मजदूर नेता ज्योर्ज फर्नांडिस को प्रस्तुत की गई श्रधांजलि / रिपोर्ट स्पर्श देसाई

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     【मुंबई / रिपोर्ट स्पर्श देसाई】

मजदूर नेता जॉर्ज फ़र्नांडिस ने चीन को बताया था दुश्मन नंबर । ऐसा बीबीसी हिंदी बताता हैं । आगे कहता हैं कि जॉर्ज फ़र्नांडिस हमेशा से साफ़ और खरा बोलने के आदी थे ।  विवादों से उनका हमेशा चोली दामन का साथ रहा था । उनसे आप किसी भी तरह का सवाल पूछ सकते थे । वो कभी 'ऑफ़ द रिकॉर्ड' बोलना पसंद नहीं करते थे  । ऐसे ही एक इंटरव्यू में जब उन्होंने कहा कि 'चीन हमारा प्रतिद्वंदी बल्कि दुश्मन नंबर 1 है' तो पूरे भारत में सनसनी मच गई थी ।
हुआ ये था कि साल1998 में उन्होंने होम टीवी के 'फ़ोकस विद करन' कार्यक्रम में करन थापर को दिए इंटरव्यू में बिना लाग लपेट के कहा कि "हमारे देशवासी वास्तविकता का सामना करने से झिझकते हैं और चीन के इरादों पर कोई सवाल नहीं उठाते हैं ।जिस तरह से चीन पाकिस्तान को मिसाइलें और म्यांमार के सैनिक शासन को सैनिक सहायता दे रहा है और भारत को ज़मीन और समुद्र के ज़रिए घेरने की कोशिश कर रहा है, उससे तो यही लगता है कि वो हमारा भावी दुश्मन नंबर 1 है । "
उनके इस वक्तव्य ने भारत की विदेश नीति बनाने वालों के साथ-साथ चीन की सरकार में चोटी पर बैठे नेताओं और अधिकारियों को भी एक तरह से हिला दिया था ।

चीनी थलसेनाध्यक्ष के जाने का किया था इंतज़ार : 

दिलचस्प बात ये है कि जब फ़र्नांडिस चीन के लिए इतने कड़े शब्दों का प्रयोग कर रहे थे, उन्हीं दिनों चीनी थल सेना के प्रमुख जनरल फ़ू क्वान यू भारत की यात्रा पर आए हुए थे ।
फ़र्नांडिस ने उस इंटरव्यू के प्रोड्यूसर को फ़ोन कर कहा था कि वो चीनी जनरल के भारतीय ज़मीन पर रहते उस इंटरव्यू का प्रसारण न करें, क्योंकि प्रधानमंत्री वाजपेई चीन से किसी तरह के विवाद में नहीं पड़ना चाहते ।
फ़र्नांडिस के अनुरोध पर उस इंटरव्यू को दो सप्ताह तक रोका गया और चीनी थल सेनाध्यक्ष के जाने के दो हफ़्ते बाद ही उसे प्रसारित किया गया लेकिन ये बात साफ़ है कि यहाँ फ़र्नांडिस की ज़ुबान नहीं फिसली थी क्योंकि कुछ दिनों बाद कृष्ण मेनन मेमोरियल लेक्चर में उन्होंने ये बात फिर दोहराई थी ।
पोर्ट ब्लेयर की यात्रा से लौटते समय जब एक पत्रकार ने उनसे पूछा कि क्या भारत-चीन सीमा पर अपने सैनिक हटाने की योजना बना रहा है तो फ़र्नांडिस ने कहा 'बिल्कुल नहीं', जिसका कई हल्कों में संदर्भ से हटकर अर्थ लगाया गया ।

