अगर किसी मस्जिद कमेटी ने ज़िला प्रशासन से  लाउड स्पीकर के प्रयोग की अनुमति  अभी तक नहीं ली है तो हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की प्रतियों  को साथ  लगा कर  प्रार्थना पत्र पेश करे।

याद रहे कि लाउड स्पीकर के प्रयोग के लिए हर किसी को इजाज़त लेनी होगी चाहे वह किसी भी धर्म से संबंधित धार्मिक स्थल का मामला हो या सामाजिक गतिविधि ( शादी बारात, सभा , धरना प्रदर्शन संगीत आयोजन हो।

 हाई कोर्ट का आदेश उत्तरप्रदेश के सभी जनपदों में  तत्काल प्रभाव से लागू हो गया है।

रिपोर्ट : स्पर्श देसाई √●Metro City Post●News Channel● के लिए...



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