बेबस लोग, बेरहम सरकार, छः साल, छः भ्रांतियां - साल 2019-20 का : कहा कांग्रेस ने / रिपोर्ट स्पर्श देसाई
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भारी निराशा, अपराधिक कुप्रबंधन एवं असीम पीड़ा का साल, सातवें साल की शुरुआत में भारत एक ऐसे मुकाम पर आकर खड़ा है, जहां देश के नागरिक सरकार द्वारा दिए गए अनगिनत घावों व निष्ठुर असंवेदनशीलता की पीड़ा सहने को मजबूर हैं ।ऐसा कांग्रेस के सूरजेवाला का बयान दिया है ।
आगे उन्होंने बताया कि पिछले छः सालों में देश में भटकाव की राजनीति एवं झूठे शोरगुल की पराकाष्ठा मोदी सरकार के कामकाज की पहचान बन गई। दुर्भाग्यवश, भटकाव के इस आडंबर ने मोदी सरकार की राजनैतिक महत्वाकांक्षाओं को पूरा तो किया, परंतु देश को भारी सामाजिक व आर्थिक क्षति पहुंचाई हैं ।
प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी को याद रखना होगा: बढ़ चढ़ कर किए गए वादों पर खरा उतरना ही असली कसौटी है लेकिन ढोल नगाड़े बजाकर बड़े बड़े वादे कर सत्ता में आई यह सरकार देश को सामान्य रूप से चलाने की एक छोटी सी उम्मीद को भी पूरा करने में विफल रही तथा उपलब्धि के नाम पर शून्य साबित हुई है।
पहली भ्रांति: ‘विकास’ बनाम ‘वूडू मोदीनोमिक्स’ की वास्तविकता देखें तो -
प्रधानमंत्री मोदी जी ने सुशासन का अपना ब्रांड, एक शब्द ‘विकास’ के बूते बेचा था। इस काल्पनिक विकास के लिए उन्होंने ‘60 साल बनाम 60 महीने’ का नारा लगाया। साल ‘2020’ तक सभी वादों को पूरा करने के लिए मील का पत्थर स्थापित कर दिया गया।
लेकिन आज सरकार के पास उपलब्धि के नाम पर दिखाने को क्या है?
1. 2 करोड़ नौकरियां बनाम 27 प्रतिशत बेरोजगारी: मोदी सरकार हर साल 2 करोड़ नौकरी देने के वादे के साथ सत्ता में आई। लेकिन 2017-18 में भारत में पिछले 45 सालों में सबसे ज्यादा बेरोजगारी दर रही 【6.1 प्रतिशत - शहरी भारत में 7.8 प्रतिशत एवं ग्रामीण भारत में 5.3 प्रतिशत】। कोविड के बाद भारत की बेरोजगारी दर अप्रत्याशित रूप से बढ़कर 27.11 प्रतिशत हुई 【सीएमआईई】।
2. मोदी सरकार के कार्यकाल में जीडीपी का मतलब हो गया है - ‘ग्रॉसली डिक्लाईनिंग परफॉर्मेंस’ यानि ‘लगातार गिरता प्रदर्शन’।
आजादी के बाद हुई सबसे कम जीडीपी दर। अधिकांश अंतर्राष्ट्रीय एवं राष्ट्रीय रेटिंग एजेंसियों ने वित्तवर्ष 2020-21 में नकारात्मक जीडीपी दर का अनुमान दिया है 【नोमुरा: वित्तवर्ष’21 में नैगेटिव 5.6 प्रतिशत; फिच एवं क्राईसिल: वित्तवर्ष’21 में नैगेटिव 5 प्रतिशत; गोल्डमैन सैश्स: वित्तवर्ष’21 में नैगेटिव 5 प्रतिशत; आईसीआरए: वित्तवर्ष’21 में नैगेटिव 5 प्रतिशत 】
कोविड-19 से बहुत पहले ही अर्थव्यवस्था बर्बादी के कगार पर पहुंच चुकी थी। पिछले 21 महीनों में जीडीपी वृद्धि दर में लगातार गिरावट हुई है। वित्तवर्ष 2020 की चौथी तिमाही में जीडीपी 3.1 प्रतिशत है, जो संशोधित हो 2 प्रतिशत तक ही रहने का अनुमान है।
3. बैंकों को चूना लगाया, भारत के खजाने को लूटा:-
मोदी सरकार ने छः सालों में बैंकों के 6,66,000 करोड़ रु. के ‘लोन राईट ऑफ’ कर दिए 【साल 2014-15 से सितंबर 2019 】।