चीन के ख़िलाफ़ पहले भी बोलते रहे थे फ़र्नांडिस ।

ये पहला मौक़ा नहीं था जब जॉर्ज ने चीन के ख़िलाफ़ टिप्पणी की हो । उस ज़माने में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में स्कूल ऑफ़ इंटरनेशनल स्टडीज़ के डीन और जाने-माने चीन विशेषज्ञ प्रोफ़ेसर जीपी देशपाँडे एक दिलचस्प क़िस्सा सुनाया करते थे ।
वीपी सिंह सरकार में रेल मंत्री बनने के बाद जॉर्ज ने अपना पहला वक्तव्य तिब्बत की आज़ादी के बारे में दिया था ।
"जब मैं चीन गया तो मुझसे इस बारे में हर जगह सवाल पूछे जाते थे । मैं उनसे यही कहता कि जॉर्ज भारत के रेल मंत्री हैं, प्रधानमंत्री या विदेश मंत्री नहीं । मैं ये सफ़ाई देते देते तंग आ गया था कि भारत की तिब्बत नीति में कोई परिवर्तन नहीं हुआ है । "
लेकिन तब और अब के हालात में फ़र्क इतना था कि अब जॉर्ज भारत के रक्षा मंत्री थे और उनकी इस टिप्पणी ने प्रधानमंत्री कार्यालय और विदेश मंत्रालय को परेशानी में डाल दिया था ।


चीन और भारत में कड़ा विरोध :

फ़र्नांडिस की इस टिप्पणी के एक दिन बाद जब वायस ऑफ़ अमेरिका के संवाददाता ने चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ज़ू बाँग ज़ाओ से इस बारे में पूछा तो उन्होंने कहा कि 'फ़र्नांडिस का ये कथन इतना हास्यास्पद है कि हम इसका खंडन करने की भी ज़रूरत नहीं समझते ।"
उन्होंने ये ज़रूर कहा कि "फ़र्नांडिस दो पड़ोसियों के बीच बेहतर होते संबंधों में गंभीर नुक़सान पहुंचाने की कोशिश कर रहे हैं ।" भारत में भी फ़र्नांडिस के इस कथन का ख़ासा विरोध हुआ । मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के नेता सीताराम यचूरी ने जॉर्ज पर बेहतर होते भारत चीन संबंधों में बाधा पहुंचाने का आरोप लगाया था।
पूर्व प्रधानमंत्री इंदर कुमार गुजराल ने भी इसे 'एडवेंचरिज़्म' की संज्ञा दी और कहा कि ये प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई की विदेश नीति को ज़रूरी तवज्जो न देने का नतीजा है ।
उन्होंने फ़र्नांडिस के साथ साथ वाजपेई पर भी हमला करते हुए कहा कि वो फ़र्नांडिस को विदेश नीति में दख़लंदाज़ी करने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं ।
गुजराल की इस आलोचना का ये असर हुआ कि प्रधानमंत्री कार्यालय ने स्पष्टीकरण दिया कि 'रक्षा मंत्री के विचार भारत सरकार के विचारों की नुमाइंदगी नहीं करते और भारत की चीन नीति में कोई आमूल परिवर्तन नहीं हुआ है ।"

प्रधानमंत्री कार्यालय ने बनाई दूरी ।

विदेश मंत्रालय ने सफ़ाई देकर प्रधानमंत्री वाजपेई को फ़र्नांडिस की टिप्पणी से दूर करने की भरसक कोशिश की । उसकी तरफ़ से कहा गया कि जनता पार्टी सरकार में विदेश मंत्री के तौर पर वाजपोई ने चीन के साथ संबंध सामान्य करने में व्यक्तिगत रुचि ली थी । पीएमओ के एक अधिकारी ने तो यहाँ तक कहा कि इस समय फ़र्नांडिस का ऐसा कहना अनुचित और ग़ैर ज़रूरी है । इससे कुछ हल्कों में ये कयास भी लगने लगे कि कहीं वाजपेई अपने लिए किसी दूसरे रक्षा मंत्री की तलाश में तो नहीं लग गए? उधर कुछ हल्कों में ये भी कहा गया कि कहीं भारत की विदेश नीति बनाने वाले फ़र्नांडिस की आड़ लेकर चीन को वास्तविकता बताने की कोशिश तो नहीं कर रहे? लेकिन वाजपेई ने निजी तौर पर फ़र्नांडिस के कथन का समर्थन या विरोध करने में कोई पहल नहीं दिखाई ।
पूर्व विदेश सचिव एपी वैंकटेश्वरन ने कहा कि 'अगर वाजपेई ऐसा करते तो वो चीन के हाथों में खेलते दिखाई देते और जैसे ही चीनियों को इस बात का अंदाज़ा होता है कि आप उन्हें ख़ुश करने के लिए झुक रहे हैं तो वो इसका फ़ायदा उठाने में चूकते नहीं ।'

ड्रैगन को जगाने से तुलना :
लेकिन फ़र्नांडिस के ऐसा करने के पीछे एक पृष्ठभूमि रही थी । वो हमेशा से ही अपने कम्युनिस्ट विरोधी विचारों के लिए जाने जाते रहे थे और तिब्बत और म्यांमार के प्रजातंत्र समर्थक आंदोलन का उन्होंने तहेदिल से साथ दिया है ।
विदेश मंत्रालय के एक और अधिकारी ने इस मुद्दे पर रक्षा मंत्री और प्रधानमंत्री कार्यालय और विदेश मंत्रालय के बीच चल रही नोक-झोंक पर एक दिलचस्प टिप्पणी की कि 'पहले तो आपने सोते हुए ड्रेगन का जगाया । जब वो जाग गया तो आपने उसे लाल कपड़ा दिखाया और जब ड्रेगन आग उगलने लगा तो आप बचने के लिए इधर -उधर भागने लगे । '
चीन की तरफ़ से एक दिलचस्प टिप्पणी उस समय इंस्टीट्यूट ऑफ़ चाइनीज़ स्टडीज़ के सह प्रमुख प्रोफ़ेसर टैन चुँग की तरफ़ से आई ।
उन्होंने कहा, "चीनियों की याददाश्त बहुत अच्छी है । भारत के लोग लापरवाही से बोलते हैं, चीनी नहीं ।"
इस पूरे प्रकरण से सबसे ज़्यादा ख़ुशी पाकिस्तान को हुई क्योंकि पहली बार उसे लगा कि भारत की सरकार पाकिस्तान की तुलना में चीन को ज़्यादा तवज्जो दे रही थी ।ऐसी जानकारी बीबीसी हिंदी ने दी थी । मजदूर नेता, सत्ता विरोधी पत्रकार, विद्रोही तेवर का व्यक्तित्व, आपातकाल के बागी, कुशल संगठनकर्ता, समता पार्टी के निर्माता, एनडीए के संयोजक, केंद्र के अलग-अलग विभागों के मंत्री और इन सबसे अलग एक सादगी भरा जीवन जीने वाले समाजवादी योद्धा, एक अकेले जॉर्ज ना जाने क्या-क्या थे। यही वजह है कि आज़ादी के बाद भारत की समाजवादी सियासत का मंज़रनामा बग़ैर जॉर्ज फर्नांडिस के मुकम्मल नहीं होगा।

हमारी पीढ़ी का शोक ये रहा कि हमने जॉर्ज फर्नांडिस के उत्तरार्द्ध को देखा, ये सियासत में उनके ढलान का दौर था। हमने भारतीय राजनीति के एक ओजस्वी वक्ता को संसद में शब्द ढूंढते देखा। हमने समाजवादी सियासत के एक प्रतिबद्ध सिपाही को गुजरात दंगों के संसदीय शोर के दौरान खामोश देखा। ताबूत घोटाले का आरोप लगने के बाद संसद में कई महीनों तक जॉर्ज का बहिष्कार देखा। खुद की खड़ी की गई पार्टी के भीतर एक अदद टिकट के लिए तरसते देखा। और इन सबसे भयावह एक महान सियासी आदर्श की विरासत को तिल-तिल बिखरते देखा।

जॉर्ज की जिंदगी एक फौलादी नेता के संघर्ष और उसके टूटने की दास्तान है। यदि जॉर्ज एनडीए के संयोजक बनकर सक्रिय नहीं हुए होते तो बीजेपी को सरकार बनाने में 20-25 सालों का वक्त और लगता। लेकिन इन सबके बावजूद कुछ मौकापरस्त और तथाकथित समाजवादियों ने एक बेखौफ मजदूर नेता, आपातकाल का एक निडर आंदोलनकारी और कोका कोला व रिलाइंस जैसी मल्टीनेशनल कंपनी से टकराने का हौसला रखने वाले एक साहसी समाजवादी संघर्ष को भूला दिया है। 