मोदी सरकार के छः सालों में 32,868 ‘बैंक फ्रॉड’ हुए जिनमें देश के खजाने को 2,70,513 करोड़ रु. का चूना लगा।
मोदी सरकार के छः सालों में ‘बैंकों के स्ट्रेस्ड एस्सेट बढ़कर 16,50,000 करोड़ रु. के हो गए। बैंकों का एनपीए 30 जून, 2014 को 2,24,542 करोड़ रु. से 423 प्रतिशत बढ़कर मार्च, 2020 में 9,50,000 करोड़ रु. हो गया। लोन राईट ऑफ का सबसे चौंकानेवाला खुलासा 24 अप्रैल, 2020 को एक आरटीआई के जवाब में हुआ। कोविड-19 के बीच मोदी सरकार ने मेहुल चोकसी, नीरव मोदी, जतिन मेहता, विजय माल्या आदि के 68,607 करोड़ रु. के लोन को राईट ऑफ कर दिया।
4. रुपया ‘मार्गदर्शक मंडल’ पहुंचा:- प्रधानमंत्री, श्री नरेंद्र मोदी ने 1 अमेरिकी डॉलर को 40 रु. के बराबर करने के वादे के साथ सरकार बनाई थी। लेकिन मोदी सरकार के छः सालों में भारतीय रुपया एशिया की सबसे खराब प्रदर्शन करने वाली करेंसी बन गया। 30 मई, 2020 को 1 अमेरिकी डॉलर 75.57 रु. के बराबर है।
5. कोविड से राहत एक ‘जुमला’ बना:- 20 लाख करोड़ रु. का कोविड-19 राहत पैकेज, जिसे प्रधानमंत्री जी ने जीडीपी के 10 प्रतिशत के बराबर बताया था, वास्तव में जीडीपी का मात्र 0.83 प्रतिशत ही निकला। 60 दिनों से राहत दिए जाने का इंतजार कर रहे देशवासियों, खासतौर से किसानों, मजदूरों, गरीबों, लघु एवं मध्यम उद्योगों के लिए यह सबसे अधिक असंवेदनशील एवं निर्दयी छलावा है।
दूसरी भ्रांति: ‘सबका साथ, सबका विकास’ बनाम ‘मित्रों का साथ, भाजपा का विकास’ । मोदी सरकार के छः साल में साबित हो गया है कि उनकी प्राथमिकता केवल मुट्ठीभर अमीर मित्रों की तिजोरियां भरना है। चंद अमीरों से सरोकार और गरीब को दुत्कार ही सरकार का रास्ता बन गया है। अमीर और ज्यादा अमीर होते जा रहे हैं, जबकि गरीब, जरूरतमंद एवं कमजोर वर्ग के लोगों को बेसहारा छोड़ दिया गया है।
1. भारत में ‘आय की असमानता’ 73 सालों में सबसे अधिक है 【 क्रेडिट स्विस रिपोर्ट 】 । मोदी सरकार के चलते देश के केवल 1 प्रतिशत लोगों के पास देश की 45 प्रतिशत से अधिक दौलत है 【ऑक्सफैम 】।
2. गांवों में गरीबी की दर 2017-18 में बढ़कर 30 प्रतिशत हो गई। कोविड-19 के लॉकडाऊन के चलते लगभग 8 करोड़ प्रवासी मजदूर भारत के गांवों में लौटे हैं। सवाल यह है कि क्या ग्रामीण अर्थव्यवस्था उनका जीवनयापन कर सकेगी? यूनाईटेड नेशंस एवं आईएलओ की रिपोर्ट के अनुसार आने वाले दिनों में असंगठित क्षेत्र के 40 करोड़ शहरी और ग्रामीण लोग गरीबी के कुचक्र में फंस जाएंगे।
3. मध्यम वर्ग/निम्न मध्यम वर्ग ‘गंभीर आर्थिक संकट’ में हैं। 【1 】‘स्मॉल सेविंग्स स्कीम्स’ 【पीपीएफ, एनएसई, केवीपी आदि 】 के 30 करोड़ जमाकर्ताओं एवं 【2 】एसबीआई के 44.51 करोड़ सेविंग्स व फिक्स्ड डिपॉज़िट खाताधारकों का मोदी सरकार द्वारा ब्याज में की गई कटौती की वजह से सालाना नुकसान 44,670 करोड़ रु. है।
मध्यम वर्ग एवं पेंशनर्स को दिया गया सबसे ताजा झटका 7.75 प्रतिशत का ब्याज देने वाले आरबीआई बॉन्ड्स को कल ही मोदी सरकार द्वारा पूरी तरह से बंद किया जाना है।