सत्ता की चकाचौंध में एक ओर जहां समाजवाद के मायने बदल गए वहीं संघर्ष करने की ललक भी धीरे धीरे समाप्त हो रही है। इस लॉक डाउन में प्रवासी मजदूरों के साथ हुआ अत्याचार और अमानवीय कृत्य के लिए सरकार दोषी है, यह कहने कि हिम्मत और उनके विरुद्ध संघर्ष करने की क्षमता इन समाजवादियों में अब नही रही। अब न सड़के गर्म होंगी, न सदन में कोई आवाज़ सुनाई देगी। 

जॉर्ज फर्नांडिस संघर्ष के पर्याय थे। उनकी ज़िंदगी में ऐसा बहुत कुछ है, जिसके लिए उन्हें एक संघर्षशील समाजवादी योद्धा के तौर पर हमेशा याद रखा जाएगा।

प समाजवादी आंदोलन टुकड़ों में भले बंटा, पर जॉर्ज का संघर्ष कभी नहीं बंटा। जहां मजदूरों का शोषण होता वहां जार्ज मौजूद रहते। समाजवादी आन्दोलन जार्ज फर्नांडिस के बिना अधूरा है। वह आजाद हिन्दुस्तान की सियासत में पहली ऐसी शख्सियत है जिसे सारी दुनिया मजदूर नेता के रूप में जानती है। 
यह बात गाँधी भवन में समाजवादी योद्धा, पूर्व केंद्रीय मंत्री पद्म विभूषण जॉर्ज फर्नांडिस की 90वीं जयंती पर विद्युत कर्मचारी मोर्चा संगठन उप्र के राष्ट्रीय अध्यक्ष चंद्र प्रकाश अवस्थी ‘बब्बू‘ ने कही। 
इससे पहले श्री अवस्थी ने सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए स्व जॉर्ज फर्नांडिस के चित्र पर माल्यार्पण कर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की। इस मौके पर गाँधी जयंती समारोह ट्रस्ट ने श्री अवस्थी को जॉर्ज फर्नांडिस जनसेवा सम्मान से विभूषित किया गया। 
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे गांधी जयन्ती समारोह ट्रस्ट के अध्यक्ष राजनाथ शर्मा ने कहा कि जॉर्ज फर्नांडिस जैसे राजनेता मरा नही करते बल्कि एक अनथक विद्रोही की तरह हमें प्रेरणा देते है। जार्ज साहब के रिश्ते हिंदुस्तान ही नहीं बल्कि बहुत से मुल्कों के हुकुमरानों से रहे है। वह मजदूरों, शोषितों और पीड़ितों की आवाज थे। जॉर्ज फर्नांडिस की जिंदादिली, संघर्ष, सत्याग्रह और लोकतंत्र सेनानी की भूमिका ने सर्वहारा समाज का प्रतिनिधित्व किया है। जॉर्ज साहब की सादगी और पहनावा भारतीय संस्कृति की पहचान थी।
समाजवादी चिंतक रिजवान रजा ने कहा कि जार्ज साहब ने ही देश में सरकारों के विरूद्ध आवाज उठाने की शुरूआत की। रेल हड़ताल, मुम्बई बंद, मजदूर आन्दोलन जैसे कई सत्याग्रह करके देश को नई दिशा प्रदान की। उनके द्वारा की गई रेल हड़ताल देश का सबसे एतिहासिक आन्दोलन रहा है। 
वरिष्ठ अधिवक्ता सरदार आलोक सिंह ने कहा कि देश में जब भी लोकतांत्रिक व्यवस्था का प्रतिकार होगा जॉर्ज साहब निश्चय ही सतत संघर्ष के भागीदार की भूमिका में हमारे प्रेरणादायी होंगे। 
कार्यक्रम का संचालन वरिष्ठ सपा नेता हुमायूँ नईम खान ने किया। इस मौके पर वरिष्ठ अधिवक्ता सरदार राजा सिंह, समाजसेवी विनय कुमार सिंह, सत्यवान वर्मा, मृत्युंजय शर्मा, दिनेश कुमार निषाद, रवि प्रताप सिंह, मो शमीम, पी के सिंह ने जॉर्ज फर्नांडिस के चित्र पर पुष्प अर्पित कर श्रद्धांजलि दी गई।


◆ब्यूरो रिपोर्ट : स्पर्श देसाई √● Metro City Post● News Channel●










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