113 लाख केंद्र सरकार के कर्मचारियों, तीनों सेनाओं के कर्मियों एवं पेंशनर्स का बैकडेट से महंगाई भत्ता काट लेने से उन्हें सालाना 37,630 करोड़ रु. का नुकसान हुआ है।
4. एक तरफ देशवासी और गरीब होते जा रहे हैं, वहीं भाजपा की संपत्ति बहुत तेजी से बढ़ रही है। भाजपा की आय 2014-15 में 970 करोड़ रु. से बढ़कर 2019-20 में 2410 करोड़ रु. हो गई, यानि 248 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी।
तीसरी भ्रांति: ‘प्रधान सेवक’ बनाम ‘निरंकुश तानाशाह’ प्रधानमंत्री, श्री नरेंद्र मोदी अपनी साधारण पृष्ठभूमि का स्तुतिगान तो बार बार करते हैं लेकिन उनके 6 साल के कार्यकाल ने साबित कर दिया है कि उन्हें आम जनमानस के दुख तकलीफों से कोई सरोकार नहीं। इससे भी ज्यादा चिंताजनक बात यह है कि उनमें आम लोगों के प्रति जिम्मेदारी व जवाबदेही का पूर्णतः अभाव है।
1. प्रवासी मजदूरों के संकट ने मौजूदा सरकार की असंवेदनशीलता तथा नेतृत्व की विफलता को अजागर कर दिया है। कोविड-19 की महामारी के बीच 8 करोड़ प्रवासी मजदूरों को बिना खाने, पानी और आश्रय के सैकड़ों-हजारों किलोमीटर दूर स्थित अपने गांव को पैदल जाने को मजबूर होना पड़ा क्योंकि प्रधान सेवक ने उनकी दुर्दशा का संज्ञान तक लेने से इंकार कर दिया।
2. चाहे नोटबंदी हो, जीएसटी हो या फिर कोविड लॉकडाऊन, सारे फैसले एक व्यक्ति द्वारा लिए जा रहे हैं और नीतिगत विफलता के चलते, इन सबका परिणाम देशवासियों के लिए विनाशकारी साबित हुआ है।
3. सभी लोकतांत्रिक संस्थानों का योजनाबद्ध दमनः
चुनाव आयोग, कंप्ट्रोलर एवं ऑडिटर जनरल, सेंट्रल विजिलैंस कमीशन, इन्फॉर्मेशन कमीशन, लोकपाल अब कमजोर, प्रभावहीन एवं निष्क्रिय हो गए हैं।
हाई कोर्ट एवं सुप्रीम कोर्ट की नियुक्तियों को केंद्र सरकार द्वारा जानबूझकर मंजूर न करने से न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर खतरे के बादल मंडरा रहे हैं। जज लोया की रहस्यमयी मौत एवं ‘असुविधाजनक’ जजों का अचानक स्थानांतरण व न्यायपालिका पर अवांछित दबाव बनाने के कुत्सित प्रयास इस सरकार की विरासत पर लगे अमिट दाग हैं।
कोविड-19 की आड़ में संसद को न चलाया जाना एवं सभी संसदीय स्टैंडिंग कमिटियों को काम करने की इजाजत न देना पूरी तरह से निरंकुश एवं गैरजिम्मेदार रवैये को दर्शाता है।
4. विरोधी विचारों को कुचलना: विपक्षी दलों या विपक्षी दलों की सरकार वाले राज्यों से न तो कोई वार्ता की जाती है और न ही कोई विचार विमर्श। भाजपा के विरोधी विचार रखने वाले सभी राजनैतिक नेताओं, आलोचकों, लेखकों, विचारकों, पत्रकारों का योजनाबद्ध उत्पीड़न किया जा रहा है। सीबीआई, ईडी एवं आईटी का दुरुपयोग कर विरोधी विचार रखने वालों पर झूठे व प्रेरित मामलों को दर्ज कराया जाना इस सरकार की प्रवृत्ति बन गई है।
5. जवाबदेही एवं पारदर्शिता का संपूर्ण अभाव:
दुनिया में फैली कोरोना महामारी के दौरान, पीएम केयर्स फंड में एक बिलियन डॉलर से ज्यादा की राशि एकत्र कर लेने के बाद भी प्रधानमंत्री जी ने इसका कोई भी विवरण देने तथा कंप्ट्रोलर व ऑडिटर जनरल से ऑडिट करवाने से इंकार कर दिया।
मौजूदा संकट के समय कमजोर वर्ग की पीड़ा को दूर किए जाने के लिए पैसा इस्तेमाल करने की बजाए उस धनराशि से 1,10,000 करोड़ रु. के बुलेट ट्रेन प्रोजेक्ट या 20,000 करोड़ रु. के सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट को चालू रखना इस बात का सबूत है कि सरकार का अहंकार गरीब की पीड़ा से कहीं बड़ा है।
6. पिछले 6 सालों में प्रधानमंत्री जी द्वारा एक भी प्रेस कॉन्फ्रेंस नहीं की गई। जनता के प्रति जवाबदेह होने का अभिनय या दिखावा तक नहीं किया गया। प्रेस कॉन्फ्रेंस की जगह प्रपोगंडा एवं झूठे आंकड़ों ने ले ली।
चौथी भ्रांति: किसान की आय ‘दोगुनी करना’ बनाम किसान से ‘छल’ । मोदी सरकार के छः साल ‘अन्नदाता’ किसान के साथ बार बार हुए छल की कहानी कहते हैं। 1.मोदी सरकार ने ‘लागत+50 प्रतिशत मुनाफे’ के बराबर ‘न्यूनतम समर्थन मूल्य’ देने व आय दोगुनी करने का वादा कर सत्ता हथियाई थी। मोदी सरकार ने 6 सालों में एक बार भी लागत+50 प्रतिशत मुनाफे के बराबर न्यूनतम समर्थन मूल्य का निर्धारण नहीं किया, जिसका वादा उन्होंने ‘सी2 फॉर्मूले’ के आधार पर अपने चुनावी घोषणापत्र में किया था। इसके विपरीत किसानों को अकेले रबी 2020 के सीज़न में 50,000 करोड़ रु. से अधिक का नुकसान हुआ है।
2. किसान का खून चूसकर हो रही ‘मुनाफाखोरी’ और खेती उत्पादों की अनाप शनाप बढ़ती कीमतों के चलते खेती आर्थिक रूप से नुकसान का सौदा बन गई है।
मोदी सरकार के छः सालों में डीज़ल पर एक्साईज़ शुल्क 3.56 रु. प्रति लीटर से बढ़कर 31.83 रु. प्रति लीटर हो गया, यानि 800 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी। यह इसके बावजूद हुआ कि अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दाम इतिहास में सबसे निचले स्तर पर हैं।
डीएपी खाद का मूल्य 2014 में 1075 रु. प्रति बैग से बढ़ाकर 2020 में 1450 रु. प्रति बैग कर दिया गया। पोटाश का 50 किलोग्राम का बैग 450 रु. से बढ़कर 969 रु. का हो गया। सुपर खाद का 50 किलोग्राम का बैग 260 रु. से बढ़कर 350 रु. प्रति बैग कर दिया गया। भारत के इतिहास में पहली बार यूरिया फर्टिलाईज़र बैग में खाद की मात्रा को कीमत में कमी किए बिना 50 किलोग्राम से घटाकर 45 किलोग्राम कर दिया गया। 3.भारत के इतिहास में पहली बार मोदी सरकार ने कृषि पर टैक्स लगाया। खाद पर 5 प्रतिशत जीएसटी, कीटनाशकों पर 18 प्रतिशत जीएसटी, ट्रैक्टर एवं सभी कृषि उपकरणों पर 12 प्रतिशत जीएसटी तथा ट्रैक्टर टायर, ट्रांसमिशन एवं अन्य पाटर््स पर 18 प्रतिशत जीएसटी लगा दिया गई। 4.पीएम फसल बीमा योजना बीमा कंपनियों की मुनाफाखोरी की स्कीम बन गई। 2016-17 से खरीफ 2019 के बीच फसल बीमा योजना के तहत कुल 99,046 करोड़ रु. का प्रीमियम दिया गया, जबकि किसानों को 72,952 करोड़ का मुआवजा मिला। बीमा कंपनियों ने 26,094 करोड़ रु. का मुनाफा कमाया। 5】44 प्रतिशत किसानों को पीएम किसान सम्मान योजना के तहत कवरेज से इंकार कर दिया गया। 14.64 करोड़ किसानों 【कृषि जनगणना, 2016 】में से 6.42 करोड़ किसानों को बिना कोई कारण बताए योजना के लाभ से पूरी तरह से वंचित कर दिया गया है। 6.मोदी सरकार ने किसानों के लिए कांग्रेस की यूपीए सरकार द्वारा लागू किए गए भूमि अधिग्रहण उचित मुआवजा कानून को समाप्त करने के लिए पांच सालों तक षडयंत्र किया। जब कांग्रेस द्वारा इसे रद्द न करने के लिए संघर्ष किया गया, तो इस कानून को भाजपाशासित प्रदेशों में कमजोर कर दिया गया व सुप्रीम कोर्ट में भी किसान के उचित मुआवजा कानून के खिलाफ दलील रखी गई ।
पाँचवीं भ्रांति: ‘अच्छे दिन’ बनाम ‘सच्चे दिन’
इससे पहले कभी भी कोई सरकार अपने नागरिकों के प्रति इतनी उदासीन व निर्दयी नहीं साबित हुई। भारत पूरे विश्व में लोकतंत्र की अनूठी मिसाल पेश करता आया है, पर मोदी सरकार की कार्यप्रणाली के चलते प्रजातंत्र का आधार ही खतरे में है। 1.झूठ पर खड़ा ताश के पत्तों का घर:- विदेशों से ‘80 लाख करोड़ रु.’ का कालाधन वापस लाने और हर भारतीय के बैंक खाते में ‘15 लाख रु. जमा कराने’ का झूठ भारत के राजनैतिक इतिहास का सबसे बड़ा झूठ साबित हुआ है। यह वादा पूरा करना तो दूर, मोदी सरकार की नाक के नीचे से 2,70,000 करोड़ रु. मूल्य का बैंक फ्रॉड हो गया तथा भगोड़े देश का पैसा लूटकर देश छोड़कर भागने में सफल हो गए। छः साल बीत जाने के बाद भी एक भी भगोड़ा वापस नहीं लाया जा सका। 2. झूठी नारेबाजी का हुआ पर्दाफाश:- ‘मिनिमम गवर्नमेंट, मैक्सिमम गवर्नेंस’ की नीति अब बदलकर ‘मैक्सिमम गवर्नमेंट, जीरो गवर्नेंस’ की नीति बन गई है। ‘कोऑपरेटिव फेडरलिज़्म’ की जगह ‘निरंकुश तानाशाही’ ने ले ली है। ‘टैक्स टेररिज़्म’ हर जगह व्याप्त है और ‘पॉलिसी पैरालिसिस’ ने प्रशासन को पंगु बना दिया है। 100 ‘स्मार्ट सिटीज़’ तो लंबे अरसे पहले ही भुला दी गईं और जनता को बेवकूफ बनाने के लिए किए गए ऐसे ही सैकड़ों खोखले वादे ठंडे बस्तों में जा चुके हैं। 3.हंगर इंडैक्स एवं हैप्पीनेस इंडेक्स में तीव्र गिरावटः
ग्लोबल हंगर इंडैक्स में भारत 117 देशों की सूची में गिरकर 102 वें पायदान पर खिसक गया है। हैप्पीनेस इंडैक्स में भारत 2013 में 117 रैंक पर था। 2019 में भारत 155 देशों में से गिरकर 140 वीं रैंक पर पहुंच चुका है। 4.देशवासियों के स्वास्थ्य व सेहत की घोर उपेक्षा:- दुनिया में सबसे ज्यादा 30 प्रदूषित शहरों में 21 शहर अकेले भारत में हैं 【डब्लूएचओ डेटा 】। पर्यावरण की सेहत के मामले में भारत 180 देशों में दुनिया का चौथा सबसे खराब देश बन गया है 【ईपीआई 2018】। 2018 में ग्लोबल क्लाईमेट रिस्क में भारत 2017 में चौदहवें स्थान से नीचे गिरकर पाँचवें स्थान पर पहुंच गया है। 5.मोदी सरकार के छः सालों में जातीय एवं सांप्रदायिक हिंसा में भारी वृद्धि हुई और सहानुभूति, भाईचारे एवं बंधुत्व की भावना तार तार हो गई ।
छठवीं भ्रांति: मजबूत नेतृत्व बनाम बेतुके निर्णय
मोदी सरकार के छः साल में राजनैतिक महत्वाकांक्षा की वेदी पर लगातार राष्ट्रहित के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है। 1.मोदी सरकार के छः सालों में हमारे जवानों की शहादत में लगभग 110 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई है। उरी आर्मी ब्रिगेड हेडक्वार्टर, पठानकोट एयर बेस एवं नगरोटा आर्मी बेस आदि प्रमुख रक्षा संस्थानों तथा अमरनाथ यात्रा पर पाक-प्रशिक्षित आतंकियों द्वारा बार-बार हमले किए गए और दिशाहीन सरकार देखती रह गई। पुलवामा में सीआरपीएफ के 40 जवान शहीद हो गए। आज तक आरडीएक्स स्मगल कर ले आने का षडयंत्र, आरडीएक्स भरी गाड़ी से उग्रवादियों द्वारा सभी सुरक्षाचक्र तोड़कर जवानों के काफिले पर हमला व इस पूरे मामले में एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी की भूमिका को लेकर गुत्थी आज तक नहीं सुलझ पाई है। आज तक इस रहस्य से भी पर्दा नहीं उठा कि पुलवामा हमले के समय व उसके बाद प्रधानमंत्री जिम कॉर्बेट पार्क में फिल्म की शूटिंग क्यों करते रहे तथा सभी सुरक्षा एजेंसियों का प्रधानमंत्री से संपर्क कैसे टूट गया था। 2.केवल बातें, नतीजे नहीं:- हमारी सेना के शौर्य का राजनैतिक लाभ लेने के लिए सदैव तत्पर रहने वाल मौजूदा सरकार ने रक्षा बजट में ही कटौती कर दी। साल 2020-21 के बजट में, रक्षा मामलों के लिए केवल जीडीपी का 1.58 प्रतिशत दिया गया है, जो साल 1962 के बाद सबसे कम राशि है। कोविड की महामारी के बाद तो इस बजट को और काट दिया गया है। 3.‘झूला डिप्लोमेसी’ की विफलता:- चीन की सेनाओं द्वारा लद्दाख में पैनगोंग लेक तथा गल्वान वैली के क्षेत्र में जबरन घुसपैठ करना राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए चिंताजनक विषय है। खासतौर से जब यह सारा मामला डोकलाम मामले के बाद उठा है, तो सुरक्षा को लेकर चिंता और भी बढ़ जाती है। हम प्रधानमंत्री जी से कहेंगे कि वो देश से चीनी घुसपैठ बारे सारी जानकारी साझा करें तथा ‘लाल आंख’ के अपने वचन को साबित करें। 4.पड़ोसियों से संबंध:- नेपाल के साथ अकारण पैदा हुए सीमा विवाद, चीन के द्वारा मालदीव्स में फेडू फिनोलू आईलैंड पर व्यापक विस्तार करने, श्रीलंका में हम्बनटोटा पोर्ट को चीन को संचालन के लिए लंबी अवधि के लिए दे देना, कुछ ऐसे मुद्दे हैं, जिनसे हमारी राष्ट्रीय सुरक्षा सीधे प्रभावित होती है।
आखिर में सूरजेवाला ने कहा कि छः साल का लंबा अरसा पूरा होने के बाद ऐसा प्रतीत होता है कि जैसे मोदी सरकार अपने ही नागरिकों के खिलाफ युद्ध लड़ रही हो तथा मरहम लगाने की बजाय घाव दे रही हो। यह यकीनन आश्चर्यजनक है कि सरकार ने प्रजातंत्र के संचालन का सबक आज तक भी नहीं सीखा। सरकारें नागरिकों की बात सुनने, सुरक्षा करने, संरक्षण देने व सेवा के लिए हैं, न कि गुमराह करने, भटकाने व बांटने के लिए। जितना जल्दी मौजूदा सरकार को यह बात समझ में आ जाएगी, उतना जल्दी ही सरकार को इतिहास के पन्नों में अपनी भूमिका समझ आएगी।
◆रिपोर्ट स्पर्श देसाई √●Metro City Post● News Channel● के लिए...
